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चारों युगों के विस्तृत वर्णन से आश्चर्यं तो होता ही है, साथ ही
ऋषियों की प्रतिभा का भी आभास होता है ¦ रौरव आदि नरकों के वर्णन
मै सभी प्राणियों के पापों के परिणामों का निर्णय किया गया है। इससे
पाठक को अपने कर्मों की समीक्षा करके जीवन मागं को नये ठद्धं से निर्घा-
रिते करने की प्रेरणा मिलती है ।
पुराण को साहित्य की दृष्टि से भी, उत्कृष्ट माना जाता है क्योंकि
निबन्ध ग्रन्थों में इसके श्लोक दिखाई देते हैं। मिताक्षरा अपराकं, स्मृति
चन्द्रिका, कल्पतरु में इसके श्लोक उद्घृत किये गये हैं। इससे लगता है.
प्राहित्यकारों की दृष्टि में यह पुराण उच्च महत्व का है। कालिदास की
रचनाओं का और उनकी वैदर्भीं रीति का प्रभाव,भी इस पुराण के विवे.
वन पर है । इतिहास कारों का मत है कि पुराण की रचना गुप्तोत्तर युग
में अर्थात् ६०० ईस्वी में मानना उचित है ।
-चमनलाल गौतस