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डर अधर्ववेद संहिता धाग-१

२९३५. अन्तरिक्षं दिवं भूमिमादित्यान्‌ मरुतो दिशः ।

लोकान्त्स सर्वानाप्नोति यो ददाति शतौदनाम्‌ ।॥१० ॥

जो "शतौदना" का दान करते हैं, वे अन्तरि चुलोक, पृथ्वी, सूर्य मरुत्‌ तथा दिशाओं आदि के सम्पूर्ण लोकों

को प्राप्त करते है ॥१० ॥

२९३६. धूतं परोक्षन्ती सुभगा देवी देवान्‌ गमिष्यति ।

पक्तारम्ये मा हिंसीरदिवं प्रहि शतौदने ॥९९ ॥

है अहिंसनीय सुभगा देवि ! आप धृत सिंचन करती हुई देवताओं को प्राप्त होंगी । आप पकाने वाले की

हिंसा न करें, उन्हें स्वर्ग की ओर प्रेरित करें ॥११ ॥

[ 'शतौदना' प्रकृति कभी-कभी कुद्ध हो उठती है, तो मनुष्यों का अनिष्ट होने लगता है । उससे प्रार्थना है कि हम आपके

किकास-परिफाक में सहयोगी हैं। हे पारः ! हमें यागे पत्‌ जेष्ठ दिश में प्रेरित करो । ]

२९३७. ये देवा दिविषदो अन्तरिश्षसदश्च ये ये चेमे भूम्यामधि ।

तेभ्यस्त्वं धुक्ष्व सर्वदा क्षीरं सर्पिरथो मधु ॥१२॥

जो देव स्वग, अन्तरिश्च तथा धरती पर निवास करते दै उनके लिए सदैव दुग्ध, घृत तथा मधु का दोहन करें ॥

२९३८. यत्‌ ते शिरो यत्‌ ते मुखं यौ कर्णौ ये च ते हनू।

आमिक्षां दुतां दत्र क्षीरं सर्पिरथो मधु ॥१३ ॥

आपके जो सिर, मुख, कान तथा हनु हैं, वे दाता को, दुग्ध, दही, घृत तथा मधु प्रदान करें ॥१३ ॥

२९३९. यौ त ओष्ठौ ये नासिके ये शृद्धे ये च तेऽक्षिणी ।

आमिक्षां दुहतां दात्र क्षीरं सर्पिरथो मधु ॥१४॥

आपके जो ओष्ठ, नाक, आँख तथा सींग है, वे दाता को, दुग्ध, दही, घृत तेथा मधु प्रदान करें ॥१४ ॥

२९४०. यत्‌ ते क्लोमा यद्‌ हदवं पुरीतत्‌ सहकण्ठिका ।

आभिक्षां दुतां दात्र क्षीरं सर्पिरथो मधु ॥१५॥

आपके जो फेफड़े, हृदय, मलाशय तथा कण्ठ भाग हैं, वे दाता को दुग्ध, दही, घृत तथा मधु प्रदान करें ॥१५ ॥

२९४१. यत्‌ ते यकृद्‌ ये मतस्ने यदान््ं याश्च ते गुदाः ।

आमिक्षां दुहतां दात्र क्षीरं सर्पिरथो मधु ॥१६ ॥

आपके जो यकृत, गुद, अति तथा गुदा हैं, वे दाता को दुग्ध, दही, धृत तथा मधु प्रदान करें ॥१६ ॥

२९४२. यस्ते प्लाशिर्यो वनिष्ठुर्यौ कुक्षी यच्च चर्म ते।

आमिक्षां दुहृतां दात्रे क्षीरं सर्पिरथो मधु ॥१७ ॥

आपके जो प्लीहा, गुदाभाग, कुक्षि (कोख) तथा चर्म हैं, वे दाता को दुग्ध दही, घृत तथा मधु प्रदान करे ॥१७ ॥

२९४३. यत्‌ ते मज्जा यदस्थि यन्मांसं यच्च लोहितम्‌ ।

आमिक्षा दुतां दात्रे क्षीरं सर्पिरथो मधु ॥१८ ॥

आपके जो मञ्ज, अस्थि, पांस ओर सुषिर हैं, वे दाता को, दूध, दही, घी तथा मधु प्रदान करे ॥१८ ॥

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