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# रुद्रसंहिता ५

जियो मौ भ ममो त मो त तो भमो म १.४9.

भी धिक्कार है। बेटी} हम दोनों माता

पिताकों भी धिक्कार है, जिन्होंने तुझे जन्म

३०३

क्या करूँगी ? हाय ! हाय ! तुझे छोडकर

कहाँ खली जाऊँ ? मेरा तो जीवन ही नष्ट

हो गया !

ब्रह्माजों कहते हैं---नारद ! यह कहकर

पेना मूर्च्छित हो पृथ्वीपर गिर पड़ीं। झोक-

रोष आदिसे व्याकुल होनेके कारण वे

पतिके समीप नहीं गयीं। देखपें ! उस समय

सब देवता क्रमहा: उनके निकट गये । सजसे

| : पहले मैं पाँचा। मुनिश्रेष्ठ ! मुझे देखकर तुम

“| स्वयं मेनासे खोले ।

नारदने क्ा--पतिक्रते ) तुम्हें पता नहीं

है, बास्तवमें भगवान्‌ शिवका रूप बड़ा

४ ५ थे सुन्दर है। उन्होंने छीलासे ऐसा रूप धारण

है । तुमने तो सेरा घर ही जला दिया। यह तो

मेरा मरण ही है। ये पर्वतोके राजा आज मेरे

निकट न आयें। सप्तर्षि लोग स्वयं मुझे

अपना मुँह न दिखायें । इन सबने मिलकर

क्या साधा ? मेरे क़ुलका नाझ करा दिया ।

हाय ! मैं बाँझ क्यों नहीं हो गयी ? सेरा गर्भ

क्यों नहीं गल गया ? मैं अथवा मेरी पुत्री ही

क्यों नहीं मर गयी ? अथवा राक्षस आदिने

भी आकाजझमें ले जाकर इसे क्यों नहीं खा

डास्त्रा ? पार्वती ! आज मैं तेरा सिर काट

द्ैगी, परंतु ये ऋरीरके टुकड़े लेकर

कर लिया है, यह उनका यथार्थ रूप नहीं है ।

इसलिये तुम क्रोध छोड़कर स्वस्थ हो

जाओ । हट छोड़कर चित्राहका कार्य करो

और अपनी दिवाका हाथ झिजके हाथो दे

दो। तुम्हारी यह बात सुनकर मेना तुमसे

बोलीं--'उठो, यहाँसे दूर चले जाओ । नुम

दुष्टौ ओर अधपोंके झिरोमणि हो ।' मेनाके

ऐसा कहनेपर मेरे साथ इद्र आदि सव देवता

एवं दिक्पाल क्रमाः आक्र यों बोले--

घिक्कार'फ्तरोंकी कल्यः मेने \ सुण हणे ऋय

असन्नतापूर्वक सुनो । ये शिव निश्चय ही

सबसे उत्कृष्ट देवता हैं और सबको ठ्तप सुख

देनेबाल्ले हैं। आपको पुत्रीके अत्यन्त दुस्सह

लपको देखकर इन भक्तवत्सल प्रभुने कृपा-

पूर्वक उन्हें दर्शन और रेष्ठ चर दिया था ।'

यह सुनकर मेनाने देशताओंसे ब्ारंआार

अत्यन्त लित्प करके कहा--'ज्िवका रूप

बड़ा भयंकर है, मैं उन्हें अपनी पुत्री नहीं

दगी । आप सब देवता प्रपञ्च करके क्यों

मेरी इस कन्यके उत्कृष्ट रूपको व्यर्थ

करनेके लिये उ्टत हैं ? `

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