+ उपासिता & ५८९
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यज्लीभूत करके अपनी ओर खींचनेवाल्म्र है। योगीको सप्पूर्ण तत्व प्राप्त हो जाता है।
दूसरा कांस्वनाद है, जो प्राणियोंकी गतिको दुन्दुभिका चिन्तन करनेवात् साधक जरा
स्तम्भित कर देता है। वह विष, भूत और ग्रह और मृत्युके कष्टते छूट जाता है। देखेश्वरि !
आदि सबको बाँधता है--इसमें संशय नहीं. झद्भुनादका अनुसंधान होनेपर इच्छानुसार
है। तीसरा शृज्ञ-नाद है, जो अभिचारसे रूप थारण ऋरनेकी दाक्ति प्राप्त हो जाती है।
सम्बन्ध रखनेवाला है। उसका दाब्रुके मेघनादके चिन्तनसे योगीको कभी विपत्तिका
उश्याटन और मारणमसें नियोग एव प्रयोग सामना नहीं करना पड़ता। वरानने ! जो
करे । चौथा घण्टा-नाद है; जिसका साक्षात् प्रतिदिन एकाप्रछितसे ब्रह्मरूपी तुंकारका
परमेश्वर शिव उचारण करते हैं। यह नाद ध्यान करता है, उसके लिये कुछ भी असाध्य
सम्पूर्ण देककाओंको आकृष्ट कर लेता है, नहीं होता। उसे मनोवाज्छित सिद्धि प्राप्त
फिर धूतत्ूके मनुष्योंकी तो बात ही व्याह) हो जाती है। वह सर्वज्ञ, सर्वदर्शी और
यक्षों और गन्धवॉकी कन्याएँ उस नादसे इच्छानुसार रूपथ्चारी होकर सर्वत्र विचरण
आकृष्ट हो योगीको उसकी इच्छाके अनुसार करता है, कभी विकारोके यलीधूत नहीं
महासिर्धि प्रदान करती हैं तथा उसकी अन्य होता । वह साक्षात् शिव ही है, इसपें संदाय
कामनाएँ भी पूर्ण करती हैं। पाँचयाँ नाद नहीं है। परमेश्वरि ! इस प्रकार चैने तुम्हारे
वीणा है, जिसे योगी पुरुष ही सदा सुनते हैं। समक्ष वाव्दग्रह्मके नवधा स्वरूपका पूर्णतया
देषि ! उस वीणा-नादसे दूर-दर्शनकी शक्ति वर्णन किया है। अब और क्या सुनना
श्राप होती है। बंज्ञीनादका ध्यान करनेवाले चाहती हो ? (अध्याय २६)
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काल या मूव्युको जीतकर अमरत्व प्राप्त करनेकी चार यौगिक साधनाएँ---
प्राणायाम, श्रूमध्यमें अग्निका ध्यान, मुखसे वायुपान तथा मुड़ी हुई
जिद्डाद्वारा गलेकी घाँटीका स्पर्श
पार्वती योलीं--प्रभो ! यदि आप प्राणायायपे तत्पर हो जाय । ऐसा करनेपर
असप्न हैं तो योगी योगाकाइजनित यायुपदको आधे मासमें ही यह आये हुए कालको जीत
जिस प्रकार पराप्त होता है, बह सब मुझे तेता है। हदयमें स्थित हुई प्राणवायु सदा
|| अधिको उदीप्न करनेवाली है । उसे अभिका
भगवान् शिवने का सुन्दरि ! पहले सहायक बताया गया है। यह वायु जहर और
मैंने योगियॉके हितकी कामनासे सब कुछ भीतर सर्वत्र व्याप्त और महान् है। ज्ञान,
जताया है, जिसके अतुसार ग्रोगियोने विज्ञान और उत्साह--सबकी प्रवृत्ति वायुस
कारूपर विजय प्राप्त की थी। योगी जिस ही होती है। जिसने यहाँ वायुको जीत लिया,
प्रकार वायुका स्वरूप धारण करता है, उसके उसने इस सम्पूर्ण जगत्पर विजय पा ली ।
विषषपें भी कड़ा गया है। इसल्कयि योग- साश्चकको चाहिये कि वह जरा और
झक्तिके द्वारा मृत्यु-दिवसको जानकर मृत्युको जीतनेकी इच्छसे सदा श्लारणामें