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# शरणं बज सर्वेशं सृत्युंजयमुमापतिम् #
[ संक्षिप्त स्कन्द्पुराण
ननन
मीदोहे महानन्दसन्दोहे विश्वमोददिनि ।
जाता हि सरितां रक्षि पापं हर मदगे ॥
हे देवी ! तू इस प्रथ्वीकी दुग्ध दै, परमानन्दकी राशि
है, सम्पूण विश्वको मोहनेवाली है तथा समस्त सरिताओंकी
महारानीके रूपम प्रकट हुई है। महिद्रये ! तू मेरे पाप
हर छे ।!
इस मद्दीसागरसद्भम तीर्थम स्नान, जप और तपस्या
करके पुण्यक प्रभावसे यहुत लोग रदर्येकमे चले गये हैं ।
विशेषतः सोमनारको, उत्तम भक्तिपूर्यक यदो स्नान करके जो
पोच तीधोंकी याजा करता दै, वह पाँच महापाश मुक्त हो
जाता है। इस प्रकार इस तीर्थका बहुविध उत्तम मारस्य बताकर
भर्तृयडने उन सबको शिवागममे बताये अनुसार शिवाराघनकी
विधि ब्रतलायी तथा पूजायोगका उपदेश देकर शिवभक्तिके
उदरेकमे पूर्ण हो उन झन््द्रयुप्न आदि भक्ति पुनः इस प्रकार
कहा--'शिवजीके अतका वर्णन करनेवाले उप्वसको !
शिवजीते बढुकर दूसरा कोई देवता नहीं है । यह सर्वथा
सत्य रै, जो भगवान् शइरकों छोड़कर अन्य किसी भी
बस्तुकी उपासना करता है बह शाथे रक्ते हुए. अमृतकों
त्वागकर सुगतृष्णाकी ओर दौड़ रहा दै । बह सम्पूर्न जगत्
शिवशक्तिस्वरुप है; यह वात प्रत्यक्ष देखी जाती हैं; क्योंकि
कु७ प्राणी पुँछिज्ञके चिहोंसे युक्त है और कुछ स्नीलिब्वके
चिह्दोंसे युक्त हैं। जो पुरुपचिहमसे युक्त हैं ये शिवस्वरूप
हैं तथा जिनमें ख्रीडिज्ञयुतक चिह हैं वे सथ शक्तिस्वरूप
हैं। मगवान् रुद्रका उत्तम मारस्य 'शतंद्विय'के नामत
ब्रशिद्ध है। तुमस्मेग यदि अपने एप धोना चाहते हो तो
उसका नियमपूर्वकं भ्रवण करो ।
बह इस प्रकार दै--अह्माजी मगधान् शिवे सुवणं मय
लिक्ककी आराधना करके उसके अगत्मधान ( १ ) नामझे
जप करते हुए। अपने पदफर विराजमान हैं। औकृण्णने खह-
भागमें काले फशथरका शिवलिज्न स्थापित करके ऊर्मित
(२) नामे उसकी आराधना की है । सनकादि महर्पियों-
मे अपने दृदयरूपी लिझ्लका जगद्गति ( ३ ) नामसे पूजन
करके अपना अभीष्ट साधन किया है । सपर्पियोंने दर्भाकुरमय
( शक» श्र कुना २३ । १२४०० २७ )
डिझ्लका विश्वयोनि (४) के नामसे पूजन किया है।
देवर्षि नारद आकाशमें ही िवलिक्गकी भावना करके उसे
जाद्वीज (५) नाम देकर उसकी आराधना करते हैं।
देवराज इन्द्र वज्रमय लिज्लकी विश्यात्मा ( ६ ) नामसे पूजा
करते हैं। सूर्यदेष ताश्नमय छिझ्ककी पूजा और उसके
विश्वसुग् ( ७ ) नामका जप करते हैं। चन्द्रमा मुक्तामव
दिङ्खकी उपासना और उसके जगत्यति ( ८ ) नामका जप
करते रहते हैं। अग्निदेव इनद्रनीटमणिके शिबल्तिल्नकी पूजा
करते हुए. उसके विद्येश्वर ( ९ ) नामका जप करते हैं।
बुदश्यतिजी पुखराज मणिके शिवलिज्षकी आराधना ओर
उसके विश्वयोनि ( १० ) नामका जप किया करते ईैं।
शुक्मचार्य विश्वकर्मा ( ११ ) नामसे प्रिद पद्मराग मणिमय
शिवलिङ्गकी उपासना करते हैं। धनाध्यक्ष कुबेर सुबर्णम
डिलब्लकी पूजा और उसके ईश्वर ( १२ ) नामका जप करते
हैं। विश्वेदेवगण जगद्गति ( १३ ) नामसे प्रसिद रजतमय
शिविद्रकी पूज करते हैं। यमराज पिके िवलिद्गकी
पूज्य ओर उसकी शम्धु ( १४ ) नामव उपासना करते हैं ।
बसुगण कॉसेके शियलिक्गकी आराधना और उसके स्वयम्भू
(२५ ) नामका जप करते ह। मरुद्रण त्रियेध छोहमय
टिङ्गकी पूजा और उमेश या भूतेशच ( १६ ) नामश् जय
करते ह । राक्षस छोहमय लि२्लकी उपासना और भूतमव्य-
भयोद्धव ( १७ ) नामका जप करते ईं। गुहाकगण दी"
के शिवछिज्ञकी पूजा और योग ( १८ ) नामका अप करते
हैं। जैगीपव्य मुनि ब््चस्थ्रमव शिवलिश्नक्की उपासना और
योगेष्वर ( १९ ) नामका जप करते हैं। राज्य निमि सग्के
युगछ नर्भि ही झिपलिक्रकी भावना करके उसकी आराधना
करते और श्यं ( २० ) नाम जपते रहते ई । भन्वन्तदि
सर्व॑टोकेष्वरेश्र ( २१ ) नामसे प्रसिद्ध गोमयसिज्लकी
उपासना करते हैं। गन्धर्वगण रूकड्रौके शिवल्िक्षकी पूजा
और उसके सर्वश्रेष्ठ (२२) नामका जप करते हैं।
श्रीरामचन्द्रजी ज्वेष (२३) नामका जप करते हुए
बैदूर्यमय शिवलिज्ञकी पूजा करते हैं । बाणासुर मरकतमणि-
मव शियछिज्ञकी पूजा और वाशिष्ठ ( २४) नामकी पूजा
करता है। वरुणजी परमेश्वर ( २५ ) नामसे प्रतिद्ध