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* कण्डुभुनिकः चरित्र और मुनिपर भगवान्‌ पुरुषोत्तपकी कृषा « २७१

मेष, सर्वत्र विख्यात तथा देवताओंके स्वामी ब्रह्म | अन्य वृक्ष हैं। व्यक्त जगत्‌ और प्रजापति भी आप

भी आप ही हैं। ऋक्‌, यजुः और साम भी आप | ही हैं। आपकी नाभिसे सुबर्णमय कमल प्रकट

ही हैं। आप हौ सबके आत्मा माने गये हैं। आप | हुआ है। आप दिव्य शक्तिसे सम्पन्न हैं। आप ही

ही अग्नि, आप ही वायु, आप ही जल और आप | चद्धमा और आप ही प्रजापति हैं। आपके

ही पृथ्वी हैं। स्रष्टा, भोका, होता, हविष्य,यज्ञ, | स्वरूपका वर्णन नहीं किया जा सकता। आप

प्रभु, विभु. श्रेष्ठ, लोकपति और अच्युत भी आप | ही यम और आप ही दैत्योंके नाशक श्रीविष्णु

ही हैं। आप सबके द्रष्टा ओर लक्ष्मीवान्‌ हैं। आप | हैं। आप हो संकर्षण देव हैं। आप हौ कर्ता

हौ सबका दमन करनेवाले और शत्रुओंके नाशक | और आप हौ सनातन पुरुष हैं। आप तीनों

हैं। आप ही दिन और आप ही रात्रि हैं, विद्वान्‌ | गुणोंसे रहित हैं।

पुरुष आपको ही वर्ष कहते हैं। आप ही काल | आप ज्येष्ठ, वरिष्ठ और सहिष्णु हैं। लक्ष्मीके

हैं। कला, काष्ठा, मुहूर्त, क्षण और लव- संम | पति हैं। आपके सहस्रों मस्तक हैं। आप अव्यक्त

आपके हो स्वरूप हैं। आप ही बालक, आप ही , देवता हैं। आपके सहस्रो नेत्र और सहसो चरण

वृद्ध तथा आप ही पुरुष, स्त्री और नपुंसक हैं।| हैं। आप विरार्‌ और देवताओंके स्वामी हैं।

आप विश्वकी उत्पत्तिके स्थान हैं। आप ही सबके | देवदेव! तथापि आप दस अँगुलके होकर रहते

नेत्र हैं। आप हौ स्थाणु (स्थिर रहनेवाले) और | हैं। जो भूत है, वह आपका ही स्वरूप बताया

आप ही शुचिश्रवा ( पविघ्र यशवाले) हैं। आप | गया है। आप हो अन्तर्यामी पुरुष, इन्द्र और उत्तम

सनातन पुरुष हैं। आपको कोई जीत नहीं सकता। | देवता हैं। जो भविष्य है, वह भी आप ही हैं।

आप इन्द्रके छोटे भाई उपेन्द्र ओर सबसे उत्तम | आप हो ईशान, आप ही अमृत और आप ही मर्त्य

हैं। आप सम्पूर्ण विश्वको सुख देनेवाले हैं। वेदोंके | हैं। यह सम्पूर्ण संसार आपसे ही अङ्कुरित होता

अङ्गं भी आप हो हैं। आप अविनाशी, वेदोंके भी | है, अत: आप परम महान्‌ और सबसे उत्तम हैं।

वेद (ज्ञेय तत्व), धाता, विधाता और समाहित | देव! आप सबसे ज्येष्ठ हैं, पुरुष हैं और आप ही

रहनेवाले हैं। आप जलराशि समुद्र हैं। आप ही | दस प्राणवायुओंके रूपमें स्थित हैं। आप विश्वरूप

उसके मूल हैं। आप ही धाता और आप ही वसु है। आप | होकर चार भागोंमें स्थित हैं। अमृतस्वरूप होकर

वैद, आप धृतात्मा और आप इन्दरियातीत हैं। आप | नौ भागोंके साथ झ्युलोकमें रहते हैं और नौ

सबसे आगे चलनेवाले और गाँवके नेता हैं। आप | भागोंसहित सनातन पौरुषेय रूप धारण करके

ही गरुड ओर आप ही आदिमान्‌ हैं। आप ही | अन्तरिक्षे निवास करते हैं। आपके दो भाग

संग्रह (लघु) और आप ही परम महान्‌ है । अपने | पृथ्वीमें स्थित हैं और चार भाग भी यहाँ ह ।

मनको वशमें रखनेवाले और अपनी महिमासे | आपसे यज्ञोंकी उत्पत्ति होती है, जो जगत्‌ वृष्ट

कभी च्युत न होनेवाले भी आप ही हैं। आप | करनेवाले हैं। आपसे ही विराट्की उत्पत्ति हुई,

यम और नियम हैं। आप प्रांशु (उन्नत शरीरवाले) | जो सम्पूर्ण ज़गत्‌के हृदयमें अन्तर्या पुरुषरूपसे

ओर चतुर्भुज हैं। अन्न, अन्तरात्मा और परमात्मा | विराजमान हैं। वह विराट्‌ पुरुष अपने तेज, यश

भी आप हो कहलाते हैं। आप गुरु और गुरुतम , और ऐश्वर्यक कारण सम्पूर्ण भूतोंसे विशिष्ट है।

हैं, बाम और दक्षिण हैं। आप ही पीपल एवं | आपसे ही देवताओंका आहारभूत हवनीय घृत

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