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नारदजीने इस प्रकार कहा ।

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नारदजी बोले -- सूर्यनन्दन ! यह नरक भोगनेके

योग्य नहीं है; क्योकि इसके द्वारा ऐसा कर्म बन गया है,

जो नरका नादा करनेवाल्म्र है। ज पुरुष पुण्य-कर्म

करनेवाले लोगोंका दर्शन, स्पर्श और उनके साथ

वार्तालाप करता है, वह उनके पुण्यका छटा अंज प्राप्त

कर लेता है। यह तो एक मासतक श्रीहरिके कार्तिक-

ब्रतका अनुष्ठान करनेवाले असंख्य मनुष्योंके सम्पर्कमें

रहा हैं; अतः उन सबके पुण्योशका भागी हुआ है।

उनकी सेवा करनेके कारण इसे सम्पूर्ण ब्रतका पुण्य प्राप्त

हुआ है, अतः इसके कार्तिक-ब्रतसे उत्पन्न होनेवाले

पुण्योंकी कोई गिनती नहीं है । कार्तिक-व्रत करनेवासे

पुरुषोंके बड़े-से-बड़े पातकॉका भी भक्तवत्सल श्रीविष्णु

पूर्णतया नाश कर डालते हैं। इतना ही नहीं, अन्तकाले

लैष्णन पुरुषोंने तुलसीमिश्रित नर्मदाके जलसे इसको

नहलाया है। और श्रीविष्णुके नामका भी श्रवण कराया

है; इसलिये इसके सारे पाप नष्ट हो गये है । अब धनेश्वर

उत्तम गति प्राप्त करनेका अधिकारी हो गया है। यह

वैष्णव पुरुषोंका कृपापात्र है, अतः इसे नरकमें न

* अआर्चयस्व षीके यदीच्छसि परं पदम्‌ «

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{ संक्षिप्त पश्चपुराण

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पकाओ । इसको अनिच्छासे पुण्य प्राप्त हुआ है; इसलिये

यह यक्षयोनिमे। रहे और सम्पूर्ण नरकोकि दर्शन मात्रसे

अपने पापोंका भोग पूरा कर ले।

भगवान्‌ श्रीकृष्ण कहते हैं--प्रिये यो कहकर

देवर्षिं नारदजी चले गये । फिर यमराज अपने सेवकके

द्वारा उस ब्राह्मणको सम्पूर्ण नरकोंका दर्शन करानेके छि

कहाँसे ले गये । इसके बाद यमकी आज्ञाका पालन

करनेवाला प्रेतराज धनेश्वरको सम्पूर्ण नरककि पास ले

गया और उनका अवल्लेकन कराता हुआ इस प्रकार

कहने लछगा।

ज्रेतराजने कहा--धनेश्वर ! महान्‌ भय देनेवाले

इन घोर नरकॉकी ओर दृष्टि दाल । इनमें पापी पुरुष सदा

यमराजके सेवकद्वारा पक्राये जाते हैं। यह जो भयानक

नरक दिखायी देता है, इसका नाम तप्तबालुक है। इसमें

ये पापाचारी जीय अपनी देह दग्ध होनेके कारण क्रन्दन

कर रहे हैं। जो मनुष्य बलिवैश्वदेवके अन्तम भूखसे

दुर्बक हो घरपर आये हुए अतिधिर्योका सत्कार नहीं

करते, यै अपने पापकर्मके कारण इस नरकमे कष्ट

भोगते हैं। जो गुरु, अग्रि, ब्राह्मण, गौ, देवता तथा

मूर्धाभिषिक्त राजाओंकों लात मारते हैं, वे ही पापी यहाँ

दृष्टिगोचर हो रहे हैं। यहाँ तपौ हुई बालूपर चलनेके

कारण इनके पैर जल गये हैं। इस नरकके छः अवान्तर

भेद हैं। नाना प्रकारके पापोंके कारण इसमें आना पड़ता

है। इसी प्रकार यह दूसरा महान्‌ नरक आन्धतामिस्र

कत्ता है। देखो, यहाँ सुईके समान मुँहवाले कीड़ोंके

द्वारा पापियोंके शरीर विदीर्ण हो रहे हैं। यह नरक

भयानक मुखबाले अनेक प्रकारके कीटोंसे ठसाठस भरा

हुआ है। यह तीसरा क्रकच नामक नरक है। यह भी

बड़ा भयानक दिखायी देता है। इसमें ये पापी मनुष्य

आरेसे चीरि जानेका कष्ट भोगते हैं। असिपत्रवन आदि

भेदोंसे यह नरक छः प्रकारका बताया गया है। जो

दूसरोंका पत्नी और पुत्र आदिसे तथा अन्यान्य प्रियजनोंसे

विछोह कराते हैं, वे ही लोग यहाँ कष्ट भोगते हैं।

तल्वारके समान पत्तौसे इनके अरं छिन्न-भिन्न हो रहे हैं

और इसी भयसे ये इधर-उधर भाग रहे हैं। देखो, ये

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