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१; + भं्िप्र

प्रदान करनेबाली परमेश्वरि ! प्रसन्न हो ओ ।'

इत्यादि बाक्योद्वारा स्तुति एवं यपा

करता हुआ देवीके भजनते स्वगा रहनेवात्खा

उपासक उनका इस प्रकार ध्यान करे। देवी

सिंहपर सवार हैं। उनके हाथोंमें अभय एवं

यरकी मुद्राएँ हैं तथा ये भक्तोंकों अभीएट

फल प्रदान करनेवाली हैं। इस प्रकार

महेश्वरीका ध्यान करके उन्हें नैवेद्यके रूपमे

नाना प्रकारके पके हुए फल अर्पित करें।

जो परात्मा झष्मुझ्क्तिका नैवेद भक्षण

करता है; बह मनुष्य अपने सारे पापपङ्कको

घोकर निर्मल हो जाता है। जो चैत्र शुक्ल

चतीयाको भबानीकी असन्नताके लिये ब्रत

करता है, यह जन्म-मरण बशनसे युक्त हो

परमपदको प्राप्त छोता है। विद्वान पुरुष इसी

कुतीयाकों दोल्योत्सव करे। उसमें दौकर-

सहित जगदप्या उमाकी पूजा करे । फूल,

यैदाख मासके शुक पक्षमें जो अक्षय

तृतीया तिथि आती है, उसमें आलस्यरहित

हो जो जगदम्बाका त्रत करता है तथा बेला,

पात्कती, अष्पा, जपा (अकुऊर), बन्धूक

(दुपहरिया) और कमलके फूलोंसे

हौकरसहित गौरीदेवीकी पूजा करता है, वह

करोड़ों जन्पोंपें किये गये मानसिक,

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चाचिकः और शारीरिक पापोंका नाश करके

धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष--इन चारों

पुरुषार्धोको अक्षयरूपमें प्राप्त करता है।

ज्येष्ठ शुद्धा तृतीयाको त्रत करके जो

अत्यन्त प्रसन्नताके साथ महेश्वरीका पूजन

करता है, उसके लिये कुछ भी असाथ्य नहीं

होता। आषाक्के शुक्रपक्षकी तृतीयाको

अपने वैभवके अनुसार रधोत्सव करे । यह

उत्सव देवीको अत्यन्त प्रिय है । पृथ्वीको रथ

सपझे, चन्द्रमा और सूर्यको उसके पिये

जाने, खेदोंको घोड़े और ब्रह्माजीकों सारथि

माने। इस भावनासे मणिजटित रधकी

~ भीतर थैठी हैं। जब रथ धीरे-धीरे चले, तव

जय-जयकार करते हुए प्रार्थना करें--

*देखि ! दीनवत्सले ! इम आपकी दारणमें

आये हैं। आष हमारी रक्षा कीजिये। (पाहि

देखि जनानस्मान्‌ प्रपन्नान्‌ दीनवत्सले।') इन

वाल्योंद्वारा देखोको संतुष्ट करे और यात्राके

समय नाना प्रकारके बाजे बजवाये। ग्राम

या नगरकी सीमाके अन्तत रथको के

जाकर यहाँ उस रथपर देवीकी पूजा करे

और नाना अ्रकारके स्तोत्नोंसे उनकी

स्तुति करके फिर उन वहसि अपने घर ले

आये। तदनन्तर सैकड़ों बार प्रणाम करके

जगदम्यासे प्रार्थना करे। जो विद्धान्‌

इस प्रकार देवीका पूजन, त्रत एवं रथोत्सय

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