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एवं यहाँ कैसे आयी तथा रहती हो?

उस समय पाञ्चालके अनुरोधपूर्वक पूछनेपर

भी उस कन्याने उसका कुछ उत्तर नहीं दिया।

कुछ समय बाद पाञ्चालने कहा--' देखो, अब तुम

यदि सच्ची बात नहीं कहोगी तो मैं अपने

प्राणोंका त्याग कर दूँगा ।' उसके इस निश्चयको

देख उस कन्याने अपने माता-पिता, भाई, देश,

जाति ओर कुल सबका यथावत्‌ परिचय देते हुए

बतलाया कि "मेरे पिताके पाँच पुत्र और मैं-ये

छः संताने हुई थीं, जिनमें सबसे छोटी संतान मैं

ही हूँ। विवाहके बाद मेरे पतिदेवका शीघ्र हो

देहान्त हो गया। पाँचों भाइयोंपें जो सबसे छोटा

था, वह धनकी तृष्णासे बचपनमें ही व्यापारियोंके

साथ विदेश चला गया। उसके चले जानेपर मेरे

माता-पिता मर गये। अतएव कुछ सहायकोंका

साथ पाकर मैं इस तीर्थम उनके अस्थिप्रवाहके

लिये चली आयी। यहाँ कुछ गणिकाओंके कुचक्रमें

पड़कर मेरी यह दशा हुई। मैंने कुलटा स्त्रियोंका

धर्म अपनाकर अपने कुलकों नष्ट कर दिया। यही

नहीं, मातृ-पितृ ओर पति-इन तीनों कुलोंके

इक्कीस पीढ़ियोंकों घोर नरकमें गिरा दिया।'

इस प्रसङ्गको सुनकर पाञ्चालको तो मूर्च्छा

आ गयी और वह भूपिपर गिर पड़ा। वहाँ

उपस्थित स्त्रियँ दीनवदना उस ब्राह्मणकुमारीको

समझा-बुझाकर पाञ्चालके चारों ओर खड़ी हो

गयीं और फिर अनेक प्रकारके उपायोंका प्रयोग

कर उन सबोंने उसकी मूर्च्छाकों दूर किया। जब

उसके शरीरमें चेतना आयी तो उन्होने उससे

बेहोशीका कारण पूछा। इसपर उस ब्राह्मणकुमारने

अपना सारा वृत्तान्त कह सुनाया। फिर इस पापसे

उसके मने घोर चिन्ता व्याप्त हो गयी और बह

प्रायश्चित्तकी बात सोचने लगा। उसने कहा-

+ संक्षिप्त श्रीवराहपुराण *

[ अध्याय १७५ - १७६

"मुनिरयोनि विचार करके यह आदेश दिया है कि

यदि कोई द्विजाति ब्राह्मणकी हत्या कर दे अथवा

मदिरा पी ले तो उसका प्रायशित्त शरीरका

परित्याग ही है । माता, गुरुकी पत्नी, बहन, पुत्री,

ओर पुत्रवधृसे अवैध सम्बन्ध रखनेवालेको जलती

अग्ने प्रवेश कर जाना चाहिये । इसके अतिरिक्त

उसकी शुद्धिके लिये दूसरा कोई उपाय नहीं है ।'

जब पाञ्चालीने अपने बड़े भाईके मुखसे ही

मुनिकथित यह प्रायध्ित्त सुना तो उसने भी अपने

सौभाग्यके सम्पूर्ण आभूषण, रन-वस्त्र, धन ओर

धान्य आदि जो कुछ भी वस्तुं संचित कर

रखी थीं, बह सब-का-सब ब्राह्मणों बाँट

दिया। साथ ही बताया कि “इस द्रव्यसे कालज्ञरका

श्ुद्धार तथा एक उद्यानका निर्माण कराया जाय।'

फिर उसने सोचा-' अपनी आत्म-शुिके

लिये ' कृष्णगङ्गोद्धवतीर्थ *म चलकर विधिपूर्वक

चितारोहण करै ।'

उधर पाञ्चाल भी सुमन्तुमुनिके पास पहुँच

कर उन्हें प्रणापकर मृत्युके उपयोगी कर्मोका

सम्पादन कर मथुराके निवासी ब्राह्मणोंकों बुलाकर

उन्हें भलीभाँति दान देकर अपनी शेष सम्पूर्ण

धनराशि सत्र खोलनेके लिये दे दी ओर विधिके

अनुसार अपनी ओरध्वदैहिक संस्कारके लिये भी

व्यवस्था कर ली। ' कृष्णैगङ्गा 'मे स्नानकर उसने

इष्टदेवका दर्शनकर, उन्हें प्रणाम किया और

सुमन्तुमुनिके चरणोको पकड़कर प्रार्थना कौ-

* भगवन्‌! मैं अगम्या-गमनके दोषसे महान्‌ पापी

बन गया हूँ । मुझ कुलनाशकका स्वभगिनीके साथ

ही दुर्योगसे अवैध सम्बन्ध हो गया। अब मैं अपने

शरीरका त्याग करना चाहता हं । आप आज्ञा दें।'

इस प्रकार सुमन्तुमुनिको अपना पाप सुनाकर

चितापर धृत छिड़क कर वह अग्निम प्रवेश

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