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प्रक्रिया, अनुषंग, उत्पोद्धात और उपसंहार । इन्हीं के द्वारा सम्पूर्ण वर्णन
हुआ है ।
इस पुराण के नामकरण का रहस्य है कि इसमें समस्त ब्रह्मांड का
वर्णन है भुवन कोष का उल्लेख तो सभी पुराणों में मिलता है परन्तु
प्रस्तुत पुराण में सारे विश्व का सांगोपांग वर्णन उपलब्ध होता है। इसमें
बिश्व के भूगोल का विस्तृत व रोचक विवेचन है । इसमें ऐसी-ऐसी जान-
कारी मिलती है जिसे देखकर आश्चयं होता है कि बिना बेज्ञानिक सहयोग
के इतनी गहन खोज कैसे की होगी । वंजानिक युग मैं अभी तक उसकी
पुष्टि भी नहीं हो पायी है |
पुराण में स्वायम्भुव मनु के सगंव भारत आदि सव वर्षो की समस्त
नदियों का वर्णेन है । फिर सहस्रों द्वीपों के भेदों का सात द्वीपों में ही अन्त-
भवि हैं, जम्बूढ्वीप और समुद्र के मण्डल का विस्तार से वर्णन है । पर्वतो का
योजना-बद्ध उल्लेख है । जम्बुद्वीप आदि सात समुद्रौ के द्वारा घिरे हुए हैं।
सप्तद्वीप का प्रमाण सहित वर्णन है । सूर्य, चन्द्र और पृथ्वी को पूर्ण परि-
णाम बताया गया है । सूर्य की गति का भी उल्लेख है । ग्रहों की गति और
परिमाण भी कहे गये हैं। इस तरह से विश्व के भूगोल का महत्व पूर्ण
उल्लेख है ।
वेद के सम्बन्ध में भी यह् जानकारी उल्लेखनीय है कि विभु बुद्धि-
मान गीणं स्कन्ध ने सन्तान के हेतु से एक वेद के चार पाद किये थे भौर
ईश्वर ने चार प्रकार से किया था । भगवान शिव के अनुग्रह से व्यास देव
ने उसी भाँति भेद किया था । उस वेद की शिष्यों ओर प्रशिष्यों ने वेद की
अयुत शाखाए को थो ।
हु इस पुराण के विषय में एक विशेष बात यह है कि ईसवी सन् ५ की
शताब्दी में इस पुराण को ब्राह्मण लोग जावा द्वीप ले गये थे। वहाँ की
प्राचीन “कवि भाषा में अनुवाद हुआ जो आज भी मिलता है। इससे इस
पुराण की प्राचीनता का भी बोध होता है ।