* ब्रह्मखण्ड + ३
४५१७४०४१
मतका निरूपण किया गया है? कीजिये । जहाँ गणेशजीके चरित्र, जन्म और
वत्स! जिस पुराणमें प्रकृतिके स्वरूपका | कर्मका तथा उनके गृढ कवच, स्तोत्र ओर
निरूपण हुआ हो, गुर्णोका लक्षण वर्णित हो तथा | मन्त्रोका वर्णन हो, जो उपाख्यान अत्यन्त अद्भुत
" महत्" आदि तत्त्वोंका निर्णय किया गया हो; | और अपूर्व हो तथा कभी सुननेमे न आया हो,
जिसमें गोलोक, वैकुण्ठ, शिवलोक तथा अन्यान्य | वह सब मन-ही-मन याद करके इस समय आप
स्वर्गादि लोर्कोका वर्णन हो तथा अंशो और | उसका वर्णन करें। परमात्मा श्रीकृष्ण सर्वत्र
कलाओंका निरूपण हो, उस पुराणको श्रवण | परिपूर्ण हैं तथापि इस जगत्में पुण्य-द्षेत्र
कराइये। सूतनन्दन ! प्राकृत पदार्थ क्या हैं? प्रकृति | भारतवर्षमें जन्म (अवतार) लेकर उन्होंने नाना
क्या है तथा प्रकृतिसे परे जो आत्मा या परमात्मा | प्रकारके लीला-विहार किये। मुने! जिस पुराणमें
है, उसका स्वरूप क्या है? जिन देवताओं और | उनके इस अवतार तथा लीला-विहारका वर्णन
देवाड़नाओंका भूतलपर गूृढ़रूपसे जन्म या | हो, उसकी कथा कहिये। उन्होंने किस पुण्यात्माके
अवतरण हुआ है, उनका भी परिचय दीजिये। | पुण्यमय गृहमें अवतार ग्रहण किया था? किस
समुद्रों, पर्वतों और सरिताओंके प्रादुर्भावकी भी | धन्या, मान्या, पुण्यवती सती नारीने उनको
कथा कहिये। प्रकृतिके अंश कौन हैं? उसकी | पुत्ररूपसे उत्पन्न किया था? उसके घरमें प्रकट
कलाएं और उन कलाओंकी भी कलाएं क्या | होकर वे भगवान् फिर कहाँ और किस कारणसे
हैं? उन सबके शुभ चरित्र, ध्यान, पूजन और | चले गये? वहाँ जाकर उन्होंने क्या किया और
स्तोत्र आदिका वर्णन कीजिये। जिस पुराणमें दुर्गा, | बहाँसे फिर अपने स्थानपर कैसे आये? किसकी
सरस्वती, लक्ष्मी और सावित्रीका वर्णन हो, | प्रार्थनासे उन्होने पृथ्वीका भार उतारा? तथा
श्रीराधिकाका अत्यन्त अपूर्व और अमृतोपम | किस सेतुका निर्माण (मर्यादाकी स्थापना)
आख्यान हो, जीवोंके कर्मविपाकका प्रतिपादन | करके वे भगवान् पुनः गोलोकको पधारे? इन
तथा नरकोंका भी वर्णन हो, जहाँ कर्मबन्धनका | सबसे तथा अन्य उपाख्यानोंसे परिपूर्ण जो
खण्डन तथा उन कर्मोसि छूटनेके उपायका | श्रुतिदुर्लभ पुराण है, उसका सम्यक् ज्ञान
निरूपण हो, उसे सुनाइये। जिन जीवधारियोंकों | मुनियोंके लिये भी दुर्लभ है । वह मनको निर्मल
जहाँ जो-जो शुभ या अशुभ स्थान प्राप्त होता | बनानेका उत्तम साधन है । अपने ज्ञानके अनुसार
हो, उन्हें जिस कर्मसे जिन-जिन योगियोंमें जन्म | मैंने जो भी शुभाशुभ बात पूछी है या नहीं
लेना पड़ता हो, इस लोकमें देहधारिर्योको जिस | |पूछी है, उसके समाधानसे युक्त जो पुराण
कर्मसे जो-जो रोग होता हो तथा जिस कर्मके | तत्काल वैराग्य उत्पन्न करनेवाला हो, मेरे समक्ष
अनुष्ठानसे उन रोगोंसे छुटकारा मिलता हो, उन | उसीकी कथा कहिये। जो शिष्यके पूछे अथवा
सबका प्रतिपादन कीजिये। बिना पूछे हुए विषयकी भी व्याख्या करता है
सूतनन्दन! जिस पुराणमें मनसा, तुलसी, | तथा योग्य और अयोग्यके प्रति भी समभाव
काली, गङ्गा और वसुन्धरा पृथ्वी-इन सबका | रखता है, वही सत्पुरुषोंमें श्रेष्ठ सदगुरु है।
तथा अन्य देवियोंका भी मङ्गलमय आख्यान हो, सौति बोले--मुने आपके चरणारविन्दोंका
शालग्राम-शिलाओं तथा दानके महत्त्वका निरूपण | दर्शन मिल जानेसे मेरे लिये सब कुशल-ही-
हो अथवा जहाँ धर्माधर्मके स्वरूपका अपूर्व | कुशल है। इस समय मैं सिद्धक्षेत्रसे आ रहा
विवेचन उपलब्ध होता हो, उसका वर्णन | हूँ और नारायणाश्रमको जाता हूँ। यहाँ ब्राह्मणसमूहकों