३६८ | [मत्स्य पुराण
तत्तस्तु॒तपंण कुर्य्यात्त्रेलोक्याप्यायनाय वे ।१२
देवायक्षास्तथासागागन्धर्वाप्सरसः सुराः ।
क्र: रा: सर्पा-सुपर्णाश्चत्तरबोजम्बुका खगाः । १३
वाय्वाधारा जलाधारास्तथेकवाकाशगामिनः ।
निराधाराश्च ये जीवा येतु धम्मेरतास्तथा । १४
तेषामाप्यायनायेतदहीयते सलिलं मया ।
कृतोपवीतो देवेभ्यो निवीती च भवेत्ततः । १५
हाथों के सम्पुट में जल को योजिते करके सात बार अभिजापं
करे और फिर मूर्धा मे जलक्रो डति । फिर तीन-चार-पाँचः और सात
बार स्नान करनी चाहिए । इसी भाति विधानके साथ आमन्त्रित करके
मृत्तिका ने स्नाने केरे । अभिमन्त्रित करने का मन्त्र यह है-हे मृत्तिके
आप अश्वों के खुरों से क्रान्त होने वाली हैं-रथों के चक्रों द्वारा भी
क्रान्ति होती हैं । आप विष्णु भगवान् के द्वारा क्रान्त हैं । हे बसुन्धरें !
जो भी मैंने दुष्क्रत किए हों उस सम्पूर्ण पाप का आप संहरण करदो ।
।८-१०। है सुव्रते ! शत बाहुँओं' वाले वराह श्रीकृष्ण ने आपका उद्धरण
क्रिया है अर्थात् आपको उठा लिया है। समस्ते लोकों के प्रभवे
(जन्म) के लिए आरणीके समान विनाश करने वाली आप है । तात्पर्य
यह है कि जन्म-मरण के आवागमन को छुडाकर मोक्ष प्रदान किया
करती हैं ऐसी आपंकी सेवा पे मेरा नमस्कार अपित है । इस प्रकार से
स्नान करके पीछे विधिपूर्वक' आचमन करे ओरं स्नाम से! उठकर फिर
परम शुद्ध एवं शुक्ल वस्त्रौ कोः धारण करना चाहिए । इसके अनन्तर
श्रलोक्य की संतृप्ति के लिए तर्पण करना चाहिए ।११-१२। [देव--
यक्ष, नाग, गन्धर्व, अष्सराये, सुर, क्रूर, सर्प, सुरर्ण, तरुगण,
जम्बक, खग, वाय के आधार वालिः प्रणी-जल का आश्रय ग्रन्नण- करने
र बुक हे जक हे ७ 93 क; |] हक
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+ ५]. बीज हा च, (पन क वीणा करए... >