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८ * संक्षिम ब्रह्मपुराण *

पृथक्‌ थे । ऋषियोंके चत बने, वृहस्पतिते | गमे वि विख्यात है। ट ५०५६४ ही

दुहनेका काम किया, य ब्रह्म उनका दूध, अधिकारमें थी। मधु भके व्याप्त

था और वेद हौ उनके पात्र थे। देवताओंने, होनेके कारण यह मेदिनी कहलाती है। फिर राजा

सुवर्णमय पात्र लेकर पुष्टिकारक दूध दुहा । उनके |

लिये इन्द्र बछड़ा बने और भगवान्‌ सूर्यने दुहनेका |

काम किया। पितरोंका चाँदीका पात्र था। प्रतापी | [ऋता रार्‌

यम बछड़ा बने, अन्तकने दूध दुहा । उनके दृधको । ८

'स्वधा' नाम दिया गया है। नागोंने तक्षककों [>

ब्रछड़ा बनाया तुप्बीका पात्र रखा । ऐरावत नागसे |

दुहनेका काम लिया और बिपरूपी दुग्धका दोहन | [

किया। असुरोंमें मधु दुहनेवाला बना। उसने |

मायापय दृध दुहा। उस समय विरोचन बछड़ा

बना धा और लोहेके पात्रमे दूध दुहा गया था। | 4

यक्षोंका कच्चा पात्र था। कुबेर बछड़ा बने थे। | (कषु)

रजतनाभ यक्ष दुहनेवाला था और अन्तर्धानः 900

होनेकी विद्या ही उनका दूध था। राक्षसेद्रोर्पे ; 5.

* ° हु ५ ५१२ ५५ ५९. च =

सुमाली नामका राक्षस बछड़ा बना । रजतनाभ | - न २० 0०

दुहनेबाला था। उसने कपालरूपी पात्रमें शोणितरूपी | पृथुकी आज्ञाके अनुसार भूदेयी उनकी पुत्री बन

दूधका दोहन किया गन्धर्वो्में चित्ररथने बछड़ेका | गयी, इसलिये इसे पृथ्वी भी कहते हैं। पृथुने इस

काम पूरा किया। कमल हो उनका पात्र धा।| पृथ्वीका विभाग और शोधनं किया, जिससे यह

सुरुचि दुहनेवाला था और पवित्र सुगन्ध ही, अन्नकी खान और समृद्धिशालिनी बन गयी गाँवों

उनका दुध था। पर्वतोंमें महागिरि मेरुने हिसवान्‌को | और नगरोंके कारण इसकी बड़ी शोभा होते

वदा बनाया और स्वयं दुहनेवाला बनकर | लगी । वेन-कुमार महाराज पृथुका ऐसा ही प्रभाव

शिलामय पात्रमें रत्नों एवं ओषधिर्योको दूधके | था। इसमें संदेह नहीं कि वे समस्त प्राणियोंके

रुपमें दुह्म। वृक्षों प्लक्ष (पाकड) बछड़ा था।, पूजनीय और वन्दनीय हैँ । वेद-वेदाङ्गोकि पारङ्गत

खिले हुए शालके वृक्षने दुहनेका काम किया। | विद्वान्‌ ब्राह्मणोंको भी महाराज पृथुकी ही वन्दना

पलाशका पात्र था और जलने तथा कटनेपर पुनः | करनी चाहिये, क्योकि वे सनातन ब्रह्मयोनि हैं।

अङ्कुरित हो जाना ही उनका दूध था। | राज्यकी इच्छा रखनेवाले राजाओंके लिये भी

इस प्रकार सबका धारण-पोषण करनेवाली | परम प्रतापी महाराज पृथु ही वन्दनीय हैं। युद्धमें

यह पावने वसुन्धरा समस्त चराचर जगत्‌की , विजयकौ कामना करनेवाले पराक्रमी योद्धाओंको

आधारभूता तथा उत्पत्तिस्थाने है । यह सब । भी उन्हें मस्तक झुकाना चाहिये । क्योंकि योद्धाओंमें

कामनाओंको देनेवाली तथा सब प्रकारके अन्नोंको | वे अग्रगण्य थे। जो सैनिक राजा पृथुका नाम

अङ्कुरित करनेवालौ है । गोरूपा पृथ्वी मेदिनीके, लेकर संग्राममे जाता है, बह भयङ्कर संग्रामसे भी

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