+# गणपतिखण्ड * २९७
१४१०४०४१ # ४४४४ ४५४४ ४४; ##४ ४४४४४ ४४४४४ ४४४४ ४8 #४ ४५४ ४४४ ४४ # 8 # 8 ह6.
इसलिये महाभागे! तुम इस ब्रतका अनुष्ठान | वह भक्त अपने भाई, बन्धु-बान्धव, भृत्य, संगी-
करो, यह तीनों लोकोमें दुर्लभ है। इस ब्रतके | साथी तथा अपनी स्त्रीका उद्धार करके श्रीहरिके
पालनसे ही तुम्हें सम्पूर्ण वस्तुओंका साररूप पुत्र | परमपदको प्राप्त हो जाता है। इसलिये गिरिजे!
प्राप्त होगा। इस ब्रतके द्वारा सम्पूर्णं प्राणि्योके | तुम इस परम दुर्लभ विष्णुमन्त्रको ग्रहण करो
मनोरथ सिद्ध करनेवाले श्रीकृष्णकी आराधना की | और उस ब्रतकालमें इसी मन्त्रका जप करो;
जाती है, जिनके सेवनसे मनुष्य अपने करोड़ों क्योंकि यह पितरोंकी मुक्तिका कारण है। यों
पितरोंके साथ मुक्त हो जाता है। जो मनुष्य | कहकर भगवान् शंकर गिरिजाके साथ तुरंत ही
विष्णुमन्त्र ग्रहण करके श्रीहरिकी सेवा करता है, | गज्भा-तटपर गये ओर उन्होने प्रसन्नतापूर्वक कवच
वह भारतवर्षमें अपने जन्म-धारणको सफल कर | तथा स्तोत्रसहित मनोहर विष्णुमन्त्र पार्वतीजीको
लेता है। वह अपने पूर्वजोंका उद्धार करके निश्चय | बतलाया मुने ! तत्पश्चात् उन्होने पार्वतीसे पूजाकी
ही वैकुण्ठमें जाता है और श्रीकृष्णका पार्षद | विधि एवं नियमोंका भी वर्णन किया।
होकर सुखपूर्वक आनन्दका उपभोग करता है। (अध्याय १--३)
न ६
शिवजीद्वारा पार्वतीसे पुण्यक -व्रतकी सामग्री, विधि तथा फलका वर्णन
श्रीनारायण कहते हैँ -- नारद ! पुण्यक- | अवस्थामें पिता, युवावस्थामे पति और वृद्धावस्थामें
व्रतका विधान सुनकर पार्वतीका मन | हो पुत्र सव तरहसे पालन करनेवाले होते हैं।
गया। तत्पश्चात् उन्होंने व्रतकी सम्पूर्णं विधिके | प्राणनाथ ! आप तो सर्वात्मा, ऐश्वर्यशाली, सर्वसाक्षी
विषयमे प्रश्न करना आरम्भ किया। और सर्वज्ञ है, अतः अपने आत्माकी निर्वृतिका
पार्वती बोलीं-नाथ! आप वेदवेत्ताओंमें कारणभूत एक श्रेष्ठ पुत्र मुझे प्रदान कीजिये।
श्रेष्ठ करुणाके सागर तथा परात्पर हैं। दीनबन्धो ! | भगवन्! यह तो मैंने अपनी जानकारीके अनुरूप
इस ब्रतका सारा विधान मुझे बतलाइये। प्रभो ! | आप-जैसे महात्मासे निवेदन किया है। आप तो
कौन-कौन-से द्रव्य ओर फल इस ब्रतमें उपयोगी | सबके आन्तरिक अभिप्रायके ज्ञाता ओर परम
होते हैं? इसका समय क्या है? किस ज्ञानी हैं। भला, मैं आपको क्या समझा सकती
पालन करना पड़ता है? इसमें आहारका क्या| हूँ? यों कहकर पार्वतीने प्रेमपूर्वक अपने
विधान है? और इसका क्या फल होता है 2 यह| पतिदेवके चरणोंमें माथा टेक दिया। तब कृपासिन्धु
सब मुझ विनप्र सेविकासे वर्णन कौजिये। साथ | भगवान् शिव कहनेको उद्यत हुए।
ही एक उत्तम पुरोहित, पुष्प एकत्रित करनेके श्रीमहादेवजीने कहा--देवि ! मैं इस व्रतकी
लिये ब्राह्मण और सामग्री जुटानेके लिये भृत्योंको | विधि, नियम, फल और ब्रतोपयोगी द्रव्यों तथा
भी नियुक्त कर दीजिये। इनके अतिरिक्त और | फलोंका वर्णन करता हूँ, सुनो। इस त्रतके हेतु
भी जो ब्रतोपयोगी वस्तुएँ हैं, जिन्हें मैं नहीं मैं फल-पुष्प लानेके लिये सौ शुद्ध ब्राह्मणोंको,
जानती हूँ, वह सब भी एकत्र करा दीजिये; | सामग्री जुटानेके निमित्त सौ भृत्यों और बहुसंख्यक
क्योंकि स्त्रियोंके लिये स्वामी ही सब कुछ प्रदान | दासिर्योको तथा पुरोहितके स्थानपर सनत्कुमारको,
करनेवाला होता है । स्त्रियोकौ तीन अवस्थाएँ जो सम्पूर्ण ब्रतोकी विधिके ज्ञाता, वेद-वेदान्तके
होती हैं-कौमार, युवा और वृद्ध। कौमार- | पारंगत विदान्, हरिभक्तोमें सर्वश्रेष्ठ, सर्व, उत्तम