अध्याय ३१ ]+ यापनद्वारा तीते पग भूमिकी याचना तथा विराट्रूपसे तीनों लोकोंको तीन पगे नाप लेना* १३९
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सुतलं नाम पातालमधस्ताद् वसुधातलात्।
शक्तिशाली भगवान् विष्णुने पृथ्वीतलके नीचे
बलेर्दत्तं भगवता विष्णुना प्रभविष्णुना ॥ ६६ | स्थित सुतल नामक पातालको बलिके लिये दे दिया।
अथ दैत्येश्वरं प्राह विष्णुः सर्वेश्वेश्वरः।
तत् त्वया सलिलं दत्तं गृहीतं पाणिना मया ॥ ६७
कल्पप्रमाणं तस्पात् ते भविष्यत्यायुरुत्तमम्।
यैवस्वते तथाऽतीते काले मन्यन्ते तथा॥ ६८
सावर्णिके तु संप्राप्ते भवानिन्द्रो भविष्यति।
इदानीं भुवनं सर्वं दत्तं शक्राय वै पुरा॥६९
चतुर्युगव्यवस्था च साधिका होकसप्तति:।
नियन्तव्या मया सर्वे ये तस्य परिपन्थिनः ७०
तेनाहं परया भक्त्या पूर्वमाराधितो बले।
सुतलं नाम पातालं समासाद्य वचो मप॥ ७९
वसासुर ममादेशं यथावत्परिपालयन्।
तत्र॒ देवसुरञनोपेते प्रासादशतसंकुले ॥ ७२
प्रोतफुल्लपद्मसरसि हदशुद्धसरिद्वर ।
सुगन्धी रूपसप्यनो वराभरणभूषितः॥ ७३
स्रक्चन्दनादिदिग्धाङ्को नृत्यगीतमनोहरान्।
उपभुञ्जन् महाभोगान् विविधान् दानवेश्वर ॥ ७४
ममाज्ञया कालमिमं तिष्ठ स्त्रीशतसंवृतः।
यावत्सुरैश्च विप्रैश्च न विरोधं गमिष्यसि॥ ७५
तावत् त्वं भुड्झ्व संभोगान् सर्वकामसमन्वितान्।
यदा सुरैश्च विग्ैश्च विरोधं त्वं करिष्यसि।
बन्धिष्यन्ति तदा पाशा वारुणा धोरदर्शनाः ॥ ७६
कलिरुवाच
तत्रासतो मे पाताले भगवन् भवदाज्ञया ।
किं भविष्यत्युपादानमुपभोगोपपादकम्।
आप्यायितो येन देव स्मरेयं त्वामहं सदा ॥ ७७
औभगवातुवाच
दानान्यविधिदत्तानि श्राद्धान्यश्रोत्रियाणि च।
हुतान्यश्रद्धया यानि तानि दास्यन्ति ते फलम्॥ ७८
तदनन्तर सर्वेश्वर विष्णुने दैत्येश्वरसे कहा--मैंने तुम्हारे
द्वारा दानके लिये दिये हुए जलको अपने हाथमे ग्रहण
किया है; अतः तुम्हारी उत्तम आयु कल्पप्रमाणकी होगी
तथा वैवस्वत मन्वन्तरका काल व्यतीत होनेपर एवं
सायर्णिक पन्यन्तरके आनेपर तुम इन्द्रपद प्राप्त करोगे -
इन्द्र चनोगे। इस समयक्रे लिये मैंने समस्त भुवनको
पहले हो इन्द्रको दे रखा है। इकहत्तर चतुर्युगीके कालसे
कुछ अधिक कालतक जो समयक व्यवस्था है अर्थात्
एक मन्वन्तरके कालतक मैं उसके (इन्द्रके) बिरोधियोंको
अनुशासित करूँगा॥ ६६--७० ॥
बलि! पूर्वकालमें उसने बड़ी श्रद्धासे मेरो
आराधना की थी, अतः तुम मेरे कहनेसे सुतल नामक
पातालमें जाकर मेरे आदेशका भलीभाँति पालन करो
तथा देवताओंके मुखसे भरें-पूरे सैकड़ों प्रासादोंसे
पूर्ण विकसित कमलोंवाले सरोवर, हदो एवं शुद्ध
श्रेष्ट सरिताओंवाले उस स्थानपर निवास करो। दानवेश्वर!
सुगन्धिसे अनुलिप्त हो तथा श्रेष्ठ आभरणोंसे भूषित
एवं माला और चन्दन आदिसे अलंकृत सुन्दर
स्वरूपवाले तुम नृत्य और गीतसे युक्त विविध भाँतिके
महान् भोगोंका उपभोग करते हुए सैकड़ों स्त्रियोंसे
आवृत होकर इतने कालतक मेरी आज्ञासे यहाँ निवास
करो। जबतक तुम देवताओं एवं ब्राह्मणोंसे विरोध न
करोगे, तबतक समस्त काप्रनाओंसे युक्त भोगोंको
भोगोगे। किंतु जब तुम देवों एवं ब्राह्मणोंक साथ
विरोध करोगे तो देखनेमें भयंकर वरुणके पाश तुम्हें
बाँध लेंगे॥ ७१--७६॥
बलिने पूछा-- हे भगवन्! हे देव! आपको
आज्ञासे बहाँ पातालमें निवास करनेवाले मेरे भोगोंका
साधन क्या होगा ? जिससे तृप्त होकर मैं सदा आपका
स्मरण करूँगा॥७७॥
श्रीभगवानने कहा--अविधिपूर्वक दिये गये
दान, श्रोत्रिय ब्राह्मणसे रहित श्राद्ध तथा चिना श्रद्धाके
किये गये जो हवन हैं, वे तुम्हरे भाग होंगे।