करके गुणनफलको दूसरे स्थानपर रखे। पहली
संख्यासे दूसरी संख्यामें भाग दे। यदि कुछ शेष
बचे तो वह व्यक्ति चोर है। यंदि भाजकसे भाज्य
पूरा-पूरा कट जाय तो यह समझना चाहिये कि
वह व्यक्ति चोर नहीं है ॥ १९॥
अब यह बता रहा हूँ कि गर्भे जो बालक
है, वह पुत्र है या कन्या, इसका निश्चय किस
प्रकार किया जाय? प्रश्न करनेवाले व्यक्तिके
प्रश्न-वाक्यमें जो-जो अक्षर उच्चारित होते हैं, वे
सब मिलकर यदि विषम संख्यावाले हैं तो गर्भमें
पुत्रकौ उत्पत्ति सूचित करते है । (इसके विपरीत
सम संख्या होनेपर उस गर्भसे कन्याकी उत्पत्ति
होनेकी सूचना मिलती है।) प्रश्न करनेवालेसे
किसी वस्तुका नाम लेनेके लिये कहना चाहिये ।
वह जिस वस्तुके नामका उल्लेख करे, वह नाम
यदि स्त्रीलिंग है तो उसके अक्षरोंके सम होनेपर
पूछे गये गर्भसे उत्पन्न होनेवाला बालक बायीं
आँखका काना होता है। यदि वह नाम पुल्लिग
है ओर उसके अक्षर विषम हैं तो पैदा होनेवाला
बालक दाहिनी आँखका काना होता है। इसके
विपरीत होनेपर उक्त दोष नहीं होते है । स्त्री ओर
पुरुषके नामोंकी मात्राओं तथा उनके अक्षरोंकी
संख्यामे पृथक्-पृथक् चारसे गुणा करके गुणनफलको
अलग-अलग रखे । पहली संख्या 'मात्रा-पिण्ड'
है और दूसरी संख्या ' वर्ण-पिण्ड '। वर्ण-पिण्डमें
तीनसे भाग दे] यदि सम शेष हो तो कन्याकी
उत्पत्ति होती है, विषम शेष हो तो पुत्रकी उत्पत्ति
होती है। यदि शून्य शेष हो तो पतिसे पहले
स्त्रीकी मृत्यु होती है और यदि प्रथम 'मात्रा-
पिण्ड' में तीनसे भाग देनेपर शून्य शेष रहे तो
स्त्रीसे पहले पुरुषकी मृत्यु होती है। समस्त
भागमें सूक्ष्म अक्षरवाले द्रव्योंद्वारा प्रश्नको
ग्रहण करके विचार करनेसे अभीष्ट फलका ज्ञान
होता है॥ २--५॥
अब मैं शनि-चक्रका वर्णन करूँगा। जहाँ
शनिकी दृष्टि हो, उस लग्नका सर्वथा परित्याग
कर देना चाहिये। जिस राशिमें शनि स्थित होते
हैं, उससे सातवीं राशिपर उनकी पूर्ण दृष्टि रहती
है, चौथी और दसर्वीपर आधी दृष्टि रहती है तथा
पहली, दूसरी, आठवीं और बारहवीं राशिपर
चौथाई दृष्टि रहती है। शुभकर्ममें इन सबका त्याग
करना चाहिये। जिस दिनका जो ग्रह अधिपति
हो, उस दिनका प्रथम पहर उसी ग्रहका होता है
और शेष ग्रह उस दिनके आधे-आधे पहरके
अधिकारी होते हैं। दिनमें जो समय शनिके
भागमें पड़ता है, उसे युद्धम त्याग दे ॥ ६-७ ३॥
अब भँ तुम्हें दिनमें राहुकी स्थितिका विषय
बता रहा हूँ। राहु रविवारको पूर्वमें, शनिवारको
वायव्यकोणमें, गुरुवारको दक्षिणमें, शुक्रवारको
अग्निकोणमें, मङ्गलवारको भी अग्निकोणमें तथा
बुधवारकों सदा उत्तर दिशामें स्थित रहते हैं।
फणि-राहु ईशान, अग्नि, नैर्क्रत्य एवं वायव्य-
कोणमें एक-एक पहर रहते हैं और युद्धमें अपने
सामने खड़े हुए शत्रुकों आवेष्टित करके मार
डालते हैं॥ ८-९३ ॥
अब मैं तिथि-राहुका वर्णन करूँगा। पूर्णिमाको
अग्नि-कोणमें राहुकी स्थिति होती है और
अमावास्याको वायव्यकोणमें। सम्मुख राहु शत्रुका
नाश करनेवाले हैं। पश्चिमसे पूर्वकी ओर तीन
खड़ी रेखाएँ खींचे और फिर इन मूलभूत
रेखाओंका भेदन करते हुए दक्षिणसे उत्तरकी ओर
तीन पड़ी रेखाएँ खींचे। इस तरह प्रत्येक दिशामें
तीन-तीन रेखाग्र होंगे। सूर्य जिस राशिपर स्थित
हों, उसे सामनेवाली दिशामें लिखकर क्रमशः
बारहों राशियोंको प्रदक्षिण-क्रमसे उन रेखाग्रोंपर
लिखे। तत्पश्चात् 'क' से लेकर 'ज' तकके
अक्षरोंकों सामनेकी दिशामें लिखे। 'झ' से लेकर
“द' तकके अक्षर दक्षिण दिशामें स्थित रहें, 'ध'
से लेकर “म' तकके अक्षर पूर्व दिशामें लिखे
जाये और 'य' से लेकर 'ह' तकके अक्षर उत्तर
दिशामें अङ्कित हों। ये राहुके गुण या चिह्न बताये
गये हैं। शुक्लपक्षमें इनका त्याग करे तथा तिथि-