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# संक्षिप्त झिवपुराण +

होकर सम्पूर्ण सिद्धियोंको प्राप्त कर ख्ता है। ग्राप्त होता है। वृद्ध पुरुषे थो अहाके

जैसे आकाशमें वर्षासे युक्त बादल गरजता अभ्याससे देनेवाले स्तभका विश्वास देखा

है, उसी प्रकार उस झब्दकों सुनकर योगी जाता है, फिर तरूण मनुष्यको इस साधनासे

तत्काल संसार-बन्धनसे मुक्त हो जाता है। पूर्ण ल्लाभ हो इसके लिये तो कहना ही क्या

तदनन्तर योगियोंद्वारा प्रतिदिन चिन्तन किया है। यह दाच्दग्रह्म न ओकार है, न मच्छ है, न

कह शाब्द क्रमकः सुक्ष्मसे बीज है, न अक्षर है। यह अनाहत नाद्‌

सुक्मतर हो जाता है। देवि ! इस प्रकार मैंने (खिना आधातके अथवा जिना जजाये ही

तुम्हें झाब्दब्रह्मके चित्तनका क्रम बताया है। प्रकट होनेधारत्म दाव्द) है। इसका उच्चारण

जैसे धान लाहनेवाला पुरुष पुआलको छोड़ किये बिना ही चिन्तन होता है। यह झन्दखहा

आकादाको मारते और भूख-ष्यासकी मैं उन्हें अ्रयत्र करके बता रहा हूँ। उन

कामना करते हैं। यह सन्दह्य ही सुखद,

शाब्दोँंकों नादसिद्धि भी कहते हैं। वे शब्द्‌

मोक्षका कारण, बराहर-भीतरके भेदसे क्रमझ: इस प्रकार है--

घोष, कस्य (झाँझ आदि), भङ्ग

(सिंगा आदि), घण्टा, वीणा आदि,

और न्वा मेघ-

गर्जन--इन नौ ० ५

तुकारका अभ्यास करे। इस प्रकार सदा ही

ध्यान करनेवाला योगी पुण्य और पापोंसे

करते-करते यरणासन्न हो जाता है, तब भी

यह दिन-रात उस अभ्यासे ही लगा रहे।

ऐसा करनेसे सात दिनोंमें बह शब्द अकट

होता है, जो मृत्युको जीतनेबाला है। देवि !

चह दाब्द नौ प्रकारका है। उसका मैं

जाद सव रोगोंकों हर स्वेनेवाला तथा मनको

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