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प॑० १ सू० १०० १४१

१०९०. यस्यानाप्तः सूर्यस्येव यापो भरेभरे वृत्रहा शुष्पो अस्ति ।

वृषन्तमः सखिभिः स्वेभिरेवैर्मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती ॥२॥

सूर्य की गति के सपान दुर्लभ गति वाते वृत्तनाशक इन्द्रदेव प्रत्येक संग्राम में शत्रुओं को प्रकम्पित करने

बाले हैं। ये पित्र रूप आक्रामक मरुतों के साथ मिलकर अतीव बलशाली द । ये इन्द्रदेव मरुद्गणों सहित हमारे

रक्षक हों ॥२ ॥

१०९१. दिवो न यस्य रेतसो दुघाना: पन्थासो यन्ति शवसापरीता:।

तरदद्वेषाः सासहिः पौस्येभिर्मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती ॥३ ॥

इन इन्द्रदेव के तिर्विघ्न मार्ग सूर्य किरणों के सदृश अन्तरिश्च के जलो का दोहन करने वाले है । ये अपने

पराक्रम से द्वेषियो का नाश करने वाले, शत्रुओं का पराभव कटने वाः+ और बलपूर्वक आगे-आगे गमन करने

वाते है, ये इनद्ररेव मरुद्गण के साथ हमारे रक्षक हो ॥३ ॥

१०९२. सो अद्भिरोभिरद्भिरस्तमो भूद्वृषा वृषभिः सरिख्रभि: सखा सन्‌।

ऋग्मिधिऋग्पी गातुभिर्ज्येष्ठो परुत्वान्नो धवत्विन्र ऊती ॥४ ॥

वे इ्द्रदेव अंगिरा ऋषियों में अतिशय पूज्य, मित्रों पे श्रष्ट मित्र, बलवानों में अतोव बलवान्‌ ,

ज्ञानियों में अतिज्ञान सम्पन्न और सामादिगात करने वालों में वरिष्ठ है । वे इद्धदेव मदरुद्गणो के साथ

हमारे रक्षक हों ॥४ ॥

१०९३. स सूनुभिर्न रुद्रेभिऋभ्वा नृषाहो सासह्वाँ अमित्रान्‌ ।

सनीकेभि: श्रवस्यानि तूर्वन्मरुत्वान्नो भवत्विद्धर ऊती ॥५ ॥

महान्‌ इन्द्रदेव ने पुत्रों के समान प्रिय सहायक मरुतो के साथ पिलकर शत्रुओं को पराजित किया | साथ

रहने वाले मरुद्गण के साथ पिलकर आपने अत्रो की वृद्धि के निमित्त जलो को नोचे प्रवाहित किया । वे इन्द्रदेव

मरुतो के साथ हमारे रक्षक हों ॥५ ॥

१०९४. स मन्युमीः समदनस्य कर्तास्माकेभिर्नृभिः सूर्यं सनत्‌।

अस्मिनहन्त्सत्पतिः पुरुहूतो मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती ॥६ ॥

शत्रुओं के प्रति मन्यु (क्रोध) प्रदर्शित करने वाले ,हर्ष युक्त होकः युद्ध में प्रवृत्त रहने वाले, सत्वृत्तियों के

पालक ,बहुतों द्वार आवाहनौय इन्रदेव आज के दिन हमारे वीरो को लेकर नृप्र का नाश करें । सूर्य देव को प्रकट

करें । वे इन्धदेव मरतो के साथ मिलकर हमारे रक्षक हों ॥६ ॥

१०९५. तमूतयो रणयञ्छूरसातौ तं क्षेमस्य क्षितयः कृण्वत त्राम्‌ ।

स विश्वस्य करुणस्येश एको मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती ।७ ॥

सहायक परु्तो ने इन्द्रदेव को युद्ध में उत्तेजित किया । प्रजाओ ने अपनी रक्षा के निपित्त उन वीर मरुदगणों

को रक्षक बनाया । वे इन्द्रदेव अकेले ही सम्पूर्ण श्रेष्ठ कर्मा के नियन्ता है । ऐसे वे इनद्रदेव मरुद्गणो के साध

हमारी रक्षा करें ॥७ ॥

१०९६. तमप्सन्त शवस उत्सवेषु नरो नरमवसे तं धनाय ।

सो अन्ये चित्तमसि ज्योतिर्विदन्मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती ॥८ ॥

बलशाली वीरो द्वारा युद्धो में उन श्रेष्ठ वीर इन्द्रदेव को धन और रक्षा के निमित्त बुलाया जाता

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