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३५६ । [ ब्रह्माण्ड पुराण

इत्थं सुरक्षितं श्रत्वा ललिताणिविरोदरम्‌ ।

भूयः संञ्वरमापन्नः प्रचण्डो भंडदानवः || ४२

अन्य शक्तियों का भी महान बल जो कि शक्तियाँ बहुत महान भौं

गत क्लम होकर विशंकदोदर शाल में प्रबिष्ट हुआ था ।३६। दण्डिनी ने

राजचक्‌ रथेन्द्र को मध्य में स्थापित कर दिया था और उसकी बाँई ओर

अपना रथ रक्‍्खा था तथा दाहिनी ओर श्यामला का रथ स्थापित किया

या ।२३७। पीछे के भाग में सम्पदेशी और आगे हयासना को नियुक्त किया

था। इस रीति से सब ओर में चक्राज रथ को संवेशित किया था ।३५।

द्वार भाग में स्तम्भिनो नाम वाली देवी को नियोजित किया था जो बीस

भक्षौहिणो सेना से समन्वित थी और जलते हुए दण्डायुधों से बहुत ही उदग्र

थी ।३६। जो दण्डनाथा की देवी विघ्न देवी--इस नाम से प्रसिद्ध थी उसने

इस प्रकार से शिविर को सुरक्षित बना दिया था तथा योत्रिणी-पूषणी और

उदित भूयिष्ठा ने फिर युद्ध का उपाश्रय लिया था ।४०। किलकिल की ध्वनि

करके वह शक्ति की विशाल सेना अग्नि के प्राकार वाले द्वार बड़ा घोष

करती हुई बाहिर निकली थी ।४१। ललिता देवी के शिविर के मध्यभाग

को इस प्रकार से सुरक्षित हुआ श्रवण करके वह्‌ परम प्रचण्ड भंड दानव

पुन: बड़े ही सम्ताप को प्राप्त हो गया था ।४२॥

मन्त्रयित्वा पुनस्तत्र कुटिलाक्षपुरोगमैः ।

विषंगेण विशुक्‌ णासममात्मसुतैरपि ।।४३

एकौघस्य प्रसारेण युद्ध कतु महाबलः ।

चतुर्बाहु मुखान्पत्रांश्चतुजंलधिसन्निभान्‌ ।। ४४

चतुरान्युद्धकृत्येषु समाहूय स दानवः ।

?षयामास युद्धाय भण्डश्चण्डक्‌ .धा ज्वलन्‌ ॥४५

त्रिणत्संख्याश्च तत्पुत्रा महाकाया महाबलाः ।

तेषां नामानि वक्ष्यामि समाकणेय कुम्भज ॥४६

चतुर्बाहुश्रको राक्षस्तृतीयस्तु चतुःशिरा ।

व ज्रघोषश्चोध्वरकैशो महाकायो महाहनुः ।।४७

मखशतरुमं खस्कन्दी सिंहघोषः सिरालक: ।

लूनः पट्टसेनश्च पुराजिल्पूवं मारकः ।। ४८

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