३१६ ] [ ब्रह्माण्ड पुराण
वाले और महान बलवान थे ।७६। उनने प्रत्येक नकूल के ऊपर शरों के
समूहों की मेघों की भांति वर्षा की थी । दैत्यों के सेनापतियों के परम प्रौढ़
धनुषो से निकले हुए बाणों ने नकलों के करोड़ों दाँतों पर अथवा दाँतों के
कौनों पर अतीव कठोर घट्टन किया था। अर्थात् जोरदार प्रहार किये थे
।८०। संकटों से भी अधिक सेनानियों के बाणों के समुदायों से आहत तकूलों
के वज् के समान दाँतों से अग्नि की चिनग्रारियों निकल रही थीं। उन
पाँचों सेनापतियों ने एक ही हत्ले में मिलकर सेना का विमर्दन कर विया
था। सेनानियों के द्वारा छोड़े हुए वाणों सें जो करोड़ों की संख्या में थे
विशीर्ण शरीरों वाले विचारे नकुल इधर-उधर घुमते गए नकुली के आस-
पास घिरकर समागत हो गये थो ।८१-८२। इसके अनन्तर वाङ्मय की एक
देवता वह नकूली नकूलों की परावृत्ति से बड़े भारी क्रोघ में भर गयी थी ।
।८३। उस नकूली ने अक्षीण नकूल नामक महास्त्र को जिसका सभी ओर
मुख था और जो वहिन की ज्वालाओं से घिरे हुए अग्रभाग वाला था उस
को अपने धनुष पर चढ़ाया था ।८४।
तदस्त्रतो विनिष्ठयूता नकुलाः कोरिसंख्यकाः ।
वच्राङ्गा वज्नलोमानो वज्नद ष्टा महाजवाः ॥८५
वजुसाराश्च निविडा वजुजाल भयंकराः ।
वजूकारेनंखैस्तूणे दारयन्तो महीतलम् ॥८६
वजु रत्न प्रकाशेन लोचनेनापि गोभिताः।
वजुसंपातसटशा नासाचीत्कारकारिणः ॥5७
मदं यन्ति सुरारातिसीन्यं दशनकोटिभिः ।
पराक्रमं बहुविधं तेनिरे ते निरेनसः ॥ ८८
एवं नक् लकोटीभिवंजघो रेमंहाबलेः ।
विनष्टः प्रत्यवयवं विनेशुर्दानवाधमाः ।।८६
एवं वज्र मयंवंभरुमं उलौः ख डिते बले ॥६०
शताक्षौहिणिके संख्ये ते स्वमात्रावशेषिताः ।
अतित्रासेन रोषेण गृहीताश्च चमूवराः ।
सं्राममधिकं तेनुः समाकृष्टश रासना: ॥६ १