३२२ & श्री लिंग पुराण @
व्रत को पूछता भया और शिव के पशुपति होने का
कारण पूछा। यही वृत्तान्त द्वैपायन व्यास से सुना। वही
तुमसे कहता हूं ।
सनत्कुमार ने कहा-- पशुपति नाम देव शंकर का
कैसे है ? पशु कौन है ? कौन पाश है जिससे पशु बंधे
हैं ? और कैसे मुक्त हैं ?
शैलादि बोले--हे सनत्कुमार! तुम रुद्र के भक्त हो
सो तुम्हें यथार्थ रूप से कहता हूँ। ब्रह्मा से लेकर सम्पूर्ण
जीव तृण तक पशु हैं क्योंकि वे संसार के वशीभूत हैं
तथा उनका पति होने से रुद्र को पशुपति कहते हैं।
आदि अन्त सहित भगवान विष्णु उन्हें माया के पाश से
पशुवत् सबको बाँध लेता है। ज्ञान योग से सेवन किया
हुआ वही सबका मोचक ( छुड़ाने वाला ) है। उनसे अलग
अविद्यारूपी पाश से उन्हें कोई छुड़ा नहीं सकता।
परमात्मा शंकर के बिना उनकी कोई गति नहीं है।
२४ तत्व ही माया के पाश हैं। जीवों के द्वारा उपासना
किया हुआ शिव ही उन्हें छुड़ाता है और २६ तत्वों से ही
वह जीवों को माया के पाश में बाँध देता है। वह पाश
इस प्रकार है। १० इन्द्रियाँ तथा चार ( मन, बुद्धि, चित्त,
अहंकार ) अन्तःकरण, ५ भूत ( पृथ्वी, जल, तेज, वायु,
आकाश ) पंच तन्मात्रा ( शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध )
इन २४ तत्वों के पाशो से प्रभु सबको बाँथे रखता है।