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३०६ | [ मत्स्य पुराण

प्रतिमां पञ्चगव्येन तथा गन्धोदकेन तु ।

स्नापयित्वाऽ्चंयेत्‌ गौ रीमिन्दुगेखरसंयुताम्‌ । १७

नमोऽस्तुपाटलायैतुपादौदेव्याः शिवस्यतु ।

शिवायेतिचसंकीत्येजयायगुल्फयोद्रं यो: ! १८

त्रिगुणायेति रुद्राय भवान्य जंघयोयुं गम्‌ ।

शिवां रुद्र श्वराय च विजयायेति जानुनी ।

सङ्कीत्यं हरिकेशाय तथोरू वरदे नमः । १8

ईशायंच करि देव्याः शङ्करायेति शंकरम ।

कुक्षिद्रयञ्च कोटव्यै शूलिने शूलपाणये ।२०

मङ्गलायै नमस्तुभ्यसुन्दरं चाभि पूजयेत्‌ ।

सर्वात्मने नमो रुद्रमीशान्ये च कुचद्वयम्‌ ।२१

` मत्स्य भगवान्‌ ने कहा--हे जनत्रिय ! वसन्त मास को प्राप्त

करके शुक्लः पक्ष की तृतीय तिथि में पूर्वाहन के समयभें तिलो से स्नान

करना चाहिए ।१४। उस दिन से वर वणिनी वह दैवी सती विश्वात्मा

के साथ पाणिग्रहण के मन्गों में निवास करने वाली हुई थी ।१५। उसी

देवी के साथही तृतीयामें देवेश का भी अर्चन करना चाहिए । फल जो

अनेक प्रकारके ही उनसे धूष-दीप और नैत्रेयसे संयुत करके प्रतिमा

का पञ्जगव्य से और गन्धोदकं से स्नयन कराकर फिर इन्दु शेखर से

समन्वित गौरी का अभ्यर्चन करना चाहिए ।१६-१७ पाटला के लिए

नमस्कार हो--इस मन्व का उच्चारण करके देवी और शिव के चरणों

का यजन करे । शिवाय नमः--जया्यै नमः---इनका संकीतेंन करके

दोनों देवों के दोनो गुल्फों का अर्चन करे ।१८। त्रिगुण रुद्र का नम-

स्कार है-भवानीं के लिए नमस्कार दै--इन मन्धो से दोनों जंघाओं

की अर्चना करनी चाहिए, शिवा रुद्रे श्बरा को तथा विजया को नम-

स्कार है--इनसे दोनों जानुओं का पूजन करें | हरिकेश और वरदाके

लिए नमस्कार है-इनका संकीत्तन करवे दोनों ऊरुओं का यजन करे

१६॥ ईशा को नमस्कार-दससे ढेवी की कटिका तथा शक्कर के लिए

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