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२७४ & श्री लिंग पुराण #

जप यज्ञ से देवता प्रसन्न होते हैं। वे विपुल भोगों को

तथा मोक्ष को देते हैं, जप से जन्मान्तरों के पाप क्षय होते

हैं, मृत्यु को भी जीत लिया जाता है। जप से सिद्धि प्राप्त

होती है परन्तु सदाचारी पुरुष को सब सिद्धियां प्राप्त

होती हैं दुराचारी को नहीं, क्योकि उसका साधन निष्फल

है। अतः आचार ही परम धर्म है। आचार ही परम तप है

तथा आचार ही परम विद्या है । आचार से ही परम गति

है । आचारवान पुरुष ही सब फलों को पाता है तथा

आचारहीन पुरुष संसार में निन्दित होता है । इसलिये

सिद्धि की इच्छा वाले पुरुष को सब प्रकार से आचारवान

होना चाहिए।

संन्ध्योपासना करने वाले पुरुष को सब कार्य तथा

फल प्राप्त होते है । अतः काम, क्रोध, लोभ, मोह किसी

प्रकार से भी संध्या को नहीं त्यागना चाहिए। संध्या न

करने से ब्राह्मण ब्राह्मणत्व से नष्ट होता है। असत्य भाषण

नहीं करना चाहिये । पर दारा, पर द्रव्य, पर हिंसा मन

वाणी से भी नहीं करनी चाहिए । शूद्रान्न, बासा अन्न,

गणान्न तथा राजान्न का सदा त्याग करना चाहिए । अन्न

का परिशोधन अवश्य चाहिए ।

बिना स्नान किये, बिना जप किये हुए, अग्नि कार्य

न किए हुए भोजन न करें । रात्रि में तथा बिना दीपक के

तथा पर्णपृष्ठ पर फूटे पात्र में तथा गली में, पतितों के

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