शूर्पणखाने कहा--तुम कौन हो ? कहाँसे
आये हो? मेरी प्रार्थासे अब तुम मेरे पति हो
जाओ। यदि मेरे साथ तुम्हारा सम्बन्ध होनेमें [ये
दोनों सीता और लक्ष्मण बाधक हैं तो] मैं इन
दोनोंको अभी खाये लेती हूँ॥५॥
ऐसा कहकर वह उन्हें खा जानेको तैयार हो
गयी। तब श्रीरामचन्द्रजौके कहनेसे लक्ष्मणने
शूर्पणखाकी नाक और दोनों कान भी काट
लिये। कटे हुए अङ्गोसे रकी धारा बहाती हुई
शूर्पणखा अपने भाई खरके पास गयी और इस
प्रकार बोली-' खर! मेरी नाक कट गयी। इस
अपमानके बाद मैं जीवित नहीं रह सकती। अब
तो मेरा जीवन तभी रह सकता है, जब कि तुम
मुझे रामका, उनकी पत्नी सीताका तथा उनके
छोटे भाई लक्ष्मणका गरम-गरम रक्त पिलाओ।'
खरने उसको “बहुत अच्छा' कहकर शान्त
किया और दूषण तथा त्रिशिराके साथ चौदह
हजार राक्षसोंकी सेना ले श्रीरामचनद्रजीपर चढ़ाई
की । श्रीरामने भी उन सबका सामना किया और
अपने बाणोंसे राक्षसोको बीधना आरम्भ किया।
शत्रुओंकी हाथी, घोडे, रथ और पैदलसहित
समस्त चतुरङ्गिणी सेनाको उन्होंने यमलोक पहुँचा
दिया तथा अपने साथ युद्ध करनेवाले भयंकर
राक्षस खर, दूषण एवं त्रिशिराको भी मौतके घाट
उतार दिया। अब शूर्पणखा लङ्काम गयी और
रावणके सामने जा पृथ्वीपर गिर पड़ी। उसने
क्रोधमें भरकर रावणसे कहा--“अरे! तू राजा
और रक्षक कहलानेयोग्य नहीं है। खर आदि
समस्त राक्षसोंका संहार करनेवाले रामकी पत्नी
सीताको हर ले। मैं राम और लक्ष्मणका रक्त
पीकर ही जीवित रहूँगी; अन्यथा नहीं" ॥ ६--१२॥
शूर्पणखाकी बात सुनकर रावणने कहा--
"अच्छा, ऐसा ही होगा।' फिर उसने मारीचसे
करके सीताके सामने जाओ ओर राम तथा
लक्ष्मणको अपने पीछे आश्रमसे दूर हटा ले
जाओ। मैं सीताका हरण करूँगा। यदि मेरी बात
न मानोगे, तो तुम्हारी मृत्यु निश्चित है।' मारीचने
रावणसे कहा--'रावण ! धनुर्धर राम साक्षात् मृत्यु
है ।' फिर उसने मन-ही-मन सोचा-' यदि नहीं
जाऊँगा, तो रावणके हाथसे मरना होगा और
जाऊँगा तो श्रीरामके हाथसे। इस प्रकार यदि
मरना अनिवार्य है तो इसके लिये श्रीराम ही श्रेष्ठ
हैं, रावण नहीं; [क्योंकि श्रीरामके हाथसे मृत्यु
होनेपर मेरी मुक्ति हो जायगी]। ऐसा विचारकर
वह मृगरूप धारण करके सीताके सामने बारंबार
आने-जाने लगा। तब सीताजीकी प्रेरणासे श्रीरामने
(दूरतक उसका पीछा करके] उसे अपने बाणसे
मार डाला। मरते समय उस मृगने "हा सीते! हा
लक्ष्मण !* कहकर पुकार लगायी। उस समय
सीताके कहनेसे लक्ष्मण अपनी इच्छाके विरुद्ध
श्रीरामचन्द्रजीके पास गये। इसी बीचमें रावणने
भी मौका पाकर सीताको हर लिया। मार्गमें जाते
समय उसने गृश्रराज जटायुका वध किया। जयायुने
भी उसके रथको नष्ट कर डाला था। रथ न रहनेपर
रावणने सीताकों कंधेपर बिठा लिया और उन्हें
लड्ढामें ले जाकर अशोकवाटिकामें रखा। वहाँ
सीतासे बोला-- तुम मेरी पटरानी बन जाओ।' फिर
राक्षसयोंकी ओर देखकर कहा--'निशाचरियो !
इसकी रखवाली करो ' ॥ १३--१९ ३ ॥
उधर श्रीरामचन्द्रजी जब मारीचको मारकर लौटे,
तो लक्ष्मणको आते देख बोले--'सुमित्रानन्दन!
वह मृग तो मायामय था--वास्तवमें वह एक
राक्षस था; किंतु तुम जो इस समय यहाँ आ गये,
इससे जान पड़ता है, निश्चय ही कोई सीताको हर
ले गया।' श्रीरामचन्द्रजी आश्रमपर गये; किंतु