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भी करना चाहिए ।१५। इस लोक में आपके समान अन्य कोई भी तैज-बल-
ज्ञान और यश में समानता रखने वाला नहीं है और आप सबसमें परम
श्रेछठतम हैं ।१६। उसके अनन्तर अप अपने निवास गृहे में पहुँचकर अपने
माता-पिता की शुश्र बा करो । और जब भी समय प्राप्त हो तब तपश्चर्या
करो । इससे सिद्धि आपके करतल में स्थित हो जायगी ।१७। फिर श्री-
राधिका के ईश्वर ने भो राधाजी की गोद से गणेशजी को अपनी बाहुओं से
स्वयं उठाकर अपने वक्ष.स्थल से लग लिया था और भली-भाँति स्नेहा-
लिजुन करके फिर उनकी सिन्नता परशुराम के साथ करादी थी १८ है
शत्र ओं दमन करने वाले ! इसके उपरान्त उस समय में भगवान श्रीकृष्ण
की आज्ञा से महान भाग बाले बेइंदोनों ही परशुराम और गणेश बहुत प्रीति
बाते हो गये थे अर्थात् उन दोनों की बहुत ही गहरी प्रीतिमयी मित्रता हो
गयी थी और पहिले हुआ हष भाव बिल्कुल ही उनके हृदयों से निकल गया
था ।१६। इसी बीच में परम सतो-साध्वी श्रोकृष्ण चन्द्र की प्रिया श्रीराधा
देवी अधिक आनन्द से समन्वित होकर प्रसन्न मुख कमल वाली ने उन दोनों
के लिए वर दिया था ।२०। श्रीराश्राजी ने कहा-है पुत्रो इस सम्पूर्ण जगत
के द्वारा वन्दना करने के योगय--असह्य तेज वाले और प्रिय कार्य का
आवाहन करने वाले तथा आप दोनों ही विशेष रूप से मेरे भक्त हो
जावें २१।
भवतोरनाम चोच्चार्य यत्कार्यं यः समारभेत् । _
सिद्धि प्रयातु तत्सवं मत्प्रसादाद्धि तस्यतु (२२
अथोवाच जगन्माता भवानी भववल्लभा ।
वत्स राप प्रसन्नाऽहं तुभ्यं क प्रददे वरम् ।
तं प्रब्रूहि महाभाग भयः त्यक्तवा सुदूरतः ।
राम उवाच-
जन्मांतरसटचखं षु येषु येषु ब्रजाम्यहम् ।।२३
कृष्णयो्भैवयोरभक्तो भविष्यामीति देहि मे ।
अभेदेन च पश्यामि कृष्णौ चापि भवौ तथा ॥\ २४
, पार्वत्युवाच
` एवरमस्तु महाभाग भक्तोऽसि भवकृष्णयोः ।