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१२८

येनैकदेष्टेण समुद्धतेयं

धरा चला धारयतीह सर्वम्‌।

शेते ग्रसित्वा सकलं जगद्‌ य-

स्तमीड्यमीशं प्रणतोऽस्मि विष्णुम्‌ ॥ २६

अंशावतीर्णेन च येन गर्भ

हृतानि तेजांसि महासुराणाम्‌।

नमामि ५ देवमनन्तमीश-

मशेषसंसारतरोः कुटारम्‌॥ २७

देवो जगद्योनिरयं महात्मा

स॒ षोडशांशेन महाऽसुरेनद्राः।

सुरेन्द्रमातुर्जठरं प्रविष्टो

हृतानि वस्तेन बलं वपूंषि॥ २८

बलिरयाच

तात कोऽयं हरिर्नाम यतो नो भयमागतम्‌।

सन्ति मे शतशो दैत्या वासुदेवबलाधिकाः ॥ २९

विप्रचित्तिः शिवि: शङ्कुरयःशङ्कुस्तथैव च।

हयशिरा अश्वशिरा भङ्गकारो महाहनुः ॥ ३०

प्रतापी प्रघशः शम्भुः कुक्कुरा्चश्च दुर्जयः।

एते चान्ये च मे सन्ति दैतेया दानवास्तथा ॥ ३१

महाबला महावीर्या भूभारधरणक्षमाः।

एषामेकैकशः कृष्णो न वीर्यार्द्धेन सम्मित: ॥ ३२

लोमहर्षण उवाच

पौत्रस्यैतद्‌ वचः श्रुत्वा प्रह्वादो दैत्यसत्तमः।

सक्रोधश्च बलिं प्राह वैकुण्ठाक्षेपवादिनम्‌॥ ३३

विनाशमुपयास्यन्ति दैत्या ये चापि दानवाः ।

येषां त्वमीदृशों राजा दुवंद्धिरविवेकवान्‌॥ ३४

देवदेवं महाभागं वासुदेवमजं विभुम्‌।

त्वामृते पापसंकल्प कोऽन्य एवं वदिष्यति ॥ ३५

य एते भवता प्रोक्ताः समस्ता दैत्यदानवाः ।

सब्रह्मकास्तथा देवाः स्थावरान्ता विभूतयः ॥ ३६

त्वं चाहं च जगच्चेदं साद्विदुमनेदीवनम्‌।

ससमुद्रद्रीपलोकोऽयं यश्चेदं सचराचरम्‌ ॥ ३७

यस्याभिवाद्यवन्द्यस्य व्यापिनः परमात्मनः।

'एकांशांशकलाजन्म कस्तमेवं प्रवक्ष्यति ॥ ३८

* आओवामनपुराण*

[ अध्याय २९

जिनके द्वारा एक मोटे तथा बड़े दाँतसे निकाली गयी

चिरस्थायिनी पृथ्वी सभी कुछ धारण करनेमें समर्थ है

तथा जो समस्त संसारको अपनेमें स्थान देकर सोनेका

स्वाँग धारण करते हैं, उन स्तुत्य ईश विष्णुकों मैं प्रणाम

करता हूँ। जिन्होंने अपने अंशसे अदितिके गर्भमें आकर

महासुरोंक तेजका अपहरण कर लिया, उन समस्त

संसाररूपी वृक्षेके लिये कुठाररूप धारण करनेवाले

अनन्त देवाधीश्वरको मैं प्रणाम करता हूँ। हे महासुरो!

जगतुकी उत्पत्तिके स्थान वे ही महात्मा देव अपने

सोलहवें अंशकी कलासे इन्द्रकी माताके गर्भमें प्रविष्ट

हुए हैं और उन्होंने ही तुम लोगोंके शारीरिक बलको

अपहत कर लिया है॥ २४-२८॥

खलिने कहा-- तात! जिनसे हम सबको डर है

वे हरि कौन हैं? हमारे पास वासुदेवस अधिक

शक्तिशाली सैकड़ों दैत्य हैं; जैसे - विप्रचित्ति, रिचि,

शङ्कु, अयःशंकु, हयशिरा, अश्वशिरा, (विधरनं

करनेवाला) भज्जकार, महाहनु, प्रतापी, प्रघश, शम्भु,

कुक्कुराक्ष एवं दुर्जय । ये तथा अन्य भी ऐसे अनेक दैत्य

एवं दानव हैं। ये सभी महाबलवान्‌ तथा महापराक्रमी

एवं पृथ्यीके भारको धारण करनेमें समर्थ हैं। कृष्ण तो

हमारे इन वलयान्‌ दैत्योपिंसे पृथक्‌-पृथक्‌ एक-एकके

आधे बलके समान भी नहीं है॥ २९-३२॥

लोमहर्षणने कहा-- अपने पौत्रकौ इस उक्तिको

सुनकर दैत्यश्रेष्ठ प्रह्लाद क्रुद्ध हौ गये ओौर भगवान्‌कौ

निन्दा करनेवाले बलिसे बोले - बलि ! तैरे- जैसे विवेकहीन

एवं दुर्बुद्धि राजके साथ ये सारे दैत्य एवं दानव मारे

जागे । हे पापको ही सोचनेवाले पापबुद्धि ! तुम्हारे सिवा

ऐसा कौन है, जो देवाधिदेव महाभाग अज एवं

सर्वव्यापी वामुदेवको इस तरह कहेगा॥ ३३-- २५ ॥

तुमने जिन-जिनका नाम लिया है, वे सभी दैत्य

एवं दानव तथा ब्रह्माके साथ सभी देवता एवं चराचरकी

समस्त विभूतियाँ, तुम और मैं, पर्वत तथा वृक्ष, नदी

और वनसे युक्त सारा जगत्‌ तथा समुद्र एवं द्वीपोंसे युक्त

सम्पूर्ण लोक तथा चर और अचर जिन सर्ववन्द्य श्रेष्ठ

सर्वघ्यापी परमात्माके एक अंशकी अंशकलासे उत्पन्न

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