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प्रकार अनिरुद्धने बहुत-सी वीरताकी बातें आप यडा प्रदान करनेवास्पी हैं, आपका रोष
कहीं, जिन्हे सुनकर बाणासुरको महान् बड़ा उग्र होता है। देवि ! मैं नागपारासे चधा
विस्मय हुआ ओर उसे क्रोध भी आया । हुआ हूँ और नागोंकी विचज्वालासे संतप्त हो
उसी सपय समस्त वीरोकि, अनिरूद्धके और रहा ; अतः शीघ्र पधारिये और मेरी रक्षा
मन्त्री कुम्भाण्डके सुनते-सुनते ब्राणासुरके ॥
आश्वासनार्थं आकाशवाणी हुई । सनल्कुमारजी कदते दै -- मुनीश्वर ! जब
आकाशतवाणीने कहा--महाबली अनिरूद्धने पिसे हुए काले कोयलेके समान
चण ! तुप बिके पुत्र हो, अतः थोड़ा
विचार तो करो । परम युद्धिमान् शिवभक्त !
तुम्हारे लिये क्रोध करना उचित नहीं है।
जिन समस्त प्राणियोंके ईश्वर, कमेकि साक्षी
और परमेश्वर हैं। यह सारा चराचर जगत्
उन्हींके अधीन है। वे ही सदा रजोगुण,
सत्वगुण और तमोगुणका आश्रय कतेकर
ब्रह्मा, विष्णु और रुद्ररूपसे ल्वेकोंकी सृष्टि,
भरण-प्रोषण और संहार करते हैं। चे
सर्वश्रेष्ठ, बिकाररहित, अखिनाही, नित्य
और मायाधीदा होनेपर भी निर्गुण हैं।
बलिके श्रेष्ठ पुत्र ! उनकी इच्छासे निर्बलको
भी लवान् समझना चाहिये । महापते !
प्रनमें यौ विचारक स्वस्थ हो जाओ । नाना
अकारकी लीलाओंके रचनेमे निपुण
भक्तवत्सल भगवान् हकर गर्वको मिटा
देनेवाले है । वे इस सपय तुम्हारे गर्व॑को चूर
सनत्कुमात्जी कहते हैं--महापुने !
इतना कहकर आकाक्चवाणी चट् हो गयी ।
तत्र उसके बचनको मानकर बाणासुरने
अनिरुद्धका वथ करनेका चिनार छोड़
दिया । तदनन्तर विषैले नागोंके पाशसे धे
हुए अनिर उसी क्षण दुर्गाका स्मरण करने
॥
अनिरु्धने कहा--झरणागलवस्सले !
कृष्णवर्णवाली कालीको इस प्रकार संतुष्ट
किया, तब ज्येष्ठ कृष्ण च्तुर्दक्षीकी
महारात्रिमें वहाँ प्रकट हुईं। उन्होंने उन
सर्परूपी भयानक चार्णोको भस्मसात् करके
अपने बल्लिप्ठ मुक्कोंके आघातसे उस
नाग-पञ्जरको किदीर्पा कर दिया । इस प्रकार
दुर्गानि अनिरुद्धो बन्धनमुक्त करके उन्हें
पुनः अन्तःपुरे पहुँचा दिया और स्वयं यहीं
अन्तधनि हो गयीं । इस प्रकार शिवकी
जाक्तिस्वरूपा देवीकी कृपासे अनिरुद्ध कष्टसे
छूट गये, उनकी सारी व्यथा मिट गयी और
वे सुखी हो गये। तदनन्तर प्रशुश्ननन्दन
अनिरुद्ध शिवक्षाक्तिके अतापसे विजयी हो
अपनी प्रिया बाणतनयाको पाकर परम
हर्षित हुए और अपनी प्रियतमा उस ऊषाके
साथ पूर्ववत् सुखपूर्वक विहार करने लगे।
इधर पौत्र अनिरूद्धके अदृश्य हो जाने तथा
नारदजीके मुखसे उसके आणासुरके द्वारा
नागपाशसे बाँश्ले जानेका समाचार सुनकर
बारह अक्षौहिणी सेनाके साथ प्रद्यु आदि
खीरोंको पराथ ले भगवान् अ्रीकृष्णने
ज्ञोणितपुरपर चढ़ाई कर दी । उधर भगवान्
स्ख भी अपने भक्तके पक्षमें सज-धजकर
आ डटे। फिर तो श्रीकृष्ण और भ्रीज्ञिवका
बड़ा भयानक युद्ध हुआ । दोनों ओरसे ज्वर
छोड़े गये । अन्तमं श्रीकृष्णने स्वयै औरुद्धके
पास आकर उनका स्तवन करके कहा--