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भूमिका

२३

ऋषि, देवता और छंद

बेदमंत्रों में सन्निहित ज्ञान-निधि प्राप्त करने के

इच्छुक- जन, जब संहितां और उसका भाषार्थ पढ़ते हैं,

तो प्रारंभ में ही प्रयुक्त ऋषि, देवता तथा छंदों का

विवरण पाते है । भाषार्थ में यत्र-तत्र ऐसी संज्ञाएँ आती

हैं, जो किसी न किसी देवता, ऋषि, उपकरण-पात्र,

क्रिया, स्थान आदि की द्योतक होती है । उनके विषय

में विस्तार से जानने की उत्सुकता सहज ही होती है,

विशेषकर ऋषिर्यो-देवताओं के विषय में । इस

भाषार्थ में छिट-पुट संज्ञाओं का तो, वहीं टिप्पणियों में

परिचय दे दिया गया है, परन्तु ऋषियों, देवताओं तथा

छदो का परिचय "परिशिष्ट" के रूप में अकारादि क्रम

से दे दिया गया है, जो आज तक प्रकाशित हुई वैदिक

संहिताओं में तथा वेद भाष्यों में अनुपलब्ध हैं ।

प्रत्येक संहिता में जिन-जिन ऋषियों, देवताओं एवं

छंदों का नामोल्लेख प्रति मंत्र के साथ हुआ है, उनका

अकारादि क्रम से परिचय “परिशिष्ट क्रमांक एक, दो

तथा तीन में प्रस्तुत किया गया है, जो इस विषय के

शोधार्थियों के लिए अत्युपयोगी सिद्ध होगा ।

पाठ के संदर्भ में

प्रस्तुत संहिता में मंत्रों का नितांत परिशुद्ध पाठ.

छपा गया है । इस दिशा में गवेषणात्मक विचार

करने पर कई संहिताओं में कुछ अंतर देखने को मिला

है । आजकल की उपलब्ध संहिताओं में, दो संहिताएँ

अत्यधिक प्रामाणिक मानी गई हैं-- एक है स्वाध्याय

मण्डल पारडी, बलसाड़ से प्रकाशित, दूसरी है--

वैदिक यंत्रालय, अजमेर से प्रकाशित; किन्तु कुछ

मंत्रांश दोनों में अलग-अलग हैं ।

ऐसी स्थिति में हमने मैक्समूलर द्वारा संपा-

दित. अक्टूबर १८४९ ई० में आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी

से प्रकाशित प्राचीन पाठ को प्रामाणिक माना है और

उसके अनुसार अपने पाठ को शुद्ध करके छापा है ।

आशा है, जिस भाव से यह प्रयास किया गया

है, उसे उसी रूप में ग्रहण करते हुए पाठक-गण,

इससे विशेष लाभ प्राप्त कर सकेंगे ।

भगवती देवी र्या

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