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रेष

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है । इन पन्लवोंके अभावमें कस्तूरीमिश्रित जलके | तिलोंको सुगन्धित फूलोंसे वासित करके उनका

द्वारा द्रव्योंकी शुद्धि होती है। नख, कूट, घन

(नागरमोथा), जटामांसी, स्पृक्क, शैलेयज

(शिलाजीत), जल, कुमकुम (केसर), लाक्षा (लाह),

चन्दन, अगुरु, नीरद, सरल, देवदार, कपूर, कान्ता,

वाल (सुगन्धनाला), कुन्दुरूक, गुग्गुल, श्रीनिवास

ओर करायल-ये धूपके इक्कीस द्रव्य हैं। इन

इक्कौस धूप-द्रव्योंमेंसे अपनी इच्छाके अनुसार

दो-दो द्रव्य लेकर उनमें करायल मिलाबे। फिर

सबमें नख (एक प्रकारका सुगन्धद्रव्य), पिण्याक

(तिलकी खली) ओर मलय-चन्दनका चूर्ण मिलाकर

सबको मधुसे युक्त करे । इस प्रकार अपने इच्छानुसार

विधिवत्‌ तैयार किये हुए धूपयोग होते हैं। त्वचा

(छाल), नाड़ी (डंठल), फल, तिलका तेल,

केसर, ग्रन्थिपर्वा, शैलेय, तगर, विष्णुक्रान्ता, चोल,

कर्पूर, जयमांसी, मुर, कूट--ये सब स्रानके लिये

उपयोगी द्रव्य हैं। इन द्रव्यॉमेंसे अपनी इच्छके

अनुसार तीन द्रव्य लेकर उनमें कस्तूरी मिला दे।

इन सबसे मिश्रित जलके द्वारा यदि स्नान करे तो

बह कामदेवको बढ़ानेवाला होता है। त्वचा, मुरा,

नलद-इन सबको समान मात्रे लेकर इनमें

आधा सुगन्धबाला मिला दे। फिर इनके द्वारा स्नान

करनेपर शरीरसे कमलकी-सी गन्ध उत्पन्न होती

है। इनके ऊपर यदि तेल लगाकर ज््रान करे तो

शरीरका रंग कुमकुमके समान हो जाता है। यदि

उपर्युक्त द्रव्योंमें आधा तगर मिला दिया जाय तो

शरीरसे चमेलीके फूलको भाँति सुगन्ध आती है।

उनमें द्वयामक नामवाली ओषध मिला देनेसे

मौलसिशीके फूलोंकी-सी मनोहारिणी सुगन्ध प्रकट

होती है। तिलके तेलमें मंजिष्ठ, तगर, चोल, त्वचा,

व्याप्रनख, नख और गन्धपत्र छोड़ देनेसे बहुत ही

सुन्दर और सुगन्धित तेल तैयार हो जाता है। यदि

तेल पेरा जाय तो निश्चय ही वह तेल फूलके

समान ही सुगन्धित होता है। इलायची, लवंग,

काकोल (कबाबचीनी), जायफल और कर्पुर -

ये स्वतन्त्ररूपसे एक-एक भी यदि जायफलकी

पत्तीके साथ खाये जाये तो मुँहको सुगन्धित

रखनेवाले होते हैं। कर्पूर, केसर, कान्ता, कस्तूरी,

मेठड़का फल, कबाबचीनी, इलायची, लवंग,

जायफल, सुपारी, त्वक्पत्र, त्रुटि (छोटी इलायची ),

मोधा, लता, कस्तूरी, लवंगके काँटे, जायफलके

फल और पत्ते, कटुकफल --इन सबको एक-

एक चैसेभर एकत्रित करके इनका चूर्ण बना ले

और उसमें चौथाई भाग वासित किया हुआ

खैरसार मिलावे। फिर आमके रसम घोटकर

इनकी सुन्दर-सुन्दर गोलियाँ बना ले। वे सुगन्धित

गोलियाँ मुँहमें रखनेपर मुख-सम्बन्धी रोगोंका

विनाश करनेवाली होती है। पूर्वोक्त पाँच पल्लवोंके

जलसे धोयी हुई सुपारीको यथाशक्ति ऊपर

बतायी हुई गोलोके द्रव्योंसे वासित कर दिया

जाय तो वह मुँहको सुगन्धित रखनेवाली होती

है। कटुक और दाँतनको यदि तीन दिनतक

गोमूत्रमें भिगोकर रखा जाय तो वे सुपारीको ही

भाँति मुँहमें सुगन्ध उत्पन्न करनेवाले होते हैं।

त्वचा और जंगी हर्रेको बराबर मात्रामें लेकर

उनमें आधा भाग कर्पूर मिला दे तो वे मुँहमें

डालनेपर पानके समान मनोहर गन्ध उत्पन्न करते

हैं। इस प्रकार राजा अपने सुगन्थ आदि गुणोंसे

स्त्रियोंकों वशीभूत करके सदा उनकी रक्षा करे ।

कभी उनपर विश्वास न करे। विशेषत: पुत्रकी

मातापर तो बिलकुल विश्वास न करे। सारी रात

स्त्रीके घरमें न सोवे; क्योंकि उनका दिलाया

हुआ विश्वास बनावटी होता है॥ १८--४२॥

इस प्रकार आदि आनेय महापुराणमें 'राजभर्मका कथन” नामक

दो सौ चॉबीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २२४॥

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