# भ्रोशिबपुराण-माहात्य # ७
4. 2. # + ले >>मभ#न नैक चैक कैक केतक नैनेन
(ज्ञास्रोक्त) सार्गसे इसकी आराधना जोड़कर वोल्की--'मै कृतार्थं हो गयी ।'
अथवा सेवा करनी चाहिये । यह भव- तत्पश्चात् उठकर चैराम्ययुक्त उत्तप
बन्धनरूपी रोगका नाक करनेवाली है। शुद्धिवात्नी यह स्त्री, जो अपने पापोंके
भगवान् शिवकी कथाको सुनकर फिर कारण आतङ्कित थी, उन महान् शिव-भक्त
अपने हृदयमें उसका मनन एवं निदिध्यासन ब्राह्मणसे हाथ जोड़कर गदड़द बाणीमें
करना चाहिये । इससे पूर्णतया चित्तराद्धि ह्ये योर ।
जाती दै । चित्तशुद्धि हयैनेसे महेश्वरकी भक्ति चञ्युखने कहा--ब्रह्मम् ! शिवभक्तॉमें
अपने दोनों पुत्रों (ज्ञान और वैराग्य) के श्रेष्ठ स्वामिन् ! आप थन्य हैं, परमार्थदर्शों
साथ निश्चय ही प्रकट होती है। तत्पश्चात्. हैं और सदा परोपकारमें रूगे रहते हैं।
महेश्वरके आनुग्रहसे दिष्य मुक्ति प्राप्त होती है, इसलिये श्रेष्ठ साधु पुरुणोंमें प्रश्लंसाके योग्य
इत षय नहीं है। जो भुक्तिसे वच्छित है, हैं। साधो ! मैं नरकके समुद्रमें गिर रही है।
उसे पशु समझना चाहिये; क्योंकि उसका आप मेरा उद्धार कीजिये, उद्धार कीजिये ।
चित्त मायाके चन्धनमें आसक्त है। बह पौराणिक अर्थतत्त्वसे सम्पन्न जिस सुन्दर
निश्षय ही संसारबधनसे मुक्त नहीं हो पाता। शिव्रपुराणकी कथ्ाकों सुनकर मेरे मनमें
ब्राह्मणपत्नी ! इृश्तलिये तुप्त विषयोंसे सम्पूर्ण विषयोसे चैराभ्य उत्पन्न हो गया, उसी
मनको हटा लो और भक्तिभावसे भगवान् इस शिवपुराणको सुननेके त्वयि इस समय
शौकरी इस परम पावन कथाको सुनों--
परमात्मा हकरकी इस कथाको सुननेसे
तुम्हारे चित्तकी शुद्धि होगी और इससे तुम्हें
मोक्षकी प्राप्ति हो जायगी। जो निर्मल
चित्तसे भगवान् छिलके चरणारविन्दोंका
चिन्तन करता हैं, उसकी एक ही जन्ये
मुक्ति हो जाती है--यह मैं तुमसे सत्य-सत्य
कहता हूँ।
सूतजी कहते हैं--शौनक ! इतना
कहकर ये श्रेष्ट शिवभक्त ब्राह्मण चुप हो
गये । उनका इदय करुणासे आद्र हो गया
था। वे शुद्धचित्त महात्मा भगवान् छशिवके
ध्यानम मम्र हो गये । तदनन्तर निन्दुगकरी
पत्नी ऋच्वुला पन-ही-पन असन्न हो उठी ।
ब्राह्मणका उक्त उपदेश सुनकर उसके नेत्रोभे
आनन्दके आँसू छक आये धे। वह
ब्राह्मणपत्नी च्ल हर्षभरे हदयस उन श्रेष्ठ
ब्राह्मणके दोनों चरणोपिं गिर पड़ी और हाथ
पेरे मनपे खड़ी श्रद्धा हो रही है।
सूतजी कहते हैं--ऐसा कहकर हाथ
जोड़ उनका अनुप्रह पाकर चञ्चुल्म उस
शिवपुराणकी कथाकी सुननेकी इच्छा मनमें
लिये उन ब्राह्मणदेवताकी सेवामें तत्पर हो
वहाँ रहने लगी । तदनन्तर शिवभक्तोंपें श्रेष्ठ
और शुद्ध खुस्धिबाले उन ब्राह्मणदेवने उसी
स्थानपर उस स््ीको शिवपुराणकी उत्तम
कथा सुनायी। इस प्रकार उस गोकर्ण
नामक महक्षेत्रमें उन्हीं ओष्ठ ब्राक्मणसे उसने
दिवपुराणकी वह परम उत्तम कथा सुनी,
जो भक्ति, ज्ञान और वैराग्यको बढ़ानेबाली
तथा मुक्ति देनेवाली है। उस परम उत्तम
कथाको सुनकर वह ब्राह्मणपत्नी अत्यन्त
कृतार्थं हो गयी । उसका चित्त शीघ्र ही शुद्ध
हो गया । फिर भगवान् झिवके अनुग्रहसे
उसके हदयमे हिवके सगुणरूपका चिन्तन
होने गा । इस प्रकार उसने भगवान् शिवपें