उत्तरभागे बट्वत्वारिशो5ध्याव:
पुरुषाय पुराणाय सत्तामात्रस्वरूपिणे॥५८॥
नमः सांख्याय योगाय केवलाव नोऽस्तु ते।
धजञानाभिगप्याय निष्कलाय नमोऽस्तु ते॥५९॥
नस्ते योगतत्त्वाय महायोगेश्वराव च।
परावराणां प्रभवे वेदवेज्ञाय ते नपः॥६०॥
हजारों सिरवाले तथा हजारे नेत्रवाते आपको नमस्कार
है। हजारों हथा तथा हजारों परमात्मा को नमस्कार है।
आनन्दरूप आपको नमस्कार है। आप मायातीत को
नमस्कार है। गृढ़ (रहस्यमय) शरीरवाले आपको नमस्कार
है। आप निर्गुण को नमस्कार है। पुराणपुरुष तथा सत्तामात्र
स्वरूप वाले आपको नमस्कार है। स्रांख्य तथा योगरूप
आपको नमस्कार है। अद्वितीय (तत्वकूप) आपको
नमस्कार है। धर्म तथा ज्ञान दार प्राप्त होने वाले आपको
तथा निष्कल आपको यार-बार नमस्कार है। व्योमतत्व रूप
महायोगेश्वर को नमस्कार है। पर तथा अवर पदार्थों को
उत्पन्न करने बाले वेद द्वारा वेद्य आपको नमस्कार है।
मो बुद्धाय शुद्धाय नमो युक्ताय हेतवे।
जमो नपो नमस्तुभ्यं मायिने वेधसे नपः॥६१॥
ज्ञानस्वरूप, शुद्ध (निराकार) स्वरूप आपको नमस्कार
है। योगयुक्त तथा (जगत् के) हेतुरूप को नप्रस्कार है।
आपको बार-बार नमस्कार हैं। मायावी (माया के
नियन्त्रक) वेधा (विश्व-प्रपक्ष के ख्रष्ट) को नमस्कार है।
पपोऽस्तु ते वराहाय नारसिंहाय ते नमः।
वामनाय नपर्तुष्वं हषीकेजञाव ते नमः॥६२॥
स्वर्गापवर्गदानाय नमोऽग्रतिहतात्मने।
नमो योगाधिगम्याय योगिने योगदापिमे॥६३॥
देवानां एताये तुषं देवार्तिशमनाय ते।
आपके वऱहरूप को नमस्कार है। नरसिंह रूपधारी को
नपप्कार है। वामनरूप आपको नमस्कार है। आप हृषोकेश
(इच्धिय के शश) को नमस्कार है। कालरुद्र को नमस्कार
है। कालरूप आपको नमस्कार है। स्वगं तथा अपवर्ग प्रदान
करने बाले और अप्रतिहत आत्मा (शाश्वत अद्वितीय) को
नपस्कार है। योगाधिगप्य, योगी और योगदाता को नपस्कार
है। देवताओं के स्वामी तथा देवताओं के कष्ट का शमनं
करने वाले आपको नमस्कार है।
भगव॑स्त्वग्रसादेन सर्वसंसारनाशनम्॥ ६४॥
अस्माभिविंदित जानं यज्जात्वायृतमह्लुते।
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भावन्! आपके अनुग्रह से सम्पूर्ण संसार का नाश करना
वाले ज्ञान को हम ने जान लिया है। जिसे जानकर मनुष्य
अपृतत्व को प्राप्त कर लेता है।
श्रुताक्ष विविधा धरपा वंशा मन्वतराणि चा।६५॥
सर्गश्च प्रतिसर्गश्च ग्रह्ाण्डस्यास्य विस्तर:।
त्वं हि सर्वजगत्साक्षी विश्वो नारायण: पर:॥६६॥
ज्ातुर्मास्यनस्तात्या त्वामेव शरणङ्गताः।
हमने विविध प्रकार के धर्म, वंश, मन्वन्तर आदि को
सुना है तथा इस ब्रह्माण्ड के सर्गं और प्रतिसर्ग को भी
विस्तारपूर्वक सुना है। आप ही सम्पूर्ण जग.त के साक्षी,
विश्वरूप, परमात्मा नारायण हैं। आप हो अनन्तात्मा हैं, हम
आपकी शरण में आते हैं। आप ही इस जगत से मुक्ति
दिलाने के योग्य हैं।
मूत उवाच
एतदः कितं विप्रा भोगमोक्षप्रदायकम्॥ ६७॥
कौर्प पुराणमखिलं यज्जगाद गदाधर ः।
सूत ने कहा--हे ब्राह्मणो ! भोग और मुक्तिदायक इस कूर्म
पुराण को पूर्ण रूप से आप को कहा है, जिसे गदाधर विष्णु
ने स्वयं कहा धा।
अस्मिन् पुराणे लयास्तु सम्भवः कथितः पुरा॥६८॥
प्रोहायाशेषभूतानां वासुदेवेन योजितः।
प्रजापतीनां सर्गास्तु वर्णयर्पाच वृत्तयः।। ६९॥
धर्मर्थकापमोक्षाणां यथावल्लक्षणं शुभम्।
इस पुराण में सर्वप्रथम प्राणियों के अज्ञान हेतु भगवान्
विष्णु द्वारा रचित लक्ष्मों को उत्पत्ति का वर्णन है। सभी
प्राणियों को मोहित करने के लिए यह लक्ष्मी जन्म का
विषय बुद्धिमान् वासुदेव ने योजित किया था। इसी प्रकार
इस कूं पुगण में प्रजापतियों का सर्ग, वर्णो के धर्म, प्रत्येक
वर्णो की वृत्तियों अर्थात् आजीविका कही गईं है, इसी प्रकार
धर्म-अर्थ-काप-मोक्ष का शुभ लक्षण भी यथावत् कहा
गया है
पितामहस्य विष्णोश्च पहेशस्य च धोपतः।॥॥७०॥
एकत्व पृथक्त्वज्ञ विशेषज्ञोपवर्णित:।
भक्तानां लक्षणम्रोक्त समाचारश्च भोजनप्॥।७१॥
वर्णाश्रपाणां कथितं यथावदिह लक्षणम्।
आदिसर्गस्ततः प्ादण्डावरणसपकम्॥७२॥
हिरण्यगर्भः सर्गश्च कीर्तितो पुनिपुङ्गवाः।