दार्बाहरण वर्णन] [ ४२७
पू्वच्छिन्नस्तु गृहणी यान्निमित्त जकुने: शुभः ।
व्यासेन गुणिते दैघ्यं अष्टाभिवेह॒ते तथा ।१५
तच्छेषमायतं विद्यादष्टभेदं वदामि वः।
ध्वजो धूमश्च सिंहश्च वृषभः खर एव च । १६
हस्तीध्वांक्षएच पूर्वाद्याः करणेषाभवन्त्यमी ।
ध्वज: सवंमुखो वन्य: प्रत्यगृद्धारो विगेषतः । १७
उदड मुखो भवेत्सिंहः प्राङ्मुखो वृषभो भवेत् ।
दक्षिणाभिमुखो हस्ती सप्तभिः समुदाहृतः । १८
एकेन ध्वज उदिदष्टस्त्रिभिः सिंह: प्रकोतितः।
पञ्चभिर षभः प्रोक्तोविकोणस्थाश्चवजयेत् । १६
तमेवाप्टगुणं कृत्वा करराणि विचक्षणः ।
सप्तवि णाहते भागे ऋक्षं विद्याद्विचक्षणः ।२०
शुभ निमित्त णकूनो के द्वारा पूर्वाच्छिन को ग्रहण करना चाहिए ।
व्यास के द्वारा गुणिम होने पर आठों से वह्त होने पर दीर्घता होती
है । उससे जो शेष है---बह् जयत जानना चाहिए । मैं आपको आठ
भेद बतलाता हूँ-ध्वज, धूम, सिंह, वृषभ, खर, हस्ती और ध्वंक्षये
पूर्वाद्या कर शेष ढोते हैं । ध्वज सर्व मुख धन्य होता है और विशेष रूप
से प्रत्यग् द्वार होता है। १५-१७। उत्तर की ओर मुख वाला सिंह होता
है ओर पूर्व की ओर मुख से युक्त वृषभ होता है । दक्षिण दिशा के
अभिमुख होने बाला हस्तीहै तथा इसी प्रकार से यह सात प्रकार वाला
उदाहृत किया गया है ।१८। एक के द्वारा ध्वज कहा गया है-तीन के
द्वारा सिंह कीत्तित किया गया है--पाँचों से वृषभ उक्त हुआ है। जो
त्रिकोण में स्थित होते हैं वे सब वर्जित माने गए अतः उनको निषिद्ध
मानना चाहिए । विचक्षण पुरुष को चाहिए उसी कर राशिको अठगुना
करके अर्थात् आठ से गुणा करके सत्ताईस से भाग समाहूत करे और
उसी ऋल्ष (नक्षत्र) को जान लेना चाहिए ।६-२०।