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वलितादेवीका दर्शन करके जरासन्पेश्वरको नमस्कार करे ।

बहाँसे सोमनाप और वाराष्टरेश्वरका दर्शन करनेंके लिये न

श्यूजातिरिक्तया झम्भुः प्रीवतामनया बिमुः ॥

भने ओ यह अन्ती यथावत्‌ यात्रा की दै, इसमे

न्यूनातिरिक्ताद्म दोष आ गया हो तो भी शतके द्वारा

मयान्‌ विश्वनापजी प्रक्र |

इस मत्रका उच्चारण करके क्षणमर मुक्तिमण्डपते विश्राम

करे। तत्पथ्यात्‌ निष्पाप एयं पुण्ययान्‌ हुआ मनुष्य अपने घरको

आय | एकादशी तिथि आनेफ महान्‌ पुण्यकी वृद्धिके

स्वपि पयत्पूर्वक काशीके खमी पैष्णव तीथोंडी याजा

करे । भाद्रपदढ़ी पूणिमांदों कुरुस्तम्भका पूजन करना

चाहिये । उसकी पूजासे दुःख पणं रुद्गपिशांचताकी प्रात

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यह सत्य टै, सत्य है, सत्य

प्रतिदिन

मोली प्राप्ति दूर नहीं रद जाती | इस उत्तम खण्डकों

घुनकर स्र पितर वृत शोते हैं । ब्रह्मा, विष्णु और सिव

आदि छव देवता प्रसन्न दते हैं, मुनि आनन्दमग्न होते हैं

और सनकादि मुनीश्षर मी अत्यन्त सन! होते हैं। जो विदान्‌

इस काशी छण्डकों पूरा, आषा, एक चौथाई अप्रया एक

अष्ठमांश भी सुनाता ६, वह यकपूरवक प्रणाम करने योग्य

तथा इस्देवड्ी भति पूजनीय है । भगवान्‌ विश्वनायक

ध्री तिके लिये उसको सदा अन्न, धन आदिफा दान करनां

विः क्योंकि वायकके सन्तु होनेप निःसन्देह भगवान्‌

विश्वनाप हो सन्द होते हैं । जरा परमानन्दके आभयभूव

इस काशीसण्डका पाठ क्रिया जांता दै, यहाँ कोई अमझस-

जनक विच्न अपना प्रमद नहीं डारता हैं ।

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कादाीखण्ड ( उत्तराध ) समास।

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