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जाकर मुनिसे अस्त्र-शस्त्रोंकी शिक्षा पायी और

ताड़का नामवाली निशाचरीका वध किया। फिर

उन बलवान्‌ वीरने मारीच नामक राक्षसको

मानवास्तरसे मोहित करके दूर फक दिया और

यज्ञविघातक राक्षस सुबाहुको दल-बलसहित मार

डाला। इसके बाद वे कुछ कालतक मुनिके

सिद्धाश्रममें ही रहे। तत्पश्चात्‌ विश्वामित्र आदि

महर्षियोंके साथ लक्ष्मणसहित श्रीराम मिधिला-

नरेशका धनुष-यज्ञ देखनेके लिये गये॥ २-९॥

(अपनी माता अहल्याके उद्धारकी वार्ता

सुनकर संतुष्ट हुए] शतानन्दजीने निमित्त-कारण

बनकर श्रीरामसे विश्वामित्र मुनिके प्रभावकाः

वर्णन किया। राजा जनकने अपने यज्ञमें मुनियोंसहित

श्रीरामचन्द्रजीका पूजन किया। श्रीरामने धनुषको

चढ़ा दिया और उसे अनायास ही तोड़ डाला।

कन्या सीताको, जिसके विवाहके लिये पराक्रम

ही शुल्क निश्चित किया गया था, श्रीरामचन्द्रजीको

समर्पित किया। श्रीरामने भी अपने पिता राजा

दशरथ आदि गुरुजनोंके मिथिलामें पधारनेपर

सबके सामने सीताका विधिपूर्बक पाणिग्रहण

किया। उस समय लक्ष्मणने भी मिधिलेश-कन्या

उर्मिलाकों अपनी पत्नी बनाया। राजा जनकके

छोटे भाई कुशध्वज थे। उनकी दो कन्याएं थीं--

श्रुतकीर्तिं ओर माण्डवी। इनमें माण्डवीके साथ

भरतने और श्रुतकीर्तिके साथ शत्रुघ्नने विवाह

किया। तदनन्तर राजा जनकसे भलीभाँति पूजित

हो श्रीरामचन्द्रजीने वसिष्ठ आदि महर्षियोंके साथ

वहाँसे प्रस्थान किया। मार्गमें जमदग्निनन्दन

परशुरामको जीतकर वे अयोध्या पहुँचे। वहाँ

जानेपर भरत और शत्रुघ्न अपने मामा राजा

तदनन्तर महाराज जनकने अपनी अयोनिजा | युधाजित्‌की राजधानीको चले गये॥ १०--१५॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'श्रीरामावण-कथाके अन्तर्गत बालकाण्डमें आये हुए

विषयका वर्णन ' सम्बन्धी पत्तिवां अध्याय पूरा हुआ॥५॥

~

छठा अध्याय

अयोध्याकाण्डकी संक्षिप्त कथा

नारदजी कहते हैं--भरतके ननिहाल चले

जानेपर [लक्ष्मणसहित] श्रीरामचनद्रजी ही पिता-

माता आदिके सेवा-सत्कारमें रहने लगे। एक

दिन राजा दशरथने श्रीरामचनद्रजीसे कहा--

“रघुनन्दन! मेरी बात सुनो। तुम्हारे गुणोंपर

अनुरक्त हो प्रजाजनोंने मन-ही-मन तुम्हें राज-

सिंहासनपर अभिषिक्त कर दिया है--प्रजाकी यह

प्रातःकाल मैं तुम्हें युवराजपद प्रदान कर दूँगा।

आज रातमें तुम सीता-सहित उत्तम तव्रतका पालन

करते हुए संयमपूर्वक रहो ।' राजाके आठ मन्त्रियों

तथा वसिष्ठजीने भी उनकी इस बातका अनुमोदन

किया। उन आठ मन्त्रियोंके नाम इस प्रकार हैं--

दृष्टि, जयन्त, विजय, सिद्धार्थ, राज्यवर्धन, अशोक,

धर्मपाल तथा सुमन्त्रं । इनके अतिरिक्त वसिष्ठजी

हार्दिक इच्छा है कि तुम युवराज बनो; अत: कल | भी [मन्त्रणा देते थे] । पिता और मन्त्रियोंकी बातें

१. यहाँ मूले, 'प्रभावत:' पद ' प्रभावः ' के अर्धे है। यहाँ ' तसि" प्रत्यय पहुम्यन्तका बोधक नहीं है। सार्वविभकछिक 'ठसि' के

नियमानुसार प्रथमान्त पदसे यहाँ " तसि " प्रत्यय हुआ है, ऐसा मानना चाहिये।

२. वाल्मीकोय रामायण, बालकाण्ड ७। ३ में इन मन्त्रियोंके नाम इस प्रकार आये है ~ धृष्टि, जयन्त, विजय, सुराष्ट्र, राष्ट्रवर्धन, अकोप,

धर्मपफाल तथा सुमन्त्र ।

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