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पूर्वभाग-प्रवम पाद दे

ह । आप ज्ञान-दानरूपी पूजन-सामग्रौके द्वारा

हमारा पूजन कीजिये । मुने! देवतालोग चन्द्रमाकी

किरणोंसे निकला हुआ अमृत पीकर जीवन धारण

करते हैं; परंतु इस पृथ्वीके देवता ब्राह्मण आपके

मुखसे निकले हुए ज्ञानरूपौ अमृतको पीकर तृ

होते है । तात ! हम यह जानना चाहते हैं कि यह

सम्पूर्णं जगत्‌ किससे उत्पन्न हुआ ? इसका आधार

ओर स्वरूप क्या है ? यह किसमें स्थित है और

किसमें इसका लय होगा? भगवान्‌ विष्णु किस

साधनसे प्रसन्न होते हैं? मनुष्योंद्वारा उनकी पूजा

कैसे को जाती है ? भिन्न-भिन्न वर्णो ओर आश्र्मोका

आचार क्या है! अतिथिकी पूजा कैसे कौ जाती

है, जिससे सब कर्म सफल हो जाते हैं? वह

मोक्षका उपाय मनुष्योंको कैसे सुलभ है, पुरुषोंको

भक्तिसे कौन-सा फल प्राप्त होता है और भक्तिका

स्वरूप क्या है? मुनिश्रेष्ठ सूतजी! ये सब बातें

आप हमें इस प्रकार समझाकर बतावें कि फिर

इनके विषयमें कोई संदेह न रह जाय, आपके

अमृतके समान वचर्नोको सुन॑नेके लिये किसके

मनमें श्रद्धा नहीं होगी?

सूतजीने कहा--महर्षियों! आप सब लोग

सुर्ें। आप लोगोंको जो अभीष्ट है, वह मैं

बतलाता हूँ। सनक़ादि मुनीश्वरोनि महात्मा नारदजीसे

जिसका वर्णन किया था, वह नारदपुराण आप

सुनें। यह वेदार्थसे परिपूर्ण है--इसमें वेदके

सिद्धान्तोंका ही प्रतिपादन किया गया है। यह

समस्त पापोंकी शान्ति तथा दुष्ट ग्रहोंकी बाधाका

निवारण करनेवाला है। दुःस्वप्नोंका नाश करनेवाला,

धर्मसम्मत तथा भोग एवं पोक्षको देनेवाला है ।

इसमें भगवान्‌ नारायणकी पवित्रे कथाका वर्णन

है । यह नारदपुराण सब प्रकारके कल्याणकौ

प्रातिका हेतु दै । धर्म, अर्थ, काम एवं पोक्षका भी

कारण है । इसके द्वारा महान्‌ फलोंकी भी प्राति

होती है, यह अपूर्वं पुण्यफल प्रदान करनेवाला

है। आप सब लोग एकाग्रचित्त होकर इस

महापुराणको सुनें। महापातकों तथा उपपातकोंसे

युक्त मनुष्य भी महर्षि व्यासप्रोक्त इस दिव्य

पुराणका श्रवण करके शुद्धिको प्राप्त होते हैं।

इसके एक अध्यायका पाठ करनेसे अश्वमेध

यज्ञका और दो अध्यायोंके पाटसे राजसुय यज्ञका

फल मिलता है। ब्राह्यणो ! ज्येष्ठके महीनेमें पूर्णिमा

तिथिको मूल नक्षत्रका योग होनेपर मनुष्य इन्द्रिय-

संयमपूर्वक मथुरापुरीकी यमुनाके जलमें स्नान

करके निराहार व्रत रहे और विधिपूर्वक भगवान्‌

्रीकृष्णका पूजन करे तो इससे उसे जिस फलकी

प्राप्ति होती है, उसीको वह इस पुराणके तीन

अध्यायोंका पाठ करके प्राप्त कर लेता है। इसके

दस अध्यायोंका भक्तिभावसे श्रवण करके मनुष्य

निर्वाण मोक्ष प्राप्त कर लेता है। यह पुराण

कल्याण-प्राप्तिके साधनोंमें सबसे श्रेष्ठ है। पवित्र

ग्रन्थोंमें इसका स्थान सर्वोत्तम है। यह बुरे

स्वप्रोंका नाशक और परम पवित्र है। ब्रह्मर्षियो!

इसका यत्रपूर्वक श्रवण करना चाहिये। यदि मनुष्य

श्रद्धापूर्वक इसके एक श्लोक या आधे श्लोकका

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