गिराया। फिर देवता स्वर्गमें विराजमान हुए और | इस विजयगाथाका पाठ करता है, वह स्वर्गलोकमें
दैत्यलोग पातालमें रहने लगे। जो मनुष्य देवताओंकी | जाता है॥ १५--२३ ॥
इस प्रकार विद्याओके सारभूत आदि आग्नेय महाएराणमें 'कूमावतार-वर्णन नामक
तीसरा अध्याय पूरा हुआ # ३ #
[ अप 2990:-:,,-०
चौथा अध्याय
वराह, नृसिंह, वामन और परशुराम-अवतारकी कथा
अग्निदेव कहते हैं--वसिष्ट! अब मैं | उस समय दैत्यराज बलि गङ्गाद्वारे यज्ञ कर रहे
वराहावतारकी पापनाशिनी कथाका वर्णन करता | थे। भगवान् उनके यज्ञमें गये और वहाँ यजमानकी
हूँ। पूर्वकाले 'हिरण्याक्ष' नामक दैत्य असुका | स्तुतिका गान करने लगे ॥ १--७॥
राजा था। वह देवताओंको जीतकर स्वर्गमेँ रहने
लगा। देवताओंने भगवान् विष्णुके पास जाकर
उनकी स्तुति की। तब उन्होंने यज्ञवाराहरूप
धारण किया और देवताओंके लिये कण्टकरूप
उस दानवको दैत्योंसहित मारकर धर्म एवं
देवताओं आदिकी रक्षा की। इसके बाद वे
भगवान् श्रीहरि अन्तर्धान हो गये। हिरण्याक्षके
एक भाई था, जो 'हिरण्यकशिपु'के नामसे
प्रसिद्ध था। उसने देवताओंके यज्ञभाग अपने
अधीन कर लिये और उन सबके अधिकार
छीनकर वह स्वयं ही उनका उपभोग करने लगा।
भगवान्ने नृसिंहरूप धारण करके उसके सहायक
असुरोंसहित उस दैत्यका वध किया। तत्पश्चात्
सम्पूर्ण देवताओंको अपने-अपने पदपर प्रतिष्ठित
कर दिया। उस समय देवताओंने उन नृसिंहका
स्तवन किया।
पूर्वकालमें देवता और असुरोंमें युद्ध हुआ।
उस युद्धमें बलि आदि दैत्योंने देवताओंको परास्त
करके उन्हें स्वर्गसे निकाल दिया। तब बे
श्रीहरिकी शरणमें गये। भगवानने उन्हें अभयदान
दिया और कश्यप तथा अदितिकी स्तुतिसे प्रसन्न
हो, वे अदितिके गर्भसे वामनरूपमें प्रकट हुए।
वामनके मुखसे वेदोंका पाठ सुनकर राजा
बलि उन्हें वर देनेको उद्यत हो गये और
शुक्राचार्यके मना करनेपर भी बोले -- ब्रह्मन्!
आपकी जो इच्छा हो, मुझसे माँगें। मैं आपको
वह वस्तु अवश्य दूँगा।' वामनने बलिसे कहा--
“मुझे अपने गुरुके लिये तीन पग भूमिकी
आवश्यकता है; वही दीजिये।' बलिने कहा--
"अवश्य दूँगा।' तब संकल्पका जल हाथमें पड़ते
ही भगवान् वामन “अवामन' हो गये। उन्होंने
विराट् रूप धारण कर लिया और भूर्लोक,
भुवर्लोक एवं स्वर्गलोकको अपने तीन पगोंसे
नाप लिया। श्रीहरिने बलिको सुतललोकमें भेज
दिया और त्रिलोकीका राज्य इन्द्रकों दे डाला।
इन्द्रने देवताओंके साथ श्रीहरिका स्तवन किया।
वे तीनों लोकोंके स्वामी होकर सुखसे रहने लगे।
ब्रह्मन्! अब मैं परशुरामावतारका वर्णन करूँगा,
सुनो । देवता और ब्राह्मण आदिका पालन करनेवाले
श्रीहरिने जब देखा कि भूमण्डलके क्षत्रिय
उद्धत स्वभावके हो गये हैं, तो वे उन्हें मारकर
पृथ्वीका भार उतारने और सर्वत्र शान्ति स्थापित
करनेके लिये जमदग्रिके अंशद्वारा रेणुकाके गर्भसे
अवतीर्णं हुए। भृगुनन्दन परशुराम शस्त्र-विद्याके