॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
संक्षिप्त मार्कण्डेयपुराण
जैमिनि-मार्कण्डेय-संवाद-- वपुको दुर्वासाका शाप
यद्योगिभिर्भवभयार्तिविनाशयोग्य-
मासाद्य वन्दितपतीव विविक्तचित्तैः।
तदः पुनातु हरिपादसरोजयुग्-
माविर्भवत्क्रमविलङ्भितभूर्भुवःस्वः
पायात्स वः सकलकल्मषभेददक्षः
क्षीरोदकुक्षिफणिभोगनिविष्टमूर्तिः ।
श्वासावधूतसलिलोत्कलिकाकगलः
सिन्धुः प्रनृत्यमिव यस्य करोति सङ्खात्॥ २॥
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्।
देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ॥ ३॥*
व्यासजीके शिष्य महातेजस्वी जैमिनिने तपस्या
शपि 9
॥१॥
और स्वाध्यायमें लगे हुए महामुनि मार्कण्डेयसे
पूछा-' भगवन्! महात्मा व्यासद्वारा प्रतिपादित
महाभारत अनेकं शास्त्रोके दोषरहित एवं उज्ज्वल
सिद्धान्तोंसे परिपूर्णं है । यह सहज शुद्ध अथवा
छन्द आदिक शुद्धिसे युक्त ओर साधु शब्दावलीसे
सुशोभित है। इसमें पहले पूर्वपक्षका प्रतिपादन
करके फिर सिद्धान्त-पश्चकी स्थापना की गयी है ।
जैसे देवताओंमें विष्णु, मनुष्योंमें ब्राह्मण तथा
सम्पूर्ण आभूषणोंमें चूडामणि श्रेष्ठ है, जिस प्रकार
आयुधोंमें वज़ और इन्द्रियोंमें मन प्रधान माना
गया है, उसी प्रकार समस्त शास्त्रम महाभारत
उत्तम बताया गया है। इसमें धर्म, अर्थ, काम और
मोक्ष-इन चारों पुरुषार्थोंका वर्णन है। वे पुरुषार्थ
कहीं तो परस्पर सम्बद्ध हैं और कहाँ पृथक्-
पृथक् वर्णित हैं। इसके सिवा उनके अनुबन्धों
(विषय, सम्बन्ध, प्रयोजन और अधिकारी) -का
भी इसमें वर्णनं किया गया है।
" भगवन्! इस प्रकार यह महाभारत उपाख्यान
वेदोका विस्ताररूप है । इसमें बहुत-से विषयोंका
प्रतिपादन किया गया है। मैं इसे यथार्थं रूपसे
जानना चाहता हूँ और इसीलिये आपकी सेवामें
उपस्थित हुआ हूँ। जगत्की सृष्टि, पालन और
संहारके एकमात्र कारण सर्वव्यापी भगवान् जनार्दन
निर्गुण होकर भी मनुष्यरूपमें कैसे प्रकट हुए.
तथा दरुपदकुमारी कृष्णा अकेली ही पाँच पाण्डवोंकी
* जिनमें जन्म-मृत्युकूप संसारके भय और पीडाओंका नाश करनेकौ पूर्ण योग्यता है, पवित्र अन्त:करणवाले
योगिजन जिन्हें ध्यानमें देखकर बारंबार मस्तक झुकाते हैं, जो वामनरूपसे विराट्-रूप धारण करते समय प्रकट होकर