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,४६८ |] [ ब्रह्माण्ड पुराण

नरकाछ्यो महावीरो विष्णुरूपी मुरासुर: ।

अनेके सह सेनाभिरुत्थित्ताः शस्त्रपाणय: ॥१२५

तान्विनाशयितु' सर्वान्वासुदेव: सनातनः ।

श्रीदेवीवा महस्ताव्जानामिकानखसंभव: । १२६

नीले वस्त्रसे उसका अद्भपिनद्ध था और कलासके समज निर्मल था ।

द्विविदास्त्र से उत्पन्न समस्त कपियों का उसने विनाश कर दिया था ।१२०।

उस महा बलवान ने राजासुर नामक महान अस्व को छोड़ा था। उस्न अस्त

से बहुत से भूत दानव समुत्पन्त हुए ये ।१२१। उनमें शिशुपाल दन्त वक्‍्त्र-

शॉल्ब--काणीपति--पोण्ड्रक--बा सु देव-- रुक्मी डिम्भक हंसक थे ।१२२।

शम्बर--प्रलम्ब--बाणासुर भी था | कंस--चाणुर मल्ल--मुष्टिक--उत्पल

शेखर थे ।१२३। अरि४-- धेनु--कके झ्वी--का लिय--य म ला जु न-- पूतना--

शकर तृणावत्तं आदि असुर सभी थे ।१९४। महावीर नरक भौर बिष्णु-

रूपी मुर असुर था । ऐसे वहुत से हथियारों को हाथों में लेकर सेनाओं के

साथ आविभू त हो गये ये ।१२५। उन सबके विनाश करने के लिए श्री देवी

के बाँये हाथ की अनामिका के नख से संभूत सनातन वासुदेव प्रकट हुए

थे । १२६।

चतुच्यू हं समातेने चत्वारस्ते ततोऽभवन्‌ ।

वासुदेवो द्वितीयस्तु संकषेण इति स्मृतः ।। १२७

प्रदयुम्नश्चानिरुद्धश्च ते सर्वे प्रोदतायुधाः ।

तानशेषान्दुराचारान्मूमेर्भारप्रवतंकान्‌ ॥ १२८

नाशयामासुरुर्वी णवेषच्छन्नान्महासुराच्‌ ।। १२६

अथ तेषु विनष्टेषु संक्रद्धो भंडदानवः ।

व मंविप्लावकं घोरं कल्यस्तरं सममुञ्चत १३०

ततः कल्यस्त्रतो जाता आंध्राः पुण्ड़ाश्च भूमिपाः ।

किराताः शबरा हणा यक्ग॑नाः पापवृत्तय: ।॥ १३१

वेदविष्लावका धर्मंद्रोहिणः प्राणिहिसकाः ।

वर्णाश्रमेषु सांकयंकारिणो मलिनां गकाः ।

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