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२७८ * संक्षिप्त ब्रह्मपुराण *

वर्ण श्चेतगिरिके शिखरकी भाँति गौर होगा । तदनन्तर | अनेक स्थान बनाकर सारी पृथ्वीकी शोभा बढ़ायेगी।

नै देवकीके उदरमें प्रवेश करूँगा। उस समय तुझे | भूति, संनति, कीर्ति, कान्ति, पृथ्वी, धृति, लजा,

भी यशोदाके गर्भे अविलम्ब प्रवेश करना होगा। | पुष्टि, उषा तथा अन्य जो भी स्त्री-नामधारी वस्तु

वर्षा-ऋतुमें ऋ्रवणमासके* कृष्णपक्षकी अष्टमी तिधिको | है, वह सब तू ही है। जो प्रातःकाल और

आधी रातके समय मेरा प्रादुर्भाव होगा और तू | अपराहे तेरे सामने मस्तक झुकायेंगे और तुझे

नवमी तिथिमें यशोदाके गर्भसे जन्म लेगी। उस | आर्या, दुर्गा, वेदगर्भा, अम्बिका, भद्रा, भद्रकाली,

समय वसुदेव मेरी शक्तिसे प्रेरित होकर मुझे तो | कषेम्या तथा क्षेमंकरी आदि कहकर तेरी स्तुति

यशोदाकी शब्यापर पहुँचा देंगे और तुझे देवकीके | करेंगे, उनके समस्त मनोरथ मेरे प्रसादसे सिद्ध हो

पास लायेंगे। फिर कंस तुझे लेकर पत्थरकी | जायँगे। जो लोग भक्ष्य-भोज्य आदि पदार्थसे तेरी

शिलापर पछाड़ेगा, किंतु तू उसके हाथसे निकलकर | पूजा करेंगे, उन मनुष्योंपर प्रसन्न होकर तू उनकी

आकाशमें ठहर जायगी। यों करनेपर इन्द्र मैरे | समस्त अभिलाषाएँ पूर्ण करेगी। वे सब लोग सदा

गौरवका स्मरण करके तुझे सौ-सौ बार प्रणाम करेंगे | मेरी कृपासे निश्चय ही कल्याणके भागी होंगे;

और विनीतभावसे अपनी बहिन बना लेंगे। फिर तू | अतः देवि! जो कार्य मैंने तुझे बताया है, उसे पूर्ण

शुम्भ-निशुम्भ आदि सहस्र दैत्योंका वध करके | करनेके लिये जा।'

भगवान्‌का अवतार, गोकुलगमन, पूतना-वध, शकट-भङ्जन,

-उद्धार, गोपोंका वृन्दावनगमन तथा बलराम

ओर श्रीकृष्णका बछड़े चराना

व्यासजी कहते है - देवाधिदेव श्रीहरिने पहले | गयीं। देवकीके शरीरम इतना तेज आ गया कि

जैसा आदेश दिया था, उसके अनुसार जगज्जननी | कोई उनकी ओर आँख उठाकर देख भी नहीं

योगपायाने देवकीके उदरे क्रमश: छः गर्भ | सकता था। देवतागण स्त्री -पुरु्षोसे अदृश्य रहकर

स्थापित किये और सातबेंको खचकर रोहिणीके | अपने उदरमें श्रीबिष्णुको धारण करनेवाली माता

उदरमे डाल दिया। तदनन्तर तीनों लोर्कोका | देवकौका प्रतिदिन स्तवन करने लगे।

उपकार करनेके लिये साक्षात्‌ श्रीहरिने देवकीके | देवता बोले--देवि! तुम स्वाहा, तुम स्वधा

गर्भं प्रवेश किया और उसी दिन योगनिद्रा | ओर तुम्हीं विद्या, सुधा एवं ज्योति हो। इस

यशोदाके उदरमें प्रविष्ट हुईं। भगवान्‌ विष्णुके | पृथ्वीपर सम्पूर्ण लोकोंको रश्चाके लिये तुम्हारा

अंशके भूतलपर आते ही आकाशे ग्रहोंकी गति | अवतार हुआ है। तुम प्रसन्न होकर सम्पूर्ण

यथावत्‌ होने लगी । समस्त ऋतुं सुखदायिनी हो | जगत्‌का कल्याण करो । हमारी प्रसन्नताके लिये

* यहाँ श्रावणका अर्थ भाद्रपद समझना चाहिये । जहाँ अमावस्याके बाद शुक्लपश्चसे मासका आरम्भ माना जाता

है, वहाँकों मास-गणवाको दृष्टिमें रखकर श्रावण मास कहा गया है । जहाँ कृष्णपक्षसे मासका आरम्भ होता है,

यहाँ वह तिथि भाद्रपद मासमे हो होगी।

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