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कै
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मातामहश्राद्धं है, उसे आपल्नोर्णोकी आजा
क्कर मैं पार्वणकी विधिसे सम्पन्न
करूँगा।' ऐसा संकल्प करके आसनके
लिये दक्षिण दिशासे आरम्भ करके उत्तरोत्तर
"विश्वेदेवा भवन्तौ वृणे ।
भवद्धघां नान्दीश्राद्ध क्षणः प्रसादनीयः । '
अर्थात् "हेम विश्वेदेव श्राद्धके लिये
आप दोनोंका वरण करते ह । आप दोनों
नान्दीश्राद्ध अपना समय देनेकी कृपा
करे ।' इतना सभी श्राद्धोंके ब्राह्मणोंके लिये
कटै । सर्वत्र ब्राह्मणलरणकी विधिका यही
क्रम है।
इस प्रकार खरणका कार्य पूरा करके
दस मण्डछोंका निर्माण करे ! उत्तरसे आरण्थ
करके दसो मण्डत्लोका अक्षतसे पूजन करके
उनमें क़महाः ब्राह्मणोक्ो स्थापित करे । फिर
उनके चरणॉपर भी अक्षत आदि चढ़ाये।
तदनन्तर सम्बोधनपूर्वक विश्वेदेव आदि
भासोंका उच्चारण करें और कुश, पुष्प,
अक्षत एवं जसे "इदं वः पाद्यम' कहकर
पाद निवेदन करे * ।
इस प्रकार पाद्य देकर स्वयं भरी अपना
पैर थो ले और उत्तराभिमुख हो आचमन
करके एक-एक श्राद्धके लिये जो दो-दो
ब्राह्मण कल्पित हुए हैं, उन सबको
आसनॉपर बिठाये तथा यह कहे--
"किष्रेदेचस्वरूपस्य ब्राह्मणस्य इृदमासनम् । --
विश्चेदेवस्वरूप ब्राह्मणके लिये यह आसन
समर्पित है, यह कह कुझासन दे स्वथं भी
हाथपें कुदा लेकर आसनपर स्थित हो जाय ।
इसके खाद कहे--अस्मिन्रान्दीमुखश्राद्धे
चिश्वेदेवायें भवद्धछों क्षण: क्रियताम्--इस
नान्दीमुख श्राद्धपें विश्वेदेबके लिये आप
दोनों क्षण (समय प्रदान) करें।' तदनन्तर
भवन्तौ --आप दोनों अहण करें।'
ऐसा कहे। फिर वे दोनों शष्ठ ब्राह्मण इस
श्रकार उत्तर दें 'प्राप्तवाव--हम दोनों अहण
करेंगे।! इसके बाद यजमान उन श्रेष्ठ
ब्राह्मणोंसे प्रार्थना करे--“पेरे मनोरथकी
पूर्ति हो, संकल्पकी सिद्धि हो--इसके लिये
आप अनुग्रह करें।'
तत्पश्चात् (पद्धतिके अनुसार अर्घ्य दे,
पूजन कर ) शुद्ध केलेके पत्ते आदि 4.
पाज्ॉमें परिपक्त अन्न आदि भोज्य
परोसकर पृथक्-पृथक् कुडा ब्रिछाकर और
स्वय॑ वहं जल छिड़ककर प्रत्येक्त पात्रपर
आदरपूर्वकं दोनों हाथ लगा "पृथिवी ते
# प्रथम मण्डक्मे दो चिश्वेदेयोंके वे, फिर आठ पणत क्रमाः देवादि आठ आरके अधिकारियेकि
लिये तथा दसवें मण्डल्मों सफ्लीक भ तामह आदिते सके पाच्च अर्पणः करो चहिये । सर्पण -चछक्वका प्रयोग इस
प्रकार ६-
ॐ खत्यवषसङ्याः िश्वेदेवा: ऋ्टोमृचराः धूर्भुतः ९५: ईद य: गाणी पदावनेजने पाटप्रश्लने युद्धि: ॥ १ ॥
ॐ अक्ाविष्णुनदेश्वरा: नान््टीधुक४: भूरभुयः स्यः इदे या पष्ट पादायगेजने पादरक्षा चदि: ॥ २ ॥
ॐ देयर्पिन्रझर्विक्षत्र्पयो नान््रीमुस्ता: भूर्भुयः लः इदं भः पाच्च पादावनेकने पादभ।९ यूद्धि: ॥ ३।
इसी प्रकार ५१-५ श्रा्धके लिये बताते ऊहा कर सैनी चाहिये ।