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आौ १३ )

कृष्णोऽहमेष ललित ब्रजाम्यालोक्यतां गतिः ।

अन्या व्रवीति कृष्णस्य मम गीतिर्निशम्यताम्‌॥ २६

दुष्टकालिय तिष्ठात्न कृष्णोऽहमिति चापरा ।

बाहुमास्फोट्य कृष्णस्य लीलया सर्वमाददे ॥ २७

अन्या व्रवीति भो गोपा निदशह्ठै: स्थीयतामिति ।

अले वृष्टिभयेनात्र धृतो गोवर्धनो मया ॥ २८

धेनुकोऽयं मया क्षिप्तो विचरन्तु यथेच्छया ।

गावो व्रवीति चैवान्या कृष्णलीलानुसारिणी ॥ २९

एवं नानाप्रकारासु कृष्णचेष्टासु तास्तदा ।

गोप्यो व्यग्राः समं चेरू रम्यै वृन्दावनान्तरम्‌ ॥ ३०

विलोक्यैका भुवं प्राह गोपी गोपवराङ्घना ।

पुलकाश्चितस्व्गी विकासिनयनोत्यला ॥ ३१

ध्वजवन्राङ्ुशाज्जाङ्करेखावन््यालि पश्यत ।

पदान्येतानि कृष्णस्य लीलाललितगामिनः ॥ ३२

कापि तेन समायाता कृतपुण्या मदालसा ।

पदानि तस्याश्चैतानि घनान्यल्यतनूनि च ॥ ३३

पुष्पापचयमत्रोचचैश्चक्रे दामोदरो धुवम्‌ ।

येनाप्राक्रान्तमात्राणि पदान्यत्र महात्मनः ॥ ३४

अत्रोपविङ्य वै तेन काचि्ुष्यरलङ्कता ग ।

अन्यजन्पनि सवत्मा विष्णुरभ्यर्चितस्तया ।। ३५

पुष्पयन्धनसप्मानकृतमानामपास्य ताम्‌ ।

नन्दगोपसुतो यातो मार्गेणानेन पठ्यत ॥ ३६

अनुयातैनमत्रान्या नितम्बभरमन्थरा ।

या गन्तव्य दतं याति निम्नपादाग्रसंस्थिति: ॥ ३७

हस्तन्यस्ताग्रहस्तेयं तेन याति तथा सखी ।

अनायत्तपदन्यासा लक्ष्यते पदपद्धतिः ॥ ३८

हस्तसंस्पर्शमात्रेण धर्तेनैषा विमानिता ।

नैराश्यान्मन्दगामिन्या निवृत्तं लक्षयते पदम्‌ ॥ ३९

पञ्चम अंझ

३४५७

गति तो देखो ।" दूसरी कहती-- कृष्ण तो मैं हूँ, अहा !

मेरा गाना तो सुनो" ॥ २५-२६ ॥ कोई अन्य गोपी भुजाएँ

डॉककर बो उठती--“आरे दुष्ट काय ! मैं कृष्ण हूँ

तनिक ठहर तो जा” ऐसा कहकर यहे कृष्णके सारे

चरित्रोंका ल्त्ैल्मपूर्वक अनुकरण करने लगती ॥ २७ ॥

कोई ओर गोपौ कहने ऊंगतो--''अरे गोपगण ! मैंने

गोवर्धन धारण कर लिया है, तुम बर्षासे मत डरो, निद्ंक

होकर इसके नीचे आकर बैठ जाओ" ॥ २८ ॥ कोई

दूसरी गोपी कृष्णलो ओका अनुकरण करती हुई बोलने

लूगती--“मैंने घेनुकासुरको मार दिया है, अब यहाँ गौत

स्वच्छरःट्‌ होकर विर" ॥ २९ ।,

इस प्रकार समस्त गोपियाँ श्रीकृष्णचन्द्रकौ नाना

प्रकारकी चेष्टाओंमें ज्यप्न होकर साथ-साथ अति सुरम्ब

वुन्दावनके अन्दर विचरने छरगीं॥३० | खिले हुए

कमल-जैसे नेत्रॉवाली एक सुन्दरौ गोपाङ्गना सर्वाङ्गे

घुल्ककित हो पृथिवीन ओर देखकर कहने लूगी--

॥ ३१ ॥ अरौ आली ! ये लोलाललितगामो कृष्णचन्द्रके

ध्वजा, वच्र, अंकुदा और कमल आदिकी रेखाओंसे

सुशोभित पदचिह् तो देखो ॥ ३२ ॥ और देखो, उनके

साथ कोई पुण्यवती मदमाती युवती भी आ गयी है, उसके

ये घने छोटे-छोटे और पतले चरणचिह्न दिखायी दे रहे

हैं॥ ३३ ॥ यहाँ निश्चय ही दामोदरने ऊँचे होकर पुष्पचयन

किये हैं; इसी कारण यहाँ उन महात्माके चरणोंकि केबल

अग्रभाग हो अङ्कित हुए हैं ॥ ३४ ॥ यहाँ बैठकर उन्होंने

निश्चय ही किसी बड़भागिनीका पुष्पोंसे शृङ्गार क्रिया है;

अवदय हौ उसने अपने पूर्वजन्म सर्वात्मा

श्रीविष्णुभगवान्‌की उपासना की होगी | ३५॥ और यह

देखो, पुष्यबन्धरके सम्मानसे गर्विता होकर उसके मान

करनेपर श्रीनन्द्नन्दन उसे छोड़कर इस मार्गसि चले गये

है॥ ३६ ॥ अरी सखियो ! देखो, यहाँ कोई नितम्बभारके

कारण मन्दगामिनी गोपी कृष्णचन्द्रके पीछे-पीछे गयी है ।

जह अपने गन्तव्य स्थानको तीत्रगतिसे गयी है, इसीसे

उसके चरणचिह्नोंके अग्रभाग कुछ नीचे दिखायी देते

हैं॥ ३७॥ यहाँ खह सखी उनके थमे अपना

पाणिपल्क्व देकर चले है इसोसे उसके चरणचिह्न

पणाधीन-से दिखलायी देते हैं॥ ३८ ॥ देखो, बहाँसे उस

मन्दगासिनीके निराञा होकर लौटनेके चरणचिह्न दीख रहे

हैं, मालूम होता है उस घृर्तने [ उसकी अन्य आन्तरिक

अभिलाषाओंको पूर्ण किये बिना ही ] केवल कर-स्पर्श

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