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गयीं ? ध्यान करके जब उन्होंने यह निश्चितरूपसे जान

लिया कि उन्हें महादेवजीने ग्रहण कर लिया है, तब वे

कैलास पर्वतपर गये। मुनिश्रेष्ठ वहाँ पहुँचकर वे तीत्र

तपस्या करने लगे । उनके आराधना करनेपर मैंने अपने

मस्तकसे एकर बाल उखाड़ा और उसीके साथ त्रिपथगा

गङ्गाजीको उन्हें अर्पण कर दिया। गङ्गाको लेकर वे

पातालमे, जहाँ उनके पूर्वज भस्म हुए थे, गये । उस समय

भगवान्‌ किष्णुके चरणोंसे प्रकट हुई गङ्गा जब हरिद्वारमें

आर्यो, तब वह देवताओंके लिये भो दुर्कुभ श्रेष्ठ तोर्थ बन

गया। जो मनुष्य उस तीर्थपें स्नान, तथा विशेषरूपसे

* शङ्खाकी महिमा, श्रीविष्णु, यमुना, गङ्गा, प्रयाग, काशी, गया एवं गदाधरकी स्तुति +

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श्रीहरिका दर्शन करके उनकी परिक्रमा करते हैं, वे दुःखके

भागी नहीं होते । ब्रह्महत्या आदि पापोंकी अनेक राशियाँ

हो क्‍यों न हों, वे सब सर्वदा श्रीहस्कि दर्शानमाजसे नष्ट

हो जाती है । एक समय मैं भी हरिद्वास्में श्रीहरिके स्थानपर

गया था, उस समय उस तोर्थके प्रभावसे मैं निष्णुस्वरूप

हो गया। सभी मनुष्य वहाँ श्रोहरिका दर्शन करनेमात्रसे

बैकुण्ठ-लोकको प्राप्त होते हैं। परम सुन्दर हरिद्वार-तीर्थ

मेरी दृष्टियें सबसे आधिक महत््वचाल्त्रे है। वह समस्त

तीथॉमें श्रेष्ठ और धर्म-अर्थ-काम-मोक्षरूप चारों

पुरुषार्थ प्रदान. कटनेवास्र है ।

---- ऋ बज =

गङ्गाकी महिमा, श्रीविष्णु, यमुना, गङ्गा, प्रयाग, काशी, गया एवं गदाधरकी स्तुति

महादेवजी कहते हैं--मुनिश्रेन्‍् अन मै

श्रीगङ्गाजीके माहात्म्यका यथावत्‌ वर्णन करूँगा, जिसके

श्रवणमात्रसे तत्काल पार्पौका नाश हो जाता है। जो

मनुष्य सैकड़ों योजन दूरसे भी ' गङ्ग -गङ्गा' का उच्चारण

करता है, वह सब पापोंसे मुक्त होता और अन्तमें

विष्णुल्लेकको जाता है।* नारद ! श्रीहरिके चरण-

कमल्लेंसे प्रकट हुई "गङ्गा" नामसे विख्यात नदी पापोंकी

स्थल राशियोंका भी नादा करनेवाल्म्रे है। नर्मदा, सरयू,

वेत्रवती (बेतवा), तापी, पयोष्णी (मन्दाकिनी), चन्द्रा,

विपाशा (ज्यास), कर्मनाझिनी, पुष्या, पूर्णा, दीपा,

विदीपा तथा सूर्यतनया यमुना--इनपें स्नान करनेसे जो

पुण्य होता है, वह सब पुण्य गड्ढा-स्नानसे मनुष्य प्राप्त

कर लेते है । जो मनीषी पुरुष समुद्रसहित पृथ्वीका दान

करते हैं, उनको मिलनेकात्तर फल भी गड्जा-स्त्रानसे प्राप्त

हो जाता है । सहस गोदान, सौ अश्वमेध यज्ञ तथा सहस्र

वृषभ-दानसे जिस अक्षय फलकी प्राप्ति होती है, वह

गङ्गाजोके दर्दानसे क्षणभरमें प्राप्त हो जाता है। वह गङ्गा

नदी महान्‌ पुण्यदायिनी है, बरिशेषतः ब्रह्महत्पारोंके लिये

परम पावन है। वे नरकमें पड़नेवाले हों तो-भी गङ्गाजो

उनके पाप हर छेती हैं। तात ! जैसे सूर्योदय होनेपर

अश्वकार दूर हो जाता है, उसी प्रकार गङ्गके प्रभावसे

पातक नष्ट हो जाते हैं। ये माता गङ्गा संसारमें सदा

पवित्र मानी गयी हैं। इनका स्वरूप परम कल्याणमय

है । माता जाह्वीका स्वरूप दिव्य है । जैसे देवताओं

श्रीविष्णु श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार नदियोंमें गङ्गा उत्तम. हैं।

जहाँ गङ्गा, यमुना और सरस्वती हैं, उन तीथॉमें स्नान

और आचमन करके मनुष्य मोक्षका भागी होता है--

इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।

(भिन्न-भिन्न तीथॉमें जानेपर भगवान्‌ श्रीविष्णु तथा

यमुना, गङ्गा आदि नदियोका किस प्रकार स्तवन करना

चाहिये, यह बताया जाता है--]

त्वद्रा प्रयते ब्रवौपि यदहं सास्तु स्तुिसतो प्रथो

चद्‌ भुझे त्व सश्निवेदनमथों यद्यापि सा प्रेष्यता।

यचछत्त: स्वपिमि त्वदषप्रयुगले दण्डश्रणापोऽसतु पे

स्वापिन्‌ यश्च करोमि तेन स भवान्‌ विश्लेश्वर: प्रीयताम्‌ ॥

प्रभो ! मैं शुद्धभावसे आपके सम्बन्धे जो कुछ

भी चर्चा करता हूँ, वहौ आपके स्यि स्तुति हो । जो कुछ

भोजन करता हूँ, वह आपके लिये नैवेद्यका काम दे । जो

चलता-फिरता हूँ, वही आपकी सेवा-टहल समझो

जाय | जो धककर सो जाता हूँ, वहो आपके लिये

शङ्खा गङ्गेति यो क्रयाद्‌ योजनानौ दातैरपि । मुच्यते सर्वपापेभ्यो विष्णुलोकं स गच्छति ॥ (२३१२)

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