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* संक्षिप्त ब्रह्मवैवर्तपुराण #
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आभूषणोंसे विभूषित थी। उसके हाथमे क्रीडा- |
कमल शोभा पा रहा था और भालदेश सिन्दूर-
नारद! यों कहकर राजा कंस सभामें चुप
हो गया। वह स्वप्र सुनकर सब भाई-बन्धु सिर
विन्दुसे सुशोभित था। वह रुष्ट हो मुझे शाप देकर | नीचा किये लंबी साँस खींचने लगे। अपने
चली गयी । मुझे अपने नगरमें कुछ ऐसे पुरुष | यजमान कंसके शीघ्र होनेवाले विनाशको जानकर
प्रवेश करते दिखायी दिये, जिनके हाथोंमें फंदा पुरोहित सत्यक तत्काल अचेत-से हो गये।
था। उनके केश खुले हुए थे। वे अत्यन्त रूखे | राजभवनकौ स्त्रियां तथा कंसके माता-पिता
ओर भयंकर जान पड़ते थे। घर-घरमें एक नंगी | शोकसे रोने लगे। सबको यह विश्वास हो गया
स्त्री मन्द मुसकानके साथ नाचती दिखायी देती कि अब शीघ्र ही कंसका विनाशकाल स्वयं
है, जिसके केश खुले हैं और आकार बड़ा विकट | उपस्थित होनेवाला है ।
है। एक नंगी विधवा महाशूद्री, जिसकौ नाक | श्रीनारायण कहते हैँ - मुने! बुद्धिमान्
कटी हुई है और जो अत्यन्त भयंकर है, मेरे | पुरोहित सत्यक शुक्राचार्यके शिष्य थे। उन्होंने
अङ्गो तेल लगा रही है । अतिशय प्रातःकालमे | सब बातोंपर विचार करके कंसके लिये हितको
मैंने कुछ ऐसी विचित्र स्त्रियां देखीं, जो बुझे हुए | बात बतायी।
अङ्गार (कोयले) लिये हुए थीं। उनके शरीरपर सत्यक बोले-- महाभाग! भय छोड़ो। मेरे
कोई वस्त्र नहीं था तथा वे सम्पूर्ण अड्ॉमें भस्म रहते तुम्हें भय किस बातका है ? महे श्वरका यज्ञ
लगाये हुए मुस्करा रही थी । सपनेमें मुझे नृत्य- | करो, जो समस्त अरिर्टेका विनाश करनेवाला
गीतसे मनोहर लगनेवाला विवाहोत्सव दिखायी | है । इस महेश्चर-यागका नाम है- धनुर्यज्ञ, जिसमें
दिया। कुछ ऐसे पुरुष भी दृष्टिगोचर हुए, जिनके | बहुत-सा अन्न खर्च होता है ओर बहुत दक्षिणा
कपड़े और केश भी लाल थे। एक नंगा पुरुष
दीखा, जो देखनेमें भयंकर था, जो कभी रक्त-
वमन करता, कभी नाचता, कभी दौडता और
कभी सो जाता था उसके मुखपर सदा मुस्कराहट
दिखायी देती थी। बन्धुओ! एक ही समय
आकाशम चन्द्रमा और सूर्य दोनोंके मण्डलपर
सर्वग्रास ग्रहण लगा दृष्टिगोचर हुआ है। पुरोहितजी !
मैंने स्वप्रमें उल्कापात, धूमकेतु, भूकम्प, राष्ट्र-
विप्लव, झंझावात और महान् उत्पात देखा है।
वायुके वेगसे वृक्ष झोंके खा रहे थे। उनकी
डालियाँ टूट-टूटकर गिर रही थीं। पर्वत भी
भूमिपर ढहे दिखायी देते थे। घर-घरमें ऊँचे
कदका एक नंगा पुरुष नाच रहा था, जिसका |
[फिर यज्ञ करके महासिद्ध हुए बाणासुरने
नरमुण्डॉंकी माला दिखायी देती थी। सारे आश्रम
जलकर अड्भारके भस्मसे भर गये थे और सब |
लोग चारों ओर हाहाकार करते दिखायी देते थे।।
सिर कटा हुआ था। उस भयानक पुरुषके हाधमें
बाँटी जाती है। वह यज्ञ दुःस्वप्रोंका विनाश
तथा शत्रुभयका निवारण करनेवाला है। उस
यज्ञसे आध्यात्मिक, आधिदैविक और उत्कर
आधिभौतिक-इन तीन तरहके उत्पातोँका खण्डन
| होता है। साथ हौ वह ऐश्वर्यकी वृद्धि करनेवाला
है । यज्ञ समाप्त होनेपर समस्त सम्पदाओकि दाता
भगवान् शंकर प्रत्यक्ष दर्शन देते ओर ऐसा वर
प्रदान करते हैं, जिससे जरा और मृत्युका निवारण
हो जाता है। पूर्वकालर्मे महाबली बाण, नन्दी,
परशुराम तथा बलवानोंमें श्रेष्ठ भक्नने इस यज्ञका
अनुष्ठान किया था। पहले भगवान् शिवने इस
यज्ञसे संतुष्ट होकर यह दिव्य धनुष नन्दीश्वरको
दिया था। धर्मात्मा नन्दीश्वरने बाणासुरको दिया ।
पुष्करतीर्थमे यह धनुष परशुरामजीको अर्पित कर
दिया। कृपानिधान परशुरामजीने कृपापूर्वक अब
तुमको यह धनुष दे दिया है । नश्वर ! यह धनुष