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* संक्षिप्त श्रीवराहपुराण *

सम्पन होनेके कारण इसकी प्रभा सदा दीप्त | सुन्दर सुवर्ण देवताओंके अनुपम आभूषणोंका

होती रहती है ।

मेरुगिरिके पूर्वभागमें मन्दराचल, दक्षिणम

गन्धमादन, पश्चिमर्मे विपुल और पार्श्रभागमें

सुपार्शपर्वत हैं। उन पर्वतोंके शिखरोंपर चार

महान्‌ वृक्ष हैं। अत्यन्त समृद्धिशाली देवता, दैत्य

और अप्सराएँ उनकी सुरक्षामें संनद्ध रहते हैं।

मन्दर-गिरिके शिखरपर कदम्ब नामसे प्रसिद्ध

एक वृक्ष है । उस कदम्बकी शाखाएँ शिखर-जैसी

ऊँची हैं और उसके फूल घड़े-जैसे विशाल हैं,

जिनकी गन्ध बड़ी ही हृदयहारी है। वह कदम्ब

सभी कालमें विराजमान रहकर शोभा पाता है।

यह वृक्ष अपनी गन्धसे दिशाओंको सदा सुगन्धित

करता रहता है । इसका नाम " भद्राश्च' है । वर्षोकी

गणनामें केतुमालवर्षमें इसका प्रादुभवि हुआ था।

यह विशाल वृक्ष कीर्ति, रूप और शोभासे

सम्पन्त है। यहाँ साक्षात्‌ भगवान्‌ नारायण भी

सिद्धो एवं देवताओंसे सेवित होकर विराजते हैं।

पहले भगवान्‌ श्रीहरिने इस लोकके विषयमें पूछा

था और देवताओंने उसके शिखरकी बार-बार

प्रशंसा की। इससे सम्पूर्ण मनुष्योंके स्वामी

भगवानूने उस वर्षका अवलोकन किया।

इस मेरुपर्वतके दक्षिण ओर दो बड़े शिखर

ओर है । वहाँ फलों, फूलों और महान्‌ शाखाओंसे

सुशोभित जम्बू वृक्षोंका एक वन है। उस वृक्षसमूहसे

पुराण-प्रसिद्ध, स्वादिष्ट, गन्धयुक्त एवं अमृतकी

तुलना करनेवाले बहुत-से फल उस पर्वतकी

चोटीपर प्रायः गिरते रहते हैं। इन फलोंके रससे

उत्पन्न उस महान्‌ श्रेष्ठ पर्बवतसे एक विस्तृत नदौ

बहती हैं, जिससे अग्निके समान चमकोला

जाम्बूनद नामक सुवर्ण जन जाता है। वह अत्यन्त

काम करता है। देवता, दानव, गन्धर्व, यक्ष-

राक्षस और गुह्मकगण अमृतकी तुलना करनेवाले

इन जम्बू-फलोंसे निकले हुए आसवको प्रसनतापूर्वक

पीते हैं। इसीलिये दक्षिणके वर्षो उस वर्षकी

“जम्बूलोक' संज्ञासे प्रसिद्धि है। मानव-समाज

इसे हौ जम्बूद्वीप भी कहता है।

इस मेरुपर्वतके दक्षिणमें बहुत दूरतक फैला

हुआ एक विशाल पीपलका वृक्ष है। उस वृक्षकी

ऊँचाई अत्यन्त ऊपरतक फैली हुई है तथा उसकी

बड़ी-बड़ी शाखाएँ हैं। वह अनेक प्राणियों तथा

श्रेष्ठ गुणोंका आश्रय है, जिसका नाम “केतुमाल'

है। अब इस वृक्षकी विशेषताका वर्णन करता हूँ,

सुनो। क्षीरसमुद्रके मन्थनके समय इन्द्रने इस

वृक्षको चैत्य मानकर इसकी शाखाको मालाके

रूपमे अपने गलेमें धारण कर लिया, तभीसे यह

वृक्ष “केतुमाल ' नामसे विख्यात हो गया और इस

वर्षको भी ' केतुमाल ' नामसे प्रसिद्धि हुई ।

सुपार्श्वनामक पर्वतके उत्तरशृङ्घपर एक महान्‌

वर-वृक्ष है। इस वृक्षकी शाखाएँ बडी विशाल

हैं, जिनका विस्तार तीन योजनतक है । यह वृक्ष

केतुमाल और इलावृतवर्षोंकी सीमापर है । इसके

चारों ओर भौति- भौतिकी लम्बौ शाखाएँ अलंकारके

रूपमे विराजमान हैं तथा यह सिद्धगणौसे सदा

सुसेवित रहता है। ब्रह्माजीके मानस-पुत्र वहां

प्रायः आते तथा उसकी प्रशंसा करते है । वहाँ

सात कुरूमहात्मा निवास करते हैं, जिनके नामसे

यह “कुरुवर्ष' प्रसिद्ध है । कुस्वर्षके स्वामी वे

सातो महात्मा पुरुष भी स्वर्ग एवं वरुणादि

देवलोकोंमें प्रसिद्ध हैं।

[अध्याय ७७]

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