३८ |] [ ब्रह्माण्ड पुराण
अपने बालक के मुख कमल की देखने की इच्छा बाली होकर उसी आश्रम
के समीप में सुख पू्वंक निवास कर रही थी ।८५। जब प्रसव काल उपस्थित
हुआ तो उसने उसी ओर्व मुनि के आश्रम में प्रसव किया था ।८६। उसी मुनि
ने आपका समस्त जातकर्म अदि संस्कार किया था और आप उसी मुनि
की कृपा के भाजन होते हुए ओर्वाश्रय में ही पालित होकर बड़े हुए हैं ॥८8।
है अरिन्दम ! इसके पश्चात् जो भी कुछ हुआ है वह आपको सब ज्ञात ही
है। इस प्रकार के प्रभाव वाला राजा कात्तंवीयं इस भूमण्डल परं हुआ था
।८८। इसी ब्रत के प्रभाव से वह लोको में प्रख्यात हुआ है । जिसके बंश में
समुपत्न होने वालों के द्वारा आपके पिता को युद्ध में जीत लिया गया है
और वन में चले गये थे ।८६। उसका सम्पूर्ण वृत्तान्त मैंने आपको कहकर
सुना दिया है और यह सब व्रतो में उत्तम घत मैंने आपक्रो बतला दिया है
।€०। यह ऐसा व्रत है कि लोकों में मन्त्रों ओर तन्त्रों कें सह्दित सब ही
लौकिक फल को प्रदान कर देने वाला है। जो इस ब्रत को राजा किया
करता है उसको चारों (धर्म-अर्थ--काम -मोक्ष) पुरुषार्थो की प्राप्ति हो
जाया करती है ।६१।
भवत्यभीप्सितं किचिह _ल्लेभं भवनत्रये ।
संक्षेपेण मयाख्यातं ब्रतं हैहयभूभुज: ।
जामदग्न्यस्य च मुने किमन्यत्कथयामि ते ॥६२
जौमिनिरुवाच- |
तततः स सगरो राजा कृतांजलिपुटो सुनिम् ॥॥६३
उवाच भगवन्नेतत्कतुं मिच्छाम्यहः व्रतम् ।
सम्यक्तमुपदेशेन तन्नानुज्ञों प्रयच्छ मे १९४
कमेणानेन विप्र्षे कृतार्थोऽस्मि न संणयः ।
इत्युक्तस्तेन राज्ञा तु तथेत्युक्त्वा महामुनिः ।।€ ५
दीक्षयामास राजानं णास्वोक्तं नेव वर्त्मना ।
स दीक्षितो वसिष्ठन सगरो राजसत्तमः ॥& ६
द्रव्याण्यानीय विधिवत्प्रचचार शुभव्रतम् ।
पजयित्वा जगन्नाथं विधिना तेन पार्थिव: ॥&७