बआहापर्व ]
» साम्बोपास्यानमें मगोंका वर्णन *
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समीप अनेक वर्णकी पताका होनी चाहिये ¦ वायुका ध्वजदण्ड
त्मैहका और हरिणके समीप कृष्णयर्णकी पताको होनी
चाहिये । भगवतीका ध्वजदण्ड सर्वधातुमय, उसके ऊपर
सिंहके समीप तीन रेगकी पताका होनी चाहिये। ``
इस प्रकार ध्वजका पहिले निर्माणकर उसका अधिवासन
करे। लक्षणके अनुसार वेदीका निर्माण करें, कलशकी
स्थापना कर सर्वषधि-जलसे ध्वजको स्न कराये। वेदीके
मध्यमें उसे खड़ाकर सभी उपचारोमे उसकी पुजा करें और
उसे पुष्पमाला पहिनाये, दिकपालोंकों बत्ठि देकर एक राततक
अधियासन करें। दूसरे दिन भोजन कराकर शुभ मुहूर्तम
स्वस्तिवाचन आदि मङ्गल -कृत्य सम्पन्न कर ध्वजको मन्दिरके
ऊपर आरूढ़ करे। ध्वजाग्रेशणके समय अनेक प्रक्छरके
वारको वजाये, ब्राह्मणगण वेद-ध्वति करें। इस प्रकार
देवालयपर ध्वजागेहण कराना चाहिये। ध्वजारोहण कराने-
वालेकी सम्पत्तिकी सदा वुद्धि होती रहती है और यह परम
गतिकों प्राप्त करता है। ध्वजरहित मन्दिरमे असुर निवास करते
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हैं, अतः ध्वजरहित मन्दिर नहीं रखना चाहिये। ध्वजारोहणके
समय इन मन्त्रोको पढ़ना चाहिये---
एड्रोहि भगवन् देव देववाहन वै खग ॥
श्रीकरः श्रीनिवासश्च जय जैत्रोपशोधित ।
व्योपरूप महारूप धपत्विस्त्वै च यै गतेः ॥
सांनिरध्य कुरू दण्डेऽस्मिन् साक्षी च ध्रुवतौ ब्रज ।
कुरु वृद्धि सदा कर्तुः प्रासादस्यार्कवल्छभ ॥
सौनिध्यं कान्ति स्वस्त्ययनं च पे । भयं सर्वविप्रा व्यपसरन्तु ॥
(ब्राह्मपयं १३८ । ५३--७६)
स्वच्छ दण्डम पताकाको प्रतिष्ठित करे तथा पताक्स्का
दर्शन करें। इस प्रकार भक्तिपर्वक जो रिका ध्वजारोपण
करता है, वह श्रेष्ठ भोगोंकों भोगकर सूर्यस्थेककों प्राप्त
करता है।
(अध्याय १३८)
साम्बोपाख्यानमें मगोंका वर्णन
साम्बने कहा--नारदजी ! आपकी कृपासे मुझे
सूर्यभगवानका प्रत्यक्ष दर्शन प्राप्त हुआ, उत्तम रूप भी प्राप्त
हुआ, कितु मेरा मन चित्तासे आकुल है, इस मूर्तिका पूजन
और रक्षण कौन करेगा ? इसे आप वतानेकी कृपा करें।
नारदजी खोले--साम्ब ! इस कार्यको कोई भी ब्राह्मण
स्वीकार नहीं करेगा, क्योंकि देवपूजा अर्थात् दैवधनसे अपना
निर्वाह करनेवाले ब्राह्मण देवलक कहें जाते हैं। जो लोग
ल्मेभवश देवधन और ब्राह्मण-धनको ग्रहण करते हैं, ये
नरकमें जाते हैं, अतः कोई भी ख्राह्मण देवताका पूजक नहीं
बनना चाहता। तुम भगवान् सूर्यकी शरणमें जाओ और
उन्हींसे पूछो कि कौन उनका विधि-विधानमे पूजन करेगा ?
अथवा गजा उग्रसेनके पुरोहितसे कहो, सम्भव है कि वे इस
कार्यकर स्वीकार कर लेँ।
जास्दजीकी इस बातकों सुनकर जाम्बयतीपुत्र साम्ब
उप्रसेनके पुरोहित गौरमुखके फस गये और उन्होंने उन्हें सादर
प्रणामकर कहा--'महाराज ! चैने सूर्यभगवान्का एक
विशाल मन्दिर बनवाया है, उसमें समस्त परियार तथा
परिच्छदो एवं पत्नियोंसहित उनकी प्रतिमा स्थापित की है और
अपने नामसे वहाँ एक नगर भी बसाया है। आपसे मेख यह
विनग्र निवेदन है कि आप उन्हें प्रहण करें |
गौरमुखने कहा-- साम्ब ! मैं ब्राह्मण हूँ और आप
राजा हैं। आपके द्वारा दिये गये इस प्रतिग्रहको लेनेपर मेरा
ब्राह्मणत्व नष्ट हो जायगा। दान लेना ब्राह्मणकः धर्म है, किंतु
देवप्रतिग्रह ग्राह्मणको नहीं लेना चाहिये। आप यह दान किसी
मगको दे दें, वही सूर्यदेवकी पूजाक अधिकारी है।
साघ्बने पूछा-- महागज ! मग कौन हैं ? कहाँ रहते
हैं किसके पुत्र है ? इनका क्या आचार है ? आप कृपाकर
चतायें।
गौरसुस्त बोले-- मग भगवान् सूर्य (अग्नि) तथा
निक्षुभाके पुत्र हैं। पूर्वजन्ममें निक्षुभा महर्षि ऋग्जिद्धको
अत्यन्त सुन्दर पुत्री थौ । एक बार उससे अप्रिका उल्लहून हो
गया । फलस्वरूप भगवान् सूर्य (अग्निस्वरूप) रुष्ट हो गये।
बादमें अग्निरूप भगवान् सूर्ये दरार निक्षुभाका जो पुत्र हुआ,
वही मग कहलाया। भगवान् सूर्यके वरदानसे ये ही
अग्निवेश उत्पन्न अव्यङ्गको धारण करनेवाले मग सूर्यके परम
भक्त हुए ओर सूर्यकी पूजाके लिये नियुक्तं हुए। भगवान्