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महारानी क्वौ हुईं 7 इस विषयमे मुझे महान् सन्देह
है। द्रौपदोके पाँचों महारथी घुत्र, जिनका अभी |
बित्राह भी नहीं हुआ था और पाण्डब-जैसे वीर
जिनके रक्षक थे, अनाशवो भाँति कैसे मारे गये?
यै सारी बातें आप मुझे विस्तारपूर्वक जतानेकी
कुपा करें।'
मार्कण्डेयजी बोले--पुनिश्नेष्ठ ! यह मेरे लिते
संध्या-वन्दन आदि कर्म कश्नेका समय है।
तुप्दारे प्रश्नोंका उत्तर बिस्तारपूर्वक देना हैं, अत:
उसके लिये भह समय ठतम नहीं है । जैमिते ! में
तुम्हें ऐसे पक्षियॉका परिचय देता हूँ, जो तुम्हारे
प्रश्नोंका उत्तर देंगे और तुम्हारे सन्देहका निवारण
कणे । द्रोंण नापक पक्षीके चार पुत्र हैं, जो सद |
पक्षियोंमें श्रेष्ठ, तक्त्वज्ञ तथा शास्त्रोंका चिन्तन
करनेवाले हैं। उनके नाम है पिङ्गाक्ष, विबोध,
सुपुत्र और सुगुख। वेदों और नैकि तात्पर्यकों
समझनेमें उनकी बुद्धि कभी कुण्ठित नहीं हौती । |
वे चार पक्षी विन््ध्यपर्त्रतकों कन्दरामे निवास कर
है । हुम उन्होंके पास जाकर ये मभौ बातें पूछो।
जैमिनिने कहा ~ त्रन्! यह तो बड़ो अद्भुत
बात हैं कि पक्षियोंक्रो बोली मनुष्योके समान हो।
पक्षी होकर भी उन्होंने अत्यन्त दुर्लभ विज्ञान प्राप्त
किया है। यदि तिर्यक््-योनिमें ठनका जन्म हुआ है, |
ते उन्हें ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ ? वे चारों पक्षी
पुत्र कैसे बतलाये जाते हैं? विख्यात पक्षी द्रोण कौन
है, जिसके चार पुत्र ऐसे ज्ञानो हृ? उन
+ संक्षिप्त मार्कण्डेय पुराण #
मार्कण्डेयजी बोले- मुने! ध्यान देकर सूनो ।
पूर्वकालमें गन्दनबनके भीतर जब देवर्षिं नारद,
इन्द्र और अप्सराओंका समागम हुआ था, उसी
समयक घटना है। एक बार तारदजीने नन््दनवनमें
देवराज इन्द्रसे भेंट की । उनकी दृष्टि पड़ते ही इन्द्र
उतकर खड़े हौ गये और बड़े आदरके ताथ
अपना सिंहासन उन्हें अैठनेकों दिया। वहाँ खड़ी
हुई अप्सराओंने भी देवर्षिं नारदको विनीत भावसे
प्रस्तकू झुकाया। उनके द्वारा पूजित हो नारदजीने
इन्द्रके बैठ जानेपर यथायोग्य कुशल -प्रश्नके अनन्तर
बड़ी मनोहर कथाएँ सुनायीं। उस बातचीतके
प्रसङ्गं ही इन्द्रने महामुनरि नारदसे कहा--' देवर्षे |
इन अष्सराओंमें जो आपको प्रिय जान पड़े, उसे
आज्ञा दीजिये, यहाँ नृत्य करे। रम्भा, भिश्रकेशी,
उर्वशो, तिलोत्तमा, घृताची अथवा मेंनका--जिसमें
आपकी रुचि हो, उसौका नृत्य देखिये।' इन्द्रकी
यह बात सुनकर द्विजश्नेष्ठ नारदजीने विनयपूर्वक
खड़ी हुई अप्सराओंसे कुछ सोच्चकर क्हा--' तुम
सब लोगॉमेंसे जो अपनेकों रूप और उदारता
आदि गुणोंमें मवसे श्रेष्त मानती हो, व्ही पेरे
मापने यहाँ नृत्व करे।'
मार्कण्डेयजी कहते हैं--मुनिकी यह बात
सुनते ही वे विनीत अप्सराएँ एक-एक करके
आपसमें कहने लगीं-- अरी ! मेँ ही गुणोंमें सबसे
श्रेष्ठ हूँ, तू नहीं ।' इसपर दूसरी कहती, 'तू नहीं,
मैं श्रेष्ठ हूँ।! उनका बह अज्जानपूर्ण विचाद देखकर
महःत्भा पक्षियोंकों धर्मका ज्ञान किस प्रकार हुआ ?। इन्द्रने कहा--' अरी ! मुनिसे ही पूछो, वे ही बतायेंगे
क्रपंश: भूर्लोक. भुबलौक तथा स्वर्गलोककों भी कॉम गये थे, ओहरिके वे दोनों चरणकमल आपलगोंकों पवित्र
करै रहें। जो समस्त पायोंका सार करने। समर्थ हैं, जिनका श्रचिग्रह क्षीराः२क गमे हेषनागकी शय्यापर
रायन करता हैं, उन्हों मौषनागक। आस-वायुसे कम्पित हुए जलको उत्ताल तरङ्गोके कारण विकराल प्रतीत होनेचाला
रगृ जिनका सारुङ्कः पाकर प्रसन्नताके यारे नृज्म-रा करता चान यड़ता है, ले भगवान् नारायणय आपलोगॉको रक्षा
करते रहें। भगवान नारायण, पुरुषब्रेष्ठ नर, उनको लीला प्रकट करनेवाली भगवती सरस्वती तथा उसके चक्ता महर्षि
वेडब्यासको नमस्कार करके 'जथ' (इत्तिद्ास-पुराण) का पाठ करना चाहिये।