पुर्वार्चिकि पावपानपरवंषि पञ्चयोऽध्यायः ५.१५
३
७५७६. पवते हर्यतो हरिरति ह्वरांसि रं ह्या । अभ्यर्ष स्तोतृभ्यो वीरवद्यशः ॥११ ॥
अभिनन्दनीय हरित वर्णं को सोम, अपने वेगयुक्त प्रवाह से, अपने अशुद्ध भाग को शुद्ध करता हुआ, नीचे
कलश में टपकता है । हे सोम ! आप रत्विजो को पुत्र सम्बन्धी या अन सम्बन्धी कीर्ति प्रदान करें ॥११ ॥
५७७.परि कोशं मधुश्चुतं सोमः पुनानो अर्षति ।
अभि वाणीत्ररषीणां सप्ता नृषत ॥१२॥
पवित्र होता हुआ सोम, अपने मधुर रस को पात्र में पहुँचाता है । ऋषियों कौ सात पदों वातौ वाणियाँ
(गायत्री आदि सातों छन्द) इस सोम की प्रार्थना करतौ हैं ॥१२ ॥
॥इति दशमः खण्डः ॥
के के के
॥एकादशः खण्डः ॥
५७८.पवस्व मधुमत्तम इन्द्राय सोम क्रतुवित्तमो पदः । महि द्युक्षतपो पदः ॥९ ॥
हे सोम ! अत्यंत मधुर हवि (यज्ञ) के विषय में सर्वविद्, श्रेष्ठ तेजस्वो, आनन्द बढ़ाने वाले, आप इन्द्रदेव
को आनन्दित करने के लिए पवित्र हों ॥१ ॥
५७९. अभि दयुप्नं बृहद्यश इषस्पते दिदीहि देव देवयुम्। वि कोशं मध्यमं युव ।'२ |
हि अनाधिपति एवं देदीप्यमान सोमदेव ! आप देवगणो को प्राप्त होने वाले है । आप हमे तेजोभय एवं
महान् कीर्ति प्रदान करें तथा मधु के पात्र में जाकर उसे पूर्ण कर दें ॥२ ॥
५८०.आ सोता परि षिञ्चताश्वं न स्तोषमप्तुरं रजस्तुरम्। वनप्रक्षमुदप्रुतम् | ।३ ॥
है स्तोताओ ! अश्व के सदृश तोब गतिशौल, प्रार्थना के योग्य, पानी को तरह प्रवहमान, प्रकाश की
किरणों की तरह शीघ्र गणन करने वाले, पानी में मिश्रित, जलयुक्त सोम का रस अभिपुत करें और उसमें दुग्ध
का मिश्रण करें ॥३ ॥
५८१.एतपु त्यं पदच्युतं सहस्रधारं वृषभं दिवोदुहम् । विश्वा वसुनि बिभ्रतम् आड॥
आनन्ददायी, सहस्नों धाराओं के साथ कलश पे रपकने वाले, शक्तिवर्धक, सम्पूर्ण धन के स्वाम. इस
सोम का तेजस्वी ऋत्विग्गण रस निचोड्ते हैं ॥४ ॥
५८२. स सुन्वे यो वसूनां यो रायामानेता य इडान्राम् । सोमो यः सुक्षितीनाम् ॥५।
त्विजो ने सम्पत्ति, दुग्ध आदि पदार्थ, भूमि तथा घ्रे सन्तान प्रदान करने कौले उस सोम का रस निकाल
लिया हैं ॥५ ॥
५८३. त्वं ह्यारेङ्ग दैव्यं पदमान जनिमानि द्युमत्तमः । अमृतत्वाय घोषयन् ॥६॥
हे पवित्र सोम ¦ आप अत्यन्त तेजयुक्त्, दिव्य अन्यो को जानः वाले तथा अभृतन्व को उद्प्रोषिण्ण करने
वाते ॥६॥
५८४.एष स्य धारया सुतौऽव्या वारेभिः पवते मदिन्तमः । क्रीकनूर्भिरपाभिव ॥१७ ॥
अत्यन्त हर्षप्रटायक, पानी की तरंगों- सदृश क्रोड। करते हुए यह सोमरस बालों कौ लनो से धाररूप मे
सर्ति में पाना जाता है ॥७ ॥