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सामवेद-संहिता
साम गान के स्वर
सापयोनि मंत्रों का आश्रय लेकर ऋषियों ने
गान पत्रों की रचना की है । ये गान चार तरह के है-
(१) ग्राम गेय गान--जिसे प्रकृति गान तथा वेय गान
भी कहते हैं। (२) आरण्यक गान (३) ऊह गान (४)
ऊह्य गान या रहस्य गान। इन गानों में वेय गान
पूर्वार्चिक के प्रथम पाँच अध्याय के मंत्रों के ऊपर होता
है। अरण्य गान, आरण्य पर्व के निर्दिष्ट मंत्रों पर, ऊह
और उद्ध उत्तराचिंक में उल्लिखित मंत्रों पर मुख्य-
तया होता है । भिन शाखाओं में इन गानों की संख्या
भिन है। सबसे अधिक गान जैमिनीय शाखा में
मिलते हैं।
गान
वेयगान ११९७
अरण्य गान २९४
कह गान १०२६
ऊद गान २०५
कुल योग॒ २७२२
जैमिनीय गान
१२३२
२९१
१८०१
३५६
३६८०
भारतीय संगीत शाख््र का मूल इन्ही साम
गानों पर आधारित है । भारतीय संगीत कितना
सूक्ष्मबारीक तथा वैज्ञानिक है, यह तत्व मर्मज्ञों
से छिपा नहीं है । लेकिन मूर्धन्यो की अवहेलना
के कारण उसकी इतनी बड़ी दुरवस्था आजकल
उपस्थित है कि उसके मौलिक सिद्धांतों को
समझना एक समस्या हो गई है । साम गान की
पद्धति का ज्ञान उसी तरह दुरूह है । एक तो यों ही
साम के जानने वाते कम हैं, उस पर साप गान को ठीक
स्वर में गाने वालों की संख्या तो अँगुलियों में गिनने
लायक है । यदि गायक के गले में लोच हो और वह
उचित मूर्छना, आरोह, अवरोह का विचार कर साम
गान करे, तो मंत्रार्थ न जानने पर भी भावों की दिव्य
अनुभूति हुए बिना नहीं रहती ।
नारद शिक्षा के अनुसार साम के स्वर मंडल
इतने हैं- ७ स्वर, ३ग्राम, २१ मूर्छना, ४९ तान। इन
सात स्वरो की तुलना वेणु स्वर से इस प्रकार है-
साम वेणु
७ सप्तम पञ्चप/प
साम गानों में ये ही सात तक के अंक तत्तत्
स्वरो के स्वरूप को सूचित करने के लिए लिखे जाते
हैं। सामयोनि मंत्रों के ऊपर दिये गये अंकों की
व्यवस्था दूसरे प्रकार की होती है । सामयोनि मंत्रों के
सामगानों के रूप में ढालने पर अनेक संगीतानुकूल
शाब्दिक परिवर्तन किये जाते हैं। इन्हें साप विकार
कहते हैं। जिनकी संख्या ६ है--
(१) विकार- शब्द का परिवर्तन "अग्ने" के
स्थान पर ओग्नायि ।
(२) विश्लेषण- एक-एक पद का पृथक्क-
रण, यथा--वीतये के स्थान पर वोयितोया २ यि।
(३) विकर्षण-- एक स्वर का दीर्घकाल तक
विभिन उच्चारण जैसे-- ये या ३ थि ।
(४) अध्यास-- किसी पद का बार-बार
उच्चारण यथा-तोयायि का दो बार उच्चारण ।
(५) विराम- गायन में सुविधा के लिए
किसी पद के बीच में ठहर जाना यथा-गृणानो
हव्यदातये में 'ह' पर विराम ले लेना ।
(६) स्तोभ- ओ, होवा, आउवा आदि
गानानुकूल पद ।