भागंव-चरित्र वर्णन (३) |] [{ ३४६
है महाभागे ! यह वैष्णव परशुराम शौवता को प्राप्त हुआ है अर्थात्
शिव के स्वरूप को प्राप्त होजाने वाला हो गया है। और साक्षात् यह गणेश
शिव हैं जो बेष्णवत्व को प्राप्त हुआ है अर्थात् विष्णु के स्वरूप में समास्थित
है । इन हम दोनो प्रभुओं का भी भेद दिखलाई नहीं दिया करता है । इस
प्रकार से कहकर श्री राधा ने अपनी गोद में गजानन को बेठा लिया था
।५०-५१। फिर ग्रणेशजी का मस्तक सूँघ कर अपने हाथ से उनके कपोलों
का स्पणे किया था । उनके केवल कर कमल के स्पशं करते ही तश्क्षण जो
भी दाँत के टूट जाने से क्षत हो गयां था वह् भरकर ठीक हो गया था ।५२।
इसके अनन्तर श्री राधा जी के द्वारा अनुनय की गयी पावंतीजी भी परम
प्रसन्न हो गयी थीं भौर अपने चरणों में मस्तक नवाकर पड़े हुए परशुराम
को उन्होने भी अपने करकमल से पकड़ कर उठा लिया था । पाती जी ने
परम प्रसन्न होकर उसको अपनी गोद में बिठाकर उसके शिर का उपध्नाण
किया था । आर्य संस्कृति में वृद्ध एवं बड़े लोग अपने छोटे बालकों का शिर
सूघ कर उनकी आयु की वृद्धि किया करते थे | इस रीति से उन दोनों
राम और गणेश का सत्कार भगवान् श्रीङ्कष्ण ने अपने नेन्नों से देखा या ।
तब श्रीकृष्ण ने भी स्कन्द को अपनी ओर उठाकर बहुत ही प्रेम के साथ
अपनी गोद में बैठा लिया था । इसके अनन्तर भगवान् शम्भु ले भी परम
भ्रंसन्न होकर वहाँ पर समुपस्थित श्रीदामा को अपनी गोद में संस्थापित कर
लिया था और मान प्रदान करने वाले प्रभु ने उसका बड़ा सत्कार किया
या ।५३-५४-५५-५६।
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भागंव-चरित्र वर्णन (३)
वसिष्ट उवाच- ।
एवं सुस्निग्धचित्तोषु तेषु तिष्ठत्सु भूपते ।
भवान्युत्संगतो रामः समुत्थाय कृतांजलिः ॥१
तुष्टाव प्रयतो भूत्वा निधिशेषं विशेषवत् ।
अद्यं द्रेतमापन्नं निग णं सगुणात्मकम् ॥२
राम उवाच-
प्रकृतिविक्रतिजातं विश्वमेतद्विधातु मम कियदनुभातं
वैभवं तत्प्रमातुम् ।